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साहित्य

अशोक पांडे की एक साथ तीन किताबें आ रही हैं!

जे सुशील-

अशोक पांडे (हलद्वानी वाले, रामनगर वाले, पहाड़ वाले आदि आदि) से मैं आज तक नहीं मिला हूं लेकिन ज़िंदगी की कई सारी तमन्नाओं में एक उनसे मिलना भी है. हालांकि मैं ये मानता हूं कि प्रिय लेखकों से नहीं मिलना चाहिए फिर भी मैं चाहूंगा कि मैं बुतरू को उसके साथ दो दिन के लिए छोड़ दूं. ऐसा सोचने के कई सारे कारण हैं लेकिन फिलहाल अशोक जी पर बात करते हैं.

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उनके बारे में मुझे करीब सात साल पहले किसी ने यह संदर्भ देते हुए बताया कि उन्होंने काफ्का की जीवनी का अनुवाद किया है. मैंने बहुत चिरौरी कर के वो अनुवाद मांगा और पढ़ते हुए लगा कि इस आदमी को हिंदी साहित्य के लोग कैसे नहीं जानते हैं. उससे पहले तक किसी साहित्यानुरागी को मैंने अशोक पांडे का जिक्र करते हुए नहीं पाया था. धीरे धीरे पता चला कि ब्लॉगिंग की दुनिया में लोग उन्हें जानते हैं. इन्हीं दिनों शुभमश्री की एक पोस्ट पर लपूझन्ना का जिक्र आया और धीरे धीरे मैं अशोक पांडे की दुनिया में धंसता चला गया जैसे कि कोई दलदल हो.

हिंदी में बहुत कम लोगों को मैंने खोज खोज कर पढ़ा है लेकिन अशोक पांडे का लिखा हुआ खोज खोज कर पढ़ने में भयंकर आनंद की प्राप्ति हुई है. उन्हें पढ़ते हुए इरफान (गूफ्तगू वाले ) से उनकी यारबाजी के कुछ पोस्टों से गुजरता हुआ उनके संगीत कलेक्शन से गुजरा और फिर बहुत हिम्मत कर के मैंने उनसे नंबर मांगा.

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पिछले तीन साल में मैं उन्हें कभी कभार फोन करता हूं जब कभी मुझे किसी किताब के बारे में कोई जानकारी चाहिए होती है. उन्हें जानते हुए मुझे हमेशा लगता रहा कि हिंदी साहित्य की दुनिया ने उनके साथ अन्याय किया है. हालांकि अशोक खुद ऐसा नहीं मानते क्योंकि वो इस दुनिया को इतनी अच्छी तरह समझ चुके हैं कि वो इस बारे में बात नहीं करना चाहते हैं.

मैंने कम से कम चार पब्लिशरों को अशोक जी के बारे में बताया होगा. मैं चाहता था कि उन्हें छापा जा. सभी ने कहा कि उनका नंबर दो. अशोक जी से डरते डरते नंबर लेकर सभी को दिया लेकिन जैसा कि हिंदी की दुनिया में होता है. पब्लिशरों के अपने स्टार लेखक होते हैं.

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अशोक पाठकों के स्टार लेखक हैं. उनसे अधिक उनके पाठक चाहते थे कि उनका लिखा आए. ऐसा नहीं है कि अशोक पहले छपे नहीं. बहुत कम उम्र में उनकी कविताओं का संग्रह आया और फिर कुछ अनुवाद भी आए लेकिन अनुवाद को हिंदी की दुनिया कब पूछती है. बाकी हिंदी में स्टार होने के लिए जो कुछ करना होता है वो पहाड़ पर बैठा पहाड़ में रमा, दुनिया भर में घूम चुका, एक एक शब्द के अनुवाद के लिए अपनी पूंजी खत्म कर देने वाला आदमी नहीं कर सकता.

कुछ साल पहले किसी लेखक ने बहस करते हुए कहा कि अशोक पांडे छपना ही नहीं चाहते हैं. मैंने उस समय उस लेखक को जवाब नहीं दिया था. लेकिन आज उस लेखक को ये जवाब मिल गया होगा क्योंकि अशोक पांडे की एक नहीं तीन तीन किताबें एक साथ आ रही हैं.

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लपूझन्ना, बब्बन कार्बोनेट और दुनिया भर की जानी मानी स्त्रियों के बारे में लिखी किताब. इनमें से स्त्रियों वाली किताब बिंज हिंदी पर आई थी और मैं कह सकता हूं कि अनुराग वत्स इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं. फिलहाल किताब पढ़ने के बाद उसकी आलोचना भी की जा सकती है लेकिन मैंने जितना भी हिंदी साहित्य पढ़ा है या हिंदी में पढ़ा है उस आधार पर कह सकता हूं कि अशोक पांडे को पढ़कर निराशा नहीं होगी.

कम से कम लपूझन्ना से तो कतई नहीं. लपूझन्ना की कहानी का ये हाल है कि कबाड़खाना के बाद अशोक जी ने उसे किसी और ब्ल़ॉग पर लगाना शुरू किया था दो ढाई साल पहले और हमारे जैसे कई लोग उन्हें मैसेज कर दिया करते थे कि आज का एपिसोड क्यों नहीं आया. अड़तीस एपिसोड छपे थे जिसके बाद अब किताब आई है.

मैं बब्बन कार्बोनेट को लेकर भयंकर उत्सुक हूं क्योंकि उसका मजमून मुझे नहीं पता है. प्रभात खबर के अपने कॉलम में मैंने लिखा है कि इस साल जिन किताबों का इंतज़ार है उसमें बब्बन कार्बोनेट भी है.

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लपूझन्ना के बारे में इतना कहना पर्याप्त होगा कि मनोहर श्याम जोशी के बाद मध्यवर्गीय जीवन का ऐसा सजीव चित्रण आपने कम पढ़ा होगा. ये कोई तुलना नहीं है. जैसे कि कसप और कुरू कुरू स्वाहा की भाषा इतनी जानदार है कि अब तक उसका अनुवाद अंग्रेजी में सभव नहीं हो पाया है ( अगर हुआ तो मुझे ज़रूर बता दे कोई) उसी तरह लपूझन्ना की भाषा ऐसी अद्भुत है कि आप लगातार और बार बार इसे पढ़ सकते हैं.

इस सीरिज ने हिंदी को कितने सारे नए शब्द दिए हैं उसकी चर्चा फिर कभी. फिलहाल मैं यही कहूंगा कि अगर इस एक ही किताब खरीदनी हो तो लपूझन्ना खरीदें. दो खरीदनी हो तो लपूझन्ना और बब्बन कार्बोनेट. तीसरी वाली किताब बिंज पर फ्री में पढ़ी जा सकती है लेकिन किताब को हाथ में लेकर पढऩे का सुख कुछ और ही है.

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अशोक जी को शुक्रिया कि उन्होंने अपनी किताबें छपने के लिए दीं. तीनों पब्लिशरों को भी साधुवाद कि उन्होंने अशोक पांडे को छापा. हिंदी के पाठकों को पैसे खर्च कर के इन किताबों को बेस्टसेलर बना देना चाहिए ताकि अशोक पांडे जैसे लोग निरंतर और सुंदर लिखते रह सकें.

नोट- यहां किताब खरीदना संभव नहीं है मेरे लिए इसलिए कोई अमेरिका आ रहा हो तो मेरे लिए बब्बन कार्बोनेट की एक प्रति लेता आए. मैं बदले में कोई अच्छी किताब दूंगा साथ में किताब का मूल्य भी. लपूझन्ना किसी ने खरीदने का वादा कर दिया है.

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चंदन पांडेय-

पिछले के पिछले वर्ष एक दुर्जननुमा सज्जन मुझे इस बहस में उतार लाये थे कि जिस हिन्दी समाज में अशोक पांडे के गद्य की कद्र नहीं हो वह बेकार समाज है और अशोक को कोई प्रकाशित क्यों नहीं करता? मैंने कहा कि भाई, मुझसे क्यों पूछते हो? बात टेढ़ी हो गई और अंतत: मैं ब्लॉक-गति को प्राप्त हुआ था।

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बहरहाल, बतलाना यह था कि अशोक को प्यार करने वाले लोग आपस में इसलिए भी झगड़ पड़ते हैं कि कौन अधिक प्यार करता है।

फिर यह किताब दिखी जिसका इंतजार है। लपूझन्ना।

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अशोकजी से पहली मुलाक़ात बहुत पहले हो गई थी जब हमलोग अमिखाई, दरवेश और शुंतारों तानिकावा की कवितायें उनके अनुवाद में पढ़ रहे थे। मार्केस के इंटरव्यू के अनुवाद वाले हिस्से कथादेश में पढ़ रहे थे और सबसे संगीन मुलाक़ात तब हुई जब ‘लस्ट फॉर लाइफ’ का उनका अनुवाद पढ़ा।

फिर वे साक्षात मिले। अकस्मात की शक्ल में। दिल्ली पुस्तक मेला। 2007 या 08। वे लालबहादुर वर्मा के साथ बैठे हुये थे। इतना अकस्मात था कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाया।

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उनके गद्य का प्रशंसक हूँ। जिन्हें आम दुनिया साधारण समझती है उस साधारण को अशोक बड़े प्यार और तवज्जो से अपने गद्य में रखते हैं जिससे वह विलक्षण हो उठता है।

बड़े भाई को किताब की बधाई।

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सुदीप्ति-

Ashok Pande जी के चाहने वालों के लिए तो यह कमाल का नया साल है। एक साथ तीन किताबें और क्या चाहिए।
जाइए दद्दा, चिकन कौन कहे मटन को भी न्योछावर करते हैं इस जनवरी।

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मज़ाक की बात नहीं! भाषा की भूख को तृप्ति प्रदान करते लेखक कितने कम हैं न। अशोक जी को खोज-खोज कर पढ़ने वाले ही बहुत हैं और हम भी उनमें से एक हैं। मुकेश सीरीज की तस्वीरों पर उनके oneliners से लेकर लंबे पोस्ट और ब्लॉग सब को ढूंढ ढूंढ कर पढ़ते लोगों में हमारा भी शुमार है। और ऐसे और और कितने हैं। सब के लिए नए साल का जश्न है ये किताबें।
पढ़िए, पढ़वाइए और गिफ्ट भी कीजिए हिंदी के दुश्मनों को इनको। उन्हें भी प्यार हो जाएगा। अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर मिल रही है.

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1 Comment

1 Comment

  1. DEVKANT SARASWAT

    February 10, 2022 at 10:20 am

    हमारे अपने आर. के. नारायण
    अचानक एक पासल ा आ, उसुकता से खोला उसम एक बत सुंदर मलट म एक पुतक है िजसम बे पिहया चला
    रहे ह और नाम है लपूझा। कताब देखकर एकदम मजा आ गया,लेखक का नाम देखा अशोक पांडे । अशोक पांडे जी का
    नाम से हमारे भाई अनी सारवत का नाम याद आया धीरे से एक िलप िनकली िजसम अनी सारवत का नाम
    था।
    अनी के ारा मुझे दी गई यह दूसरी िगट थी। पहली पुतक जो अनी ने मुझे दी थी , वह थी ी लाल शुल क
    िस राग दरबारी, िजसको मने करीब 3 बार पढ़ा और हर बार एक नया आनंद िमला। सोचा क लपूझा कुछ वैसे ही
    कताब होगी और अशोक पांडे जी का नाम तो साथ म था ही इससे पहले म पूजनीय अशोक पांडे जी का लॉक सुतली
    वाला बम पढ़ चुका था और हंसते हंसते लोटपोट हो चुका था।
    अशोक अशोक पांडे जी जो भी दखते ह वह कह ना कह हम अपने बचपन म वापस ले जाता है उन गिलय म वापस ले
    जाता है जहां कभी हम खेले ह, वह पड़ोस वाली दुकान पर ले जाता है जहां के समोसे वह जलेिबयां आज भी मुह मे पानी
    लाती ह, उन पुराने दोत से िमलाने ले जाता है वा उन पुराने खेल क तरफ ले जाता है, उन सब पुराने टीचर से
    िमलाता है िजनके साथ हमने बचपन गुजारा है। वह सारे दोत जो कुछ अछा बुरा ना सोच कर दन दन भर साइकल
    पर हम हमारे साथ शहर भर म घूमते थे, उन सब क याद दलाता है। इसके साथ हम ेरत करता है उसी पुरानी
    दुिनया म जाने को जहां से हमने अपनी याा शु क थी।
    इसी के साथ म एक और पुतक का िज करना चांगा वह है पाओलो कोएलो क अकेिमट, हमारे अशोक पांडे जी
    हम उसी वड फेमस बुक अकेिमट क याा कराते ह जो कहती है आपको अपने जीवन म आगे बढ़ने के िलए दुिनया म
    घूमना पड़ेगा, िबरला िवा मंदर नैनीताल जाना पड़ेगा और सब जगह घूमने के बाद यही लगेगा क असली जदगी तो
    के चार तरफ घूमती है और वह है, रामनगर क गिलयां, बोने का बम पकोड़ा, वह िपचर हॉल के 15 िमनट के सीन,
    वह कुचू गमलू का इक, वह रामनगर का फुटबॉल मैच, टांडा के िखलािड़य का वणन और टांडा के िखलािड़य क
    िवजय पर रामनगर क सड़क के िवजय याा, िमठाई वाले का अपनी िमठाई को टांडा क जीत पर सड़क पर मुत
    बांटना।
    मन करता था,क अशोक पांडे जी ने इतना कुछ िलखा हम सबका दल खोल के मनोरंजन कया तो कुछ लपूझा के िलए
    हम भी अपने शद म कुछ िलख। वह रामनगर का पाकतान हमारे बरेली म भी बसता था। हमारे घर के पीछे ही वह
    मुसलमानो क बती थी । वह सब जो रामनगर म मुसलमान के बारे म सोचा जाता था वह सब हमारे बरेली म भी था।
    ईद आने पर िपता जी के िम के यहाँ बड़े मन से बड़े इंतजार के साथ मेवा वाली सेवइयां खाने जाते थे और जब वह
    मुसलमान िम हमारे घर म चाय पीने आते थे तो उनके िलए चीनी िमी के बतन अलग से िनकाले जाते थे और उसने
    एक कप पर हका सा नेल पॉिलश लगा रहता था। वह का धीरे से छुपा के िपताजी के मुसलमान दोत को दया जाता था
    तो कहानी सब जगह एक ही थी। यह घुी का खेल बत समझने क कोिशश क लेकन पूरी तरह समझ म नह आया।
    बड़ा मन है क कसी तरह हानी जाके अशोक पांडे जी से यह घुी का खेल सीखा जाए। लफू का तुतला के बोलना
    शु म तो अजीब लगता था लेकन बाद म आनंद आने लगा। बागड़ िबला घुी का उताद था, पांडे जी या बताएंगे
    बागड़ िबला आजकल कहां है। बात बोने के बम पकोड़े क कर तो अब शायद केवल एक बल इछा हे है क अनी
    को कह क पांडे जी के साथ कम से कम एक बार बोने के बम पकौड़े क पाट जर करा द। कनल रंजीत का उपयास
    शायद हम सबने बचपन म अपने चाचा, बुआ के पास देखा है उसक याद ताजा हो गई। वह कछुए का कसा वाकई
    बत रोचक है दुगा दुगाद माटसाहब, लाल सह और कछुआ वाकई इनके साथ 10 दन लास म कैसे िनकल गए पता
    नह चला।
    टांडा का फुटबॉल लब यह शायद इस उपयास का सबसे बेट पाट है। रामनगर क टीम अछा खेलती थी,पर टांडा से
    असर हारती थी। टांडा वाल को हराने के िलए इंिडयन एयरलाइंस क टीम को दली से बुलाया गया, जो चिपयन
    टीम थी। टांडा शु म मैच हार रहा था लेकन रामनगर को काले खाँ का हारना मंजूर ना था। रामनगर वालो ने
    पवेिलयन म बैठकर काले खाँ क टीम को जीता दया। दलपत हलवाई ने सारी दुकान ठेले पर लादकर रोते ए पूरे
    रामनगर को जलूस म िमठाई िखलाई। िशबन गोलकपर ने काले खाँ को पूरे जुलूस म कंधे पर उठाए रखा। हमारा पेले
    कालेखा ही था।
    ऑेिलया के रापित के िलए 9 फुट क खाट कुछ फेयरी टेल से कम मजेदार कहानी नह थी जोक बचपन म हम अपनी
    दादी से कभी-कभी सुनते थे।
    जोाफ के ितवारी माटसाहब और उनका यारा गंगाराम सब अनोखा है इस कताब म।
    मुरादाबाद से आए ए साइकल वाले का 24 घंटे तक साइकल चलाना सब क लाइफ का एक िहसा रहा है। िवान
    का दूसरा चैटर और वह चने से चने के पौधे बनाना एक ानवधक कसा पुतक को एक दूसरे आयाम क तरफ ले जाता
    है। लफू ना होकर भी इस कताब का नायक है जो असर िपताजी के बटुए से पैसे चुरा कर घुी खेलता है, बोने का बम
    पकौड़ा खाता है और िपचर देखता है। उसे डर नह है क कब टुनडे माटसाहब संटी से उसक िपटाई करगे। कताब
    जगह-जगह मोड़ लेती है, बीच म लाल बेल बॉटम पहने अंेजी मैडम का भाई िगटार बजाता आ तुत होता है वह
    रामनगर वाल को सयता िसखाने क कोिशश करता है पर रामनगर तो रामनगर है कसी क नह सुनता।
    फर वह अचानक से गोबर डॉटर क दो लड़कयां कुचू गमलू का आगमन होता है तो लफू और पांडे जी का 10- 12
    साल क लड़कय से इक चलता है और फर अचानक डॉटर का हानी ांसफर हो जाता है सब धरा का धरा रह
    जाता है कुचू गमलू पूरे उपयास म नायका का रोल अदा करती ह।
    काय पा का गेम काफ रोचक लगा। मेरे इंजीयरग के 30साल के कैरयर म रीपइयाँ नाम क गाड़ी का पहली बार
    नाम सुना पर अछा लगा और उसके बाद पता चला क यह रीपइयाँ लेखक का आिवकार है, जो शायद केवल
    रामनगर म ही चलता है फर उसे कुचू गमलू को िगट देना वह भी मजबूरी म। फर गोबर डॉटर के जाने के बाद
    कबाड़ म पुनः िमला। फर उसे नदी के हवाले करके लेखक ने न जाने कतने योग कए ह क पूछो मत।
    फर आता है नया कलाकार कार टुंनाझरी जो क लोकल बदमाश है और िपताजी से डरता है। इसके बाद शु होता है
    कायपा का खेल िजयाउल के साथ म, याउल एक अछा और सीधा लड़का है, बागड़ िबला उसे हमेशा चोर बना कर
    परेशान करता रहता है। फर लफू का घड़ी चुराना फर बम पकौड़ा खाना और िपचर देखना।
    बीच म मोहरम का जुलूस लोकल उसव याद दलाता रहता है अचानक से लफू बीमार होता है और उसे इलाज के
    िलए मुरादाबाद जाना होता है। मोहरम के जुलूस म हम बूंदी िमलती है जो लफू का भाई खाने नह देता है।
    हम सब ने शायद पिसल के िछलके से बचपन म रबड बनाई होगी, हमारा नायक भी पिसल के िछलक से िपताजी से
    बचकर रबड़ खुशबू वाली बनाता है।
    फर नायक क तीसरी नाियका नसीम अंजुम का आना। नसीम अंजुम नायक क मझली बहन क सहेली है और उसके
    िपता फॉरेट अफसर है समानता क थी क दोन को नैनीताल के िबरला िवा मंदर का टेट देना था और बस इक क
    शुआत हो गई।
    लफू मुरादाबाद से आता है लेखक एक नया गेम चुसू िसखाता है। नसीम अंजुम के साथ टी माटसाहब एजाम क
    तैयारी शु कराते ह और एक नया िखलाड़ी मुा खुड़ी का जम होता है टी माटसाहब क कहानी भी अजीब है। बीच-
    बीच म लाल सह कुचू गमलू को हमेशा लेखक जदा रखता है। नसीम अंजुम इंटेिलजट सुंदर मुसलमान लड़क है और
    अब नायक उससे इक करता है। टी माटसाहब जब घर आते ह और उनका लड़का पूरे घर म टी करता है और वह जो
    सीन है बत ही रोचक है ऐसा लगभग सभी घरो म कभी ना कभी होता है।
    लकड़ी क रैक क कहानी जोक मोहरम के तािजए के जैसी है बार-बार हंसी दलाती है नायक को िजसके चलते िबना
    मतलब म बेइत होना पड़ता है। बाद म इस तािजए से जाने या या अजीबो गरीब चीजे बनती है वह बची कतरने
    बोर म भरी जाती है जो क महीन तक कमर को गम करने के काम आती है। लेखक क कपना गजब क है।
    और वह बचकानी किवता
    हरी हरावे
    लाल जीतावे
    नीली पीली घर को जावे।
    पुराने बचपन क याद दलाती है गोटी िपल हो गई लूड़ो क दुिनया म ले जाते ह।
    एक और कसा िसे से चुंबक बनाना शायद हम सब ने बचपन म िसे से चुंबक बनाई होगी। पीतल के 4 िसे ेन क
    पटरी पर रखना, घंटो ेन का इंतजार करना फर ेन जाने के बाद उनको को ढूंढना, ना िमलने पर दुखी होकर वापस
    आना।
    बीच बीच म , बागड़ िबला अपनी उपिथित को हमेशा जदा रखता है।
    कहानी के अंत म नायक का िबरला िवा मंदर नैनीताल म एडिमशन हो जाता है और सोने के िलए उसे नाइट सूट
    खरीदा पड़ता है जो उसके िलए अजीबो गरीब चीज है और जो क बाद म चल पता चलता है क उसे लेडीज नाईट सूट दे
    दया गया है और वह उसे ही पहनता है। िवा मंदर का अनुशासन उसे एक अछा आदमी बनने के िलए ेरत करता है
    लेकन उसका मान रामनगर म ही बसता है और वह इंतजार करता है क जब अगली छुी हो रामनगर जाए और छुी
    होती है और नायक खुशी खुशी बड बाजे के साथ अपने घर रामनगर जाता है, जहां पर उसका लफू दोत इंतजार कर
    रहा है लाल सह बीसी दखाता आ भागा- भागा आ रहा है बागड़ िबला, बंटू, जगुवा व सू सब उसके पीछे खड़े ह।
    आसमान से फूल झड़ने लगते ह और कहानी अंत होता है।
    यही है हम सब क कहानी हम सब का बचपन िजसे हम सभी को जीने का मन करता है अपने उसी शहर म पुराने शहर
    म पुराने दोत के साथ वही पुराने कूल म जहां से हमने आठव या दसव क है। वहाँ जाने का मन करता है। वही
    पुराने अयापक से िमलने का मन करता है वही पुराने खेल खेलने का मन करता है वही पुरानी दुकान म जाकर और
    पुराने पकवान पुरानी िमठाई गोलगपे ट, लसी, गे का रस सब पुरानी चीज खाने का मन करता है। चलो अपना
    बचपन िजओ और एक लपूझा पढ़ो।
    पेशल कमस :
    आर. के. नारायण को सबने पढ़ा होगा यहाँ रामनगर मालगुड़ी है। लेखक वामी के रोल म है लफतू मिन है, और बाक
    सब वामी के दोतअलग अवतार म है। लेखक से अनुरोध है क अगला काशन रामनगर क कहािनयाँ िलख िजसम
    लपूझा के सारे कलाकार पुनः तुत हो जब उनक उ लगभग 50 क हो चुक हो।
    शुभ कामनाओ के साथ।
    देव कात सारवत
    अपर महाबंधक
    नेशनल थमल पावर कापरेशन लीिमटेड (NTPC)
    8004940465

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