अश्विनी कुमार श्रीवास्तव
Ashwini Kumar Srivastava : दुनिया में कुछ लोग विलक्षण प्रतिभा के साथ आते हैं। जाहिर है, ऐसे लोग भीड़ और भेड़चाल से अलग होते हैं और अमूमन इसका खामियाजा भी भुगतते हैं…कभी रोजी-रोटी के बेहिसाब संघर्ष से जूझ कर तो कभी सभी तरह के आम इंसानों की आंख की किरकिरी बनकर। Yashwant Singh ने जब से भड़ास ब्लॉग लिखना शुरू किया था, तब ही से मैं उनका मुरीद रहा हूँ। उन्होंने बेबाकी और साहस से भड़ास फ़ॉर मीडिया का जो अद्भुत सफर तय किया, उस सफर में उनके साथ इस सफर की शुरुआत करने वाले तकरीबन सभी दोस्त उनके कोपभाजन का शिकार हुए और दुश्मन भी बने। उनके अलावा, यशवंत जी ने बेशुमार नए दुश्मन भी तैयार किये।
मगर इस दौरान हम जैसे बेशुमार मुरीद भी उनको हासिल हुए, जो शुरू के उनके किसी दोस्त या दुश्मन से या फिर खुद यशवंत जी से ही बरसों तलक सीधे तौर पर वाकिफ तो नहीं रहे लेकिन उनके जीवन के हर पहलू से अच्छी तरह वाकिफ जरूर रहे। मुझे याद है कि सन 2000-01 के बैच में आईआईएमसी करने के बाद मीडिया को लेकर जो ख्वाब और तस्वीर बुनी थी, वह जब हर रोज टूटती थी तो किस तरह यशवंत जी और उनका भड़ास फ़ॉर मीडिया हर रोज ही हमें संघर्ष करने की नई ताकत भी दिया करते थे। मीडिया और उसके मठाधीशों के चेहरे पर लगी कालिख दिखाने के लिए आईना पेश करके यशवंत जी ने जो अब तक किया है, उसका कोई जोड़ है ही नहीं। जब 2010-11 में मीडिया की नौकरी को अलविदा किया तो भी कभी भड़ास और यशवंत जी को पढ़ना नहीं छोड़ा। आज भी बदस्तूर यही सिलसिला जारी है।
आज भड़ास और यशवंत जी का जिक्र इसलिये किया क्योंकि उन पर हाल ही में हमला हुआ है और यह सुनकर मुझे बेहद दुख हुआ है। मीडिया में वैसे तो बड़े बड़े पत्रकार हैं लेकिन यशवंत जी को ही अभी तक मैंने वास्तविक पत्रकार माना है। इतने लंबे अरसे में उन पर हमले का दुःसाहस किसी ने नहीं किया। और ज्यादा दुख इस बात का है कि उन पर हमला उन लोगों ने किया है, जिन्होंने हथियार के तौर पर कलम ही थाम रखी है। न जाने ऐसी कौन सी मजबूरी आ गयी, जो कलम छोड़कर उन्हें किसी गुंडे की तरह जवाब देना पड़ गया।
खैर, यशवंत जी ने शारीरिक हमला भले ही पहली बार झेला हो लेकिन बाकी हर तरह के हमलावरों को वह अपनी कलम की ताकत से ही धूल चटा चुके हैं। उम्मीद है इस बार भी उनके दुश्मनों को हार माननी ही पड़ेगी। शुभकामनाओं के साथ यशवंत जी के जज्बे को सल्यूट… कहते हैं न- ”खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो।”
बिजनेस स्टैंडर्ड समेत कई अखबारों में कार्य कर चुके और इन दिनों लखनऊ में उद्यमी के तौर पर स्थापित अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
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Parvinder singh
September 12, 2017 at 3:35 am
हमलावरों का नाम पता दो सालों की हम एेसी ठुकाई करवाएंगे कि शदियों तक ईमानदार लोगों की तरफ देखेंग तक नहीं….