अमिताभ श्रीवास्तव-
जिस नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने अभिनेता शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान को पिछले साल अक्टूबर के महीने में मुंबई में क्रूज़ ड्रग्स मामले में गिरफ़्तार किया था, उसी ने अब जो चार्जशीट दाखिल की है उसमें आर्यन का नाम ही नहीं है।
यानी, आर्यन के खिलाफ सबूत नहीं मिले हैं, वह आरोपी नहीं बनाये गये है,उनको क्लीन चिट मिल गई है। तो क्या सारा मामला जानबूझकर, सुनियोजित तरीक़े से सिर्फ सनसनी फैलाने और शाहरुख़ खान को निशाना बनाने के मक़सद से खड़ा किया गया और मीडिया की मदद से जनता में एक ख़ास नज़रिये से राय बनाने की कोशिश की गई?
याद करिये, समीर वानखेड़े को किस तरह मीडिया में हीरो बनाने की एक मुहिम सी चल पड़ी थी। यह भी याद करिये कि पिछले साल सारे टीवी चैनल बॉलीवुड की हस्तियों और नशे के कारोबार को लेकर कैसा हंगामा मचाते थे , बीजेपी के नेता-समर्थक, शाहरुख़ खान के विरोधी कैसी आक्रामक चर्चाएँ करते थे, सोशल मीडिया किस तरह शाहरुख़ खान के खिलाफ आक्रोश से उबलता रहता था।
चैनलों की चर्चाओं में मीडिया ट्रायल में आर्यन खान पर ड्रग डीलर होने, सिंडिकेट का हिस्सा होने, नशे की तस्करी में शामिल होने के आरोप लगते थे, गरमागरमी होती थी। आज चैनल बड़ी निरपेक्षता से पूरे मामले को केवल एनसीबी की नाकामी बता कर किनारे खड़े हो गये हैं, जबकि ग़ुस्से , आक्रोश, नफरत का माहौल बनाने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी।
आर्यन खान तीन हफ़्ते से ज्यादा समय तक जेल में रहे। इसकी जवाबदेही किसकी होगी? क्या मीडिया को शर्म आएगी? पुलिस को? एनसीबी को? लगता नहीं है।