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सियासत

ओवैसी तमंचा जेडप्लस कांड : यूपी का मुसलमान बंगाल के मुसलमान से कम समझदार नहीं है!

यूसुफ़ किरमानी-

ओवैसी साहब को आज भारत सरकार ने जेड सिक्योरिटी दे दी।

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जेड सिक्योरिटी कल के हमले के बाद मिली है। आरोपी सचिन और शुभम का सोशल मीडिया प्रोफाइल सामने आ गया है। उसी से आपको सारी साजिश को समझने का तर्क मिलेगा।

यह पोस्ट आगे उसी का विस्तार है।

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कल रात मैंने ओवैसी साहब पर हुए हमले पर एक पोस्ट लिखी थी। उस पर हमारे मुस्लिम भाई लोग बहुत नाराज दिखे और जमकर मुझे गालियां दीं। जिसका अंदाजा मुझे पहले से था। लेकिन ओवैसी या बीजेपी या आरएसएस की ट्रोल आर्मी से न मैं डरने वाला हूं और न झुकने वाला हूं।

लोगों को आगाह करना मेरा काम है। करता रहूंगा। ये तो तय है कि वोट आप लोग अपने आत्मा की आवाज़ पर ही देंगे। मैं आपको बाध्य नहीं कर सकता। लेकिन आपको आगाह कर सकता हूं।

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आज जुमा है। नमाज़ हो चुकी है। मौलाना का खुतबा भी आपने सुना होगा। आप में से कुछ लोगों ने ओवैसी साहब की जिन्दगी के लिए दुआएं भी की होंगी। मैं भी उनकी लंबी जिन्दगी के लिए दुआ मांगता हूं। लेकिन क़ौम के लीडर अगर क़ौम को ही सही फैसला नहीं लेने देंगे, तो वो काहे के लीडर।

चलिए मैं अपना खुतबा शुरू करता हूं।

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ओवैसी साहब पिछले छह महीने से यूपी में रैलियां कर रहे हैं। बेतहाशा पैसा खर्च हो रहा है। करोड़ों समझिए। क्या एआईएमआईएम इतनी अमीर पार्टी है?

तो ओवैसी साहब की रैलियों से उनकी पार्टी को लगा था कि उन्होंने जिन मुसलमानों को टिकट देकर मैदान में उतारा है, मुसलमान उनके पीछे टूट पड़ेंगे। लेकिन यूपी का मुसलमान बंगाल के मुसलमान से कम समझदार नहीं है। उसका जवाब ओवैसी साहब की पार्टी के लिए ठंडा रहा। अभी तक है।

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ओवैसी साहब ने तो 100 प्रत्याशी उतारे ही, बहनजी यानी मायावती ने अभी तक 101 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं। उनमें से 35 मुस्लिम हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मायावती ने 35 फीसदी टिकट मुसलमानों को दिया है।

इससे क्या होगा….इसका क्या असर पड़ेगा…इसका क्या नतीजा होगा। समझदार लोग समझ सकते हैं। यूपी या तमाम राज्यों में मुसलमानों ने हर बार एकजुट होकर किसी एक पार्टी को वोट दिया है। ये अच्छा कदम माना जाता है। लेकिन क़ौम के लीडर ओवैसी साहब और बहनजी मायावती मुसलमानों को टिकट देकर उनके वोट को बिखेरना चाहती हैं। अगर दोनों दल वाकई बीजेपी को हराना चाहते हैं तो क्यों नहीं एकजुट हुए, क्यों नहीं समझदारी से दूसरे दलों से तालमेल किया।

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बिहार के विधानसभा चुनाव में बीएसपी और क़ौम के लीडर ओवैसी साहब का चुनावी गठबंधन था। आखिर यूपी में ऐसा क्या हुआ जो दोनों अलग-अलग हो गए? इसका जवाब आना चाहिए। मगर जवाब नहीं आएगा, ओवैसी समर्थक मुझे फिर गालियां देंगे। मायावती समर्थक इसे तवज्जो नहीं देंगे। सपा और कांग्रेस के लिए इसमें कुछ नहीं है तो वो बाहर से मज़े लेंगे। खैर।

ओवैसी साहब को लेकर यूपी में मुसलमानों का रुख ठंडा है। क्योंकि वो मुसलमानों के शक के दायरे में हैं। उन्हें बीजेपी का एजेंट तक कहा गया।

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अब समझिए। ओवैसी की यह इमेज कैसे टूटेगी कि वो बीजेपी की बी टीम या बीजेपी के साथ नहीं मिले हुए हैं। लेकिन कल की घटना में जिस तरह दोनों आरोपी पकड़े गए हैं, उसे यह इमेज तोड़ने में शायद मदद मिले।

कल जो घटना हुई है, उससे तो लगता है कि इसके पीछे दक्षिणपंथी ताकतें हैं। आरोपी सचिन बीजेपी का कार्यकर्ता है। उसके बीजेपी के तमाम नेताओं के साथ फोटो हैं। तभी मैंने कल रात लिखा था कि इस हमले से ओवैसी और बीजेपी दोनों को फायदा या नुकसान होगा।

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इस घटना के बाद अगर मुसलमानों की हमदर्दी ओवैसी से बढ़ती है तो जाहिर है कि ओवैसी को और बीजेपी को इसका सीधा फायदा होगा। ऐसे में बहनजी भी कुछ फीसदी मुस्लिम वोट झटक लेती हैं तो साहिबान फायदे में कौन रहेगा और नुकसान में कौन रहेगा….अब खुद तय कर लीजिए।

मुसलमान पहले भी नुकसान में था और समीकरण बदलने पर भी नुकसान में रहेगा।

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ओवैसी साहब इस विधानसभा चुनाव के बाद यूपी में ही रुकें। अगले पांच साल तक यूपी की सारी बड़ी मस्जिदों में पहुंचें। अपना संगठन खड़ा करें और 2026 के चुनाव में उतरें या कम से कम 2024 के लोकसभा की तैयारी करें तो शायद यूपी की मुस्लिम राजनीति कुछ शक्ल ले सके। उनको अपना हैदराबाद और शानदार मेडिकल कॉलेज की ज़िम्मेदारी छोड़नी होगी।

अभी यूपी वाला प्रयोग घातक है। क़ौम का वोट बेकार जाएगा और ओवैसी साहब को शायद ही कोई जीत हासिल हो।

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जाने दीजिए, क़ौम के अंधभक्त नाराज़ हो जाएंगे।

अब बात करते हैं उन दो आरोपियों पर जिन्होंने ओवैसी साहब की कार पर कट्टे से कार के निचले हिस्से में गोली चलाई।

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सचिन और शुभम। दोनों शॉर्प शूटर नहीं हैं और न कोई क्रिमिनल रेकॉर्ड।

शुभम दसवी पास है। सहारनपुर का रहने वाला है। खेती-किसानी करता है।

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सचिन ग्रेटर नोएडा के पास बदलापुर में रहता है और एक प्लेसमेंट फर्म में साझीदार है। इसमें सचिन का प्रोफाइल गौर करने लायक है। नीचे सचिन का फ़ोटो बीजेपी नेताओं के साथ…

इन दोनों का इस्तेमाल हिन्दुत्वादी शक्तियों ने चालाकी से किया है। जिन लोगों ने इनका इस्तेमाल किया है, शायद इनमें से किसी को यह नहीं मालूम कि उन हिन्दू नेताओं के बच्चे क्या बिजनेस करते हैं और उन्होंने क्या पढ़ाई की हुई है? क्यों नहीं उन लोगों ने अपने बच्चों का इस्तेमाल इस काम में किया? सचिन को ही क्यों चुना और सचिन ने अपने साथ दसवीं पास शुभम को क्यों जोड़ा?

आप लोगों को जामिया में हुआ गोलीकांड याद होगा। उसमें नोएडा के ही एक गांव के नाबालिग को कट्टा लेकर गोली चलाने भेजा गया था। ताकि जामिया के आंदोलन का रुख मोड़ा जा सके। उस बच्चे का भी इस्तेमाल हुआ था। कोई उसके घर जाकर पता करे कि क्या योगी सरकार ने उसे कौई नौकरी वगैरह दी।

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गांधी की हत्या में गोडसे का इस्तेमाल जिस तरह सावरकर ने किया था, ठीक उसी तरह तमाम राजनीतिक हत्याओं या गोलीकांडों में शूटर का इस्तेमाल कोई न कोई ताकत कर रही होती है। इसे आप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई हत्याओं के पैटर्न में भी देख सकते हैं।

तो… सचिन और शुभम की जल्द जमानत हो जाएगी। अगर उनका इरादा ओवैसी साहब की हत्या करना रहा होता या जिनके इशारे पर उन्होंने इस नादानी को अंजाम दिया, उसने इन्हें गोली चलाने के लिए कम से कम कट्टा तो हरगिज न दिया होता।

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यह मात्र सनसनी फैलाने और चुनाव का नेरेटिव मोड़ देने का कृत्य है। साजिश है। सपा से सीधे मुकाबले में फंसी बीजेपी को यूपी चुनाव में नानी याद आ गई है। उसने ध्रुवीकरण सारी कोशिश कर ली, समझदार हिन्दुओं ने उसे होने नहीं दिया। वो इस पार्टी की चाल समझ गए हैं। अगर इस घटना से यूपी चुनाव का नेरेटिव बदलता है तो जाहिर है कि बीजेपी को सीधा फायदा होगा।

अपना खुतबा यहीं खत्म करता हूं। एक हफ्ते बाद यूपी में 70 सीटों के लिए चुनाव है। खुद से सारे सवाल करें, फिर तय करें कि क्या करना है। मैं आपसे किसी पार्टी के लिए वोट नहीं मांग रहा हूं, बस लोगों से समझदारी की उम्मीद कर रहा हूं।

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कल मैंने ओवैसी साहब पर हमले की निन्दा नहीं की थी। माफ कीजिएगा। मैं उस घटना की कड़ी निन्दा करता हूं। हमला किसी भी रूप में निन्दनीय होता है। लेकिन अपने ज़मीर और होश को कायम रखते हुए यह भी कह रहा हूं कि कोई भी नेता आपके वर्तमान या भविष्य को नहीं बदल सकता। मुगालते में मत रहिए। कायदेआजम तक हम लोगों का वर्तमान और भविष्य नहीं बदल सके।


श्रवण सिंह राठौर-

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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ सांसद असदुद्दीनओवैसी को केंद्र की मोदीसरकार ने जेडसुरक्षा देने का निर्णय लिया है। जेडसुरक्षा का मतलब अब 22 कमांडों 24 घंटे ओवैसी के साथ रहेंगे।

गाड़ी का शीशा टूटने के आधार पर तुरंत मोदी जी ने न केवल आरोपियों को तत्काल पकड़ लिया वरन इस छोटी सी घटना को आधार बनाकर ये जो सुरक्षा देने का फैसला लिया है, इसके मायने हम अच्छे से समझ रहे हैं।

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जांच तो इस बात की होनी चाहिए कि ये हमला भी चुनावी लाभ की संकीर्ण सोच के चलते तो कहीं नहीं करवाया है ? मोदी जी और अमित शाह जी की जोड़ी कुछ भी करवा सकती है।

मोदी जी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार के ओवैसी को सुरक्षा देने के इस सियासी फैसले का मैं कड़ाविरोधकरताहूँ।

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बताओ, ये रिश्ता क्या कहलाता है ? मैं केंद्र की भाजपा सरकार से कहता हूं कि देश की आम अवाम की चिंता करने की बजाय आप ये जो असदुद्दीन ओवैसी की जो फ़िक्र कर रहे हो, ये आपका दोहराआचरण साबित करता है। आपकी कथनी और करनी में भारी अंतर अब सभी को समझ आ रहा है। क्योंकि ये वो ही ओवैसी है, जिसने कुछ समय पूर्व बयान दिया था कि “मेरी गर्दन पर कोई छुरी रख दें तो भी मैं भारत मां की जय नहीं बोलूंगा। ” ऐसे साम्प्रदायिक सोच वाले ओवैसी को जेडश्रेणी की सुरक्षा देने का मैंकड़ाविरोधकरता हूँ।।

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1 Comment

1 Comment

  1. Sanjay Verma

    February 4, 2022 at 6:36 pm

    एक एक वाक्य यूसुफ भाई आपका सटीक हैं।यही हालात है। सत्ताधारी दल जो चाह रहा चुनाव को उसी रुख में मोड़ने की कोशिश की जा रही।जिससे सत्ताधारी दल अपने मकसद में कामयाब होकर दुबारा सत्तासीन हो सकें।इसलिए जनता को सोचना होगा। अपने मताधिकार का उपयोग सही जगह करने के लिए एक बार सोचना जरूर चाहिए।

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