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मजीठिया लागू होने के बाद इस मीडिया संस्थान के पत्रकारों का न्यूनतम वेतन 40 हजार हो गया है!

गुवाहाटी : 29 नवंबर को पूर्वोत्तर के दौरे पर आ रहे प्रधानमंत्री गुवाहाटी से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक असम ट्रिब्यून के स्वर्ण जयंति समारोह में भाग लेंगे। यह देश का एक मात्र ऐसा अखबार है जिसने अपने कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेतन आयोग बिना देरी किए लागू कर दिया। मजीठिया लागू होने के बाद इस संस्थान के पत्रकारों का न्यूनतम वेतन 40 हजार हो गया है। जबकि इसी प्रदेश में दूसरे अखबारों के पत्रकारों की अधिकतम सैलरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लायक भी नहीं है। अर्थात 90 फीसदी पत्रकारों का वेतन 6000 हजार से नीचे है। जो एक राजमिस्त्री और उसके मजदूर की दिहाड़ी से भी कम है।

<p>गुवाहाटी : 29 नवंबर को पूर्वोत्तर के दौरे पर आ रहे प्रधानमंत्री गुवाहाटी से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक असम ट्रिब्यून के स्वर्ण जयंति समारोह में भाग लेंगे। यह देश का एक मात्र ऐसा अखबार है जिसने अपने कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेतन आयोग बिना देरी किए लागू कर दिया। मजीठिया लागू होने के बाद इस संस्थान के पत्रकारों का न्यूनतम वेतन 40 हजार हो गया है। जबकि इसी प्रदेश में दूसरे अखबारों के पत्रकारों की अधिकतम सैलरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लायक भी नहीं है। अर्थात 90 फीसदी पत्रकारों का वेतन 6000 हजार से नीचे है। जो एक राजमिस्त्री और उसके मजदूर की दिहाड़ी से भी कम है।</p>

गुवाहाटी : 29 नवंबर को पूर्वोत्तर के दौरे पर आ रहे प्रधानमंत्री गुवाहाटी से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक असम ट्रिब्यून के स्वर्ण जयंति समारोह में भाग लेंगे। यह देश का एक मात्र ऐसा अखबार है जिसने अपने कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेतन आयोग बिना देरी किए लागू कर दिया। मजीठिया लागू होने के बाद इस संस्थान के पत्रकारों का न्यूनतम वेतन 40 हजार हो गया है। जबकि इसी प्रदेश में दूसरे अखबारों के पत्रकारों की अधिकतम सैलरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लायक भी नहीं है। अर्थात 90 फीसदी पत्रकारों का वेतन 6000 हजार से नीचे है। जो एक राजमिस्त्री और उसके मजदूर की दिहाड़ी से भी कम है।

लोगों का मानना है कि कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का शिरकत करना न केवल अखबार के लिए गर्व  की बात है बल्कि प्रधानमंत्री के लिए भी सौभाग्य की बात है कि वे ऐसे अखबार के समारोह में जाएंगे जिसके कर्मचारियों की कोई शिकायत प्रबंधन से नहीं है। विश्व का यह पहला अखबार है जो अपने किसी एक कर्मचारी  को पिछले 75 साल में पेट पर लात मारा हो।  प्रबंधन अपने लिए महंगी गाड़ी और बंगला लेकर खुश नहीं होता बल्कि वह खुश होता है अपने कर्मचारियों के मुहं पर हंसी देख कर। कहा जाता है कि एक बार अखबार के मालिक को किसी ने कहा कि आप इतने प्रतिष्ठित अखबार का मालिक हो कर इस सड़ी गली कार से चलते हैं तो उन्होंने कहा कि मैं नई गाड़ी पर चढ़ कर खुश नहीं होता, मैं खुश होता हूं अपने कर्मचारियों को गाड़ी पर चढ़ते देख कर।

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नीरज झा की रिपोर्ट.

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0 Comments

  1. vinay goel

    November 27, 2014 at 7:52 am

    i am happy to know qwners views about workers.

  2. purushottam asnora

    November 28, 2014 at 1:28 am

    असम ट्रीब्यून से उत्तरभारत के हरामखोर मालिक कुछ नहीं सीखेंगे, क्योंकि इनका पेट कभी भरने वाला नहीं है।पत्रकारों की समस्या संपादक को प्रवन्धन के सामने रखनी चाहिए लेकिन जब संपादक ही दल्ला हो तब समस्याऐं रखे कौन? वर्षों-वर्षों से बधुवा मजदूरों के लिए ये संपादक उनकी खबर छपना नियामक मानते हैं और समय- असमय हटा देने की धमकी भी देते हैं। इनकी मीटिंग बेचारे बधुवा पत्रकारों को कुठ देने की उनसे कुछ लेने की होती हैं।

  3. ek karmchaaree

    November 29, 2014 at 6:18 am

    Niraj ji is jaankaaree Ke liye badhaaee.ham sahara vaalon ko ko majeetheeya kyaa do saal se d.a. nahee mil rahaa hai.saalaanaa inkriment bhee samay par nahee lagtaa.na isbaar bonas bhee nahee milaa.malik jail me hai naa isliye salon be tyohhaaree (festival advaans) bhee nahee diyaa.

  4. Kashinath Matale

    December 2, 2014 at 1:43 pm

    Congratulation for both the TheTribune management and The Tribune employees. Yeh sahi baath hai ki The Tribune sabse pahale Majithia Wage Board Implement kiya hai.
    Sir mai aape madhamse The Tribune ke employees, Journalist, Non0journalists (Sub Editor, Reporter, Clark, Sr. clark, Super Visor, Printor, Helper) in karmachariyonki salary slip, aur Manisana WB ki kuchh post delete kiye (paster) inke bareme kaisa fitment kiya hai, iski jankari mujhe mere emails address [email protected] ya bhadas4media.com par post karne ki krupa kare.
    Hamare yaha galat tarikese fixation huya hai, DA 189 ke addhar par diya ja raha hai, jabki 167 ke aadahr par milna chahiye. Management ne annual increment stop karne ki soch li hai.
    Isililye aapke management kaise fitment kiye , DA kita hai. etc jankari chahiy.
    Thanks.

  5. Sunil kumar

    December 5, 2014 at 2:58 pm

    good news for All eastern print media workers
    kuch times ke baad sab News paper lagu jarur karega
    wait some month – in 2015

  6. Manohar Gaur

    December 7, 2014 at 7:40 am

    ऐसा प्रबंधन सचमुच बधाई का पात्र है.

  7. indian

    December 8, 2014 at 3:46 pm

    पिछले दिनों IBN7 की एक महिला पत्रकार बहुत खुश होकर बता रही थीं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके (मैडम के) एक ट्वीट का जिक्र अपने रेडियो भाषण मन की बात में किया. सुना है, मोदी जी सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हैं, लेकिन हैरानी इस बात की है, कि उन्होंने अब तक भड़ास नहीं पढ़ा ! काश, वो किसी दिन भड़ास पढ़ें, तब उन्हें पता चलेगा कि मीडिया नाम के दीपक तले कितना अँधेरा है…. मैं तो कहूँगा कि अगर मोदीजी भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति वाकई गंभीर हैं, तो उन्हें सबसे पहले भ्रष्ट मीडिया मालिकों से निपटना चाहिए. हर अखबार. हर न्यूज़ चैनल अपने आपको नंबर वन कहता है, लेकिन जब वेतन देने की बारी आती है, तो दुम दबाकर आखिरी नंबर का हो जाता है.
    सच कहूँ तो अब मोदीजी के इरादों पर भी शक होने लगा है. माना कि वो भड़ास नहीं पढ़ पाये होंगे, लेकिन क्या उन्हें मीडिया में चल रही मक्कारी की जानकारी नहीं होगी? क्या उन्हें नहीं पता कि मजीठिया के नाम पर क्या गड़बड़-घोटाला हो रहा है? …. लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने जान-बूझ कर आँखें मूँद रखी हैं.

  8. Kashinath Matale

    January 24, 2015 at 10:16 am

    [quote name=”indian”]पिछले दिनों IBN7 की एक महिला पत्रकार बहुत खुश होकर बता रही थीं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके (मैडम के) एक ट्वीट का जिक्र अपने रेडियो भाषण मन की बात में किया. सुना है, मोदी जी सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव हैं, लेकिन हैरानी इस बात की है, कि उन्होंने अब तक भड़ास नहीं पढ़ा ! काश, वो किसी दिन भड़ास पढ़ें, तब उन्हें पता चलेगा कि मीडिया नाम के दीपक तले कितना अँधेरा है…. मैं तो कहूँगा कि अगर मोदीजी भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति वाकई गंभीर हैं, तो उन्हें सबसे पहले भ्रष्ट मीडिया मालिकों से निपटना चाहिए. हर अखबार. हर न्यूज़ चैनल अपने आपको नंबर वन कहता है, लेकिन जब वेतन देने की बारी आती है, तो दुम दबाकर आखिरी नंबर का हो जाता है.
    सच कहूँ तो अब मोदीजी के इरादों पर भी शक होने लगा है. माना कि वो भड़ास नहीं पढ़ पाये होंगे, लेकिन क्या उन्हें मीडिया में चल रही मक्कारी की जानकारी नहीं होगी? क्या उन्हें नहीं पता कि मजीठिया के नाम पर क्या गड़बड़-घोटाला हो रहा है? …. लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने जान-बूझ कर आँखें मूँद रखी हैं.[/quote]
    YEH PADHKAR BURA LAGTA HAI. lAGTA HAI BHRASTHACHAR KHATM NAHI HOGA. SAB DHONG KAR RAHE HAI.

  9. sudhirpress@rediffma

    May 17, 2015 at 5:22 pm

    padkar maja aagaya

  10. sudhirpress@rediffma

    May 17, 2015 at 5:24 pm

    badhai

  11. देवेन्द्र वार्ष्णेय

    May 31, 2015 at 3:52 pm

    अगर वाकई यह सत्य है तो ऐसे संस्थान को बार-बार सलाम ।
    बाकी अन्य संस्थाओं को भी इनसे सबक लेने की जरुरत है।
    और ध्यान रखना चाहिए मजदूरों की बद दुआओं को

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