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असद पर हमला दरकिनार, रेस्‍टोरेंट वाले की ईंट से ईंट बजाने पहुंचे पत्रकार नेता

लखनऊ। दो दिन पहले राजधानी के कैसरबाग इलाके में सहारा समूह से जुड़े पत्रकार सैयद असद पर कार सवार बदमाशों ने जानलेवा हमला किया. उन्‍हें गंभीर चोट आई. उनका इलाज ट्रामा में कराया गया, फिलहाल वे खतरे से बाहर हैं और घर पर आराम कर रहे हैं. दूसरी घटना गोमतीनगर के विभूतिखंड में एक रेस्‍त्रां में हुई. न्‍यूज नेशन (स्‍टेट नेशन) एवं एक अन्‍य चैनल के पत्रकारों से मधुरिमा रेस्‍टोरेंट के कर्मचारियों ने मारपीट की. आरोप लगा कि पत्रकार मिलावटी खाने के आरोप पर दबाव बनाकर पैसे मांग रहे थे, जबकि पत्रकारों का जवाब था कि वे बाइट लेने गए थे. सच्‍चाई समझना बहुत मुश्किल नहीं है? 

लखनऊ। दो दिन पहले राजधानी के कैसरबाग इलाके में सहारा समूह से जुड़े पत्रकार सैयद असद पर कार सवार बदमाशों ने जानलेवा हमला किया. उन्‍हें गंभीर चोट आई. उनका इलाज ट्रामा में कराया गया, फिलहाल वे खतरे से बाहर हैं और घर पर आराम कर रहे हैं. दूसरी घटना गोमतीनगर के विभूतिखंड में एक रेस्‍त्रां में हुई. न्‍यूज नेशन (स्‍टेट नेशन) एवं एक अन्‍य चैनल के पत्रकारों से मधुरिमा रेस्‍टोरेंट के कर्मचारियों ने मारपीट की. आरोप लगा कि पत्रकार मिलावटी खाने के आरोप पर दबाव बनाकर पैसे मांग रहे थे, जबकि पत्रकारों का जवाब था कि वे बाइट लेने गए थे. सच्‍चाई समझना बहुत मुश्किल नहीं है? 

खैर, अब आते हैं असली बात पर. लखनऊ में घटनाएं तो दो हुईं, लेकिन पत्रकारों के नेता विरोध प्रदर्शन करने पहुंचे मधुरिमा वाले मामले पर. इस दौरान सैयद असद पर हुए हमले को लेकर कहीं कोई विरोध नहीं किया गया. जीपीओ पर पत्रकारों की भीड़ देखकर कुछ कथित पत्रकार नेता भी पहुंच गए. असली पत्रकारों को धकियाते हुए किनारे कर दिया और खुद सामने जम गए. वे लोग भी जम गए जिनको शायद लखनऊ की मीडिया में पत्रकार कम दलाल ज्‍यादा समझा जाता है. खूब बयानबाजी हुई. रेस्‍टोरेंट वाले का ईंट से ईंट बजा देने की कसमें खाई गई. पर असद पर हुए हमले को लेकर एक भी पत्रकार नेता का मुंह नहीं खुला.  

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खबर तो यह है कि असद के मामले में लाभ की गुंजाइश कतई नहीं है, जबकि मधुरिमा रेस्‍टोरेंट वाले मामले को सलटाने में लंबा वारा-न्‍यारा हो सकता है. अब कौन-कौन लाभांवित होगा यह बाद की बात है, पर नेतागीरी चमकाने के साथ अपनी दुकान चमकाने का मौका मिला तो पत्रकार भाइयों ने कोई कसर नहीं छोड़ी. मधुरिमा स्वीट्स वाले मामले में तो कुछ पत्रकार संगठन और पत्रकार नेताओं की मानो मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई. पुलिस और जिला प्रशासन पर दबाव बनाने की गरज से गांधी की प्रतिमा पर जो पत्रकार इकट्ठे हुए  उनमें पत्रकार कम उनके मुद्दों को लेकर डील करने वाले नेताओं की भीड़ खासी दिखी। 

मधुरिमा स्‍वीट्स के मालिक को मीडिया में आसामी माना जाता है. लिहाजा काम की बजाय दलाली से दुकान चलाने वाले कुछेक पत्रकार और उसके नेता इस मामले को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ रहे हैं. पत्रकारों के कुछ कथित स्वयभूं नेताओं को लग गया है कि वे इस मुर्गी को न सिर्फ हलाल कर डालेंगे बल्कि उससे सोने का अंडा भी निकाल लेंगे. कहा तो यहां तक जाता है कि पत्रकारों के एक नेता को इस फन में महारत भी हासिल है, इसलिए वे शनिवार को हुए धरना प्रदर्शन में सबसे आगे-आगे दिखे. जिन मीडियाकर्मियों से मधुरिमा स्वीट्स वालों ने मारपीट की वो मीडियाकर्मी भी हैरान हैं कि उनके मुद्दे पर लड़ाई लडऩे से ज्यादा लोग अपनी नेतागीरी चमकाने में लगे हैं. मधुरिमा स्वीट्स के मालिकान पद दबाव बनाने की खातिर प्रदेश के मंत्री शिवपाल सिंह यादव से भी संपर्क किया गया. उन्होंने भी भरोसा दिलाया है कि मामले में ठोस कार्रवाई की जाएगी. 

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पत्रकार उत्पीडऩ का मुद्दा बनाकर लड़ी जा रही लड़ाई में अधिकांश वे लोग शामिल दिखे जिनका लिखने पढऩे से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं है और इनका पूरा दिन मंत्रियों अफसरों की चंपूगीरी में ही गुजरता है. कुछ तो इस तरह के मामले में पहले भी अपनी दलाली के मार्फत दुकान और घर दोनों चमका चुके हैं. इस लड़ाई में वाहवाही लूटने के लिए कई पत्रकार संगठनों ने अपना झंडा बैनर लगाना चाहा तो कुछ स्वयंभू और उनके चिंटू पत्रकारों ने उन्हें भगा दिया. यानि पत्रकारों के हितों की लड़ाई का जिम्‍मा केवल गिने-चुने व्यक्तियों के ही पास रह गया है. मधुरिमा मामले में पत्रकार नेताओं की व्‍यग्रता देखकर काम करने वाले पत्रकार परेशान दिखे कि कुछ लोग उनके कंधे पर बंदूक रखकर कहीं हर दिवाली, दशहरा और होली पर फ्री की मिठाइयों का सौदा ना कर लें. 

जाहिर है, असद का हालचाल लेने और उन पर हुए हमले का विरोध करने पत्रकारों का हुजूम नहीं पहुंचा क्‍योंकि वहां मामला किसी भी प्रकार के आर्थिक लाभ से जुड़ा हुआ नहीं था. बताया जाता है कि इसके पहले भी कुछ फोटो जर्नलिस्‍टों का कैमरा एक प्रदर्शन के दौरान तोड़ दिए गए थे तो एक नेताजी आंदोलन करने में आगे रहे. और जब कैमरों के नुकसान की भारपाई की बात हुई तो नेताजी खुद मोटी रकम वसूल कर फोटो जर्नलिस्‍टों को थोड़ी धनराशि पकड़ा कर मामले को सलटवा दिया था. स्‍वयंभू नेताजी का दलाली आंदोलन और उसमें सहभागिता पूरे लखनऊ में मशहूर है. जेन्‍यूइन मामलों में भले ही ये ना पहुंचे, लेकिन जहां विरोधी मोटा आसामी दिखता है नेताजी अपने चिंटुओं के साथ सबसे आगे पहुंच जाते हैं. 

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0 Comments

  1. vishal

    January 19, 2015 at 7:49 am

    स्वंयभू पत्रकार संगठन के इन महानुभवों के जज्बे को सलाम।मधुरिमा की मधुरता के आगे इन वीआईपी पत्रकारों को किसी भी ऐसे मामले में दिलचस्पी लेने की जरूरत भी नहीं है।फिर कोई पत्रकार पिटेगा फिर फोटो खीचेंगी फेसबुक वाल पर पोस्ट करने के लिये।

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