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तनख्वाह आधी किए जाने का फरमान सुनते ही संपादक आशीष बागची बोले- अब नौकरी छोड़ दूंगा!

वाराणसी : जनसंदेश टाइम्स वाराणसी लगातार खोखला हो रहा है और जो संकेत मिल रहे हैं, ज्यादा दिन दूर नहीं जब इस अखबार की सिर्फ फाइल कापी ही छपेगी। छह फरवरी, 2012 को वाराणसी से इस अखबार का प्रकाशन शुरू होने के बाद स्थानीय संपादक के रूप में कार्यभार संभालने वाले इस शहर के ख्यातिनाम पत्रकार आशीष बागची को वैसे तो लगभग साढ़े चार वर्षों में यहां कई बार अपमान के घूंट पीने पड़े, लेकिन 18 अक्टूबर की शाम तो हद हो गयी, जब आफिस पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि उनकी तनख्वाह आधी कर दी गयी है। बस उनका मिजाज एकदम से उखड़ा और उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि वह नौकरी छोड़ रहे हैं।

<p>वाराणसी : जनसंदेश टाइम्स वाराणसी लगातार खोखला हो रहा है और जो संकेत मिल रहे हैं, ज्यादा दिन दूर नहीं जब इस अखबार की सिर्फ फाइल कापी ही छपेगी। छह फरवरी, 2012 को वाराणसी से इस अखबार का प्रकाशन शुरू होने के बाद स्थानीय संपादक के रूप में कार्यभार संभालने वाले इस शहर के ख्यातिनाम पत्रकार आशीष बागची को वैसे तो लगभग साढ़े चार वर्षों में यहां कई बार अपमान के घूंट पीने पड़े, लेकिन 18 अक्टूबर की शाम तो हद हो गयी, जब आफिस पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि उनकी तनख्वाह आधी कर दी गयी है। बस उनका मिजाज एकदम से उखड़ा और उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि वह नौकरी छोड़ रहे हैं।</p>

वाराणसी : जनसंदेश टाइम्स वाराणसी लगातार खोखला हो रहा है और जो संकेत मिल रहे हैं, ज्यादा दिन दूर नहीं जब इस अखबार की सिर्फ फाइल कापी ही छपेगी। छह फरवरी, 2012 को वाराणसी से इस अखबार का प्रकाशन शुरू होने के बाद स्थानीय संपादक के रूप में कार्यभार संभालने वाले इस शहर के ख्यातिनाम पत्रकार आशीष बागची को वैसे तो लगभग साढ़े चार वर्षों में यहां कई बार अपमान के घूंट पीने पड़े, लेकिन 18 अक्टूबर की शाम तो हद हो गयी, जब आफिस पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि उनकी तनख्वाह आधी कर दी गयी है। बस उनका मिजाज एकदम से उखड़ा और उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि वह नौकरी छोड़ रहे हैं।

वाराणसी से अखबार की शुरुआत से ही उचक्कामार मालिकाना हक जताने वाले एक व्यक्ति ने बागची दादा को मनाने की घंटों कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने। लगभग 40 वर्षीय करिअर में जनवार्ता, आज, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान और बतौर स्थानीय सम्पादक अमर उजाला (हल्द्वानी) सरीखे अखबारों में सेवाएं दे चुके बागची दादा की मानें तो उनका लगभग चार माह का वेतन भी बकाया है।

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जनसंदेश टाइम्स, वाराणसी में ही बीते नवरात्र के दौरान स्ट्रिंगर फोटोग्राफर सौरभ बनर्जी को भी निकाल दिया गया। यह सोचकर आपका दिल कांप उठेगा कि किसी प्रकार अपनी रोजी रोटी चला रहे कमजोर बंगभाषी सौरभ दादा ने भी ऐन सप्तमी की शाम विदाई की कल्पना नहीं की होगी, जब वह घर से यह सोचकर निकले थे कि रात को बच्चों व परिवार को मां दुर्गा की झांकी दिखाने ले जाएंगे। खैर, निष्ठुर अखबार प्रबंधनों में यदि मानवीय संवेदनाएं बची होतीं तो क्या ये नौबत आती?

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार योगेश गुप्त पप्पू की रिपोर्ट.

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0 Comments

  1. Raushan Choudhary

    October 21, 2016 at 4:23 pm

    is tarh chalti rahi to bahut jald band ho jayegi jansandesh times

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