Samarendra Singh : आज सरकार महात्मा गांधी का 150वां जन्मदिन मना रही है. देश भर में जलसे हो रहे हैं. जलसे हिंदुत्ववादी सरकार कर रही है. जिसके पूर्वजों पर गांधी की हत्या का आरोप है. वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या उनका हृदय परिवर्तित हो गया है? क्या गांधी को लेकर उनकी सोच बदल गई है? क्या वो भी मानवता से भर गए हैं? क्या उन्होंने भी अहिंसा के मार्ग पर चलने का फैसला लिया है? क्या उनके शिविरों में धार्मिक कट्टरता की जगह अब प्रेम और भाईचारे का पाठ पढ़ाया जाने लगा है? नहीं. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. तो फिर वो गांधी के जन्मदिन पर इतना बड़ा जश्न क्यों मना रहे हैं?
इस सवाल पर चर्चा से पहले एक नजर डालते हैं कि आखिर गांधी की हत्या क्यों की गई थी? हत्यारे नाथूराम गोडसे के मुताबिक उसने गांधी की हत्या राजनीतिक वजहों से की थी. वो देश के बंटवारे से आहत था. और मुसलमानों के पक्ष में गांधी की नीतियों से भी आहत था. इसलिए उसने गांधी को रास्ते से हटा दिया. लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है. गांधी की हत्या की एक बड़ी वजह हिंदू-मुस्लिम संबंध नहीं बल्कि हिंदू धर्म की दो अलग-अलग परिभाषाएं हैं. ये परिभाषाएं नदी के दो किनारों की तरह हैं.
गांधी खुद सामंती हिंदू थे. वो सवर्ण थे और उन्हें अपने हिंदू होने पर गर्व था. सामाजिक और राजनीतिक कार्यों को छोड़कर वो जाति और धर्म में किसी भी तरह की मिलावट के खिलाफ थे. जीवन के अंतिम दिनों को छोड़ दिया जाए तो वर्ण व्यवस्था को जायज मानते रहे. उनको भारतीय परंपराओं पर गर्व था. भारत की संस्कृति पर गर्व था. वो गाहे-बगाहे धार्मिक परंपराओं और संस्कृति को जायज ठहराने के तार्कित आधार मुहैया कराते रहे. स्त्रियों को लेकर भी उनकी सोच पुरानी थी. वो उनकी एक “मर्यादित” सीमा में ही आजादी चाहते थे. इस लिहाज से वो यथास्थितिवादी थे. वो समाज में कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं चाहते थे. उनकी कोशिश धर्म और समाज की मूल संरचना को बचाए रखते हुए भारत को आजाद कराना था. उन्होंने ऐसा किया भी. यहां पर गांधी के हिंदू और हिंदुत्ववादियों में समानता नजर आती है.
लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है. गांधी का हिंदू मानवतावादी और सीमित दायरे में ही सही उदार भी है. वो यह मानता है कि इस देश पर मुसलमानों समेत सभी धर्मों का बराबर का अधिकार है. वह धर्मों के बीच के रिश्तों को भाइयों के रिश्तों की तरह समझते थे. वह यह भी मानते थे कि जाति के नाम पर इंसानों में भेद नहीं होना चाहिए. दलितों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए. वो डॉ आंबेडकर की मांगों को काफी हद तक जायज मानते थे और उनके साथ चली लंबी बहस के बाद वर्ण व्यवस्था को लेकर आखिरी दिनों में उनका नजरिया बदला भी था. वो वर्ण के भेद को मिटाना चाहते थे. उन्होंने अपने अंतिम दिनों में यह शर्त रख दी थी कि वो सिर्फ उन्हीं शादियों में शामिल होंगे जिनमें कोई एक पक्ष हरिजन (दलित) होगा. मतलब ऐसे संकेत मिल रहे थे कि गांधी जिंदा रहते तो शायद वर्ण व्यवस्था को खत्म करने के लिए और दलितों को न्याय दिलाने के लिए एक नई मुहिम जरूर छेड़ते. ये वो मसले थे जहां गांधी और हिंदुत्वादी एक दूसरे के विरोध में खड़े थे. और ये बहुत बड़े मसले थे. हिंदुत्ववादी उन्हें अपनी राह का सबसे बड़ा रोड़ा मानते थे. उन्हें लगता था कि महात्मा ज्यादा दिन जिंदा रहे तो धर्म का चरित्र और उसका ऑर्डर दोनों बदल सकता है. कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी हर हाल में धर्म का मूल चरित्र और धर्म का ऑर्डर यानी वर्ण व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते थे. इसलिए उन्होंने गांधी की हत्या कर दी. तो अब वो गांधी पर अधिकार क्यों जता रहे हैं?
दरअसल, हिंदुत्ववादियों ने हिंदुत्व के आधार पर राष्ट्रवाद की परिकल्पना गढ़ी है. हिंदुत्ववादी अपनी परिकल्पना के तहत धर्म की आंतरिक विभाजन को बरकरार रखते हुए, हिंदुओं का सांस्कृतिक और राजनीतिक एकीकरण चाहते हैं. मतलब समाज बंटा रहे, ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र सब अपनी जगह पर बने रहें और जब भी बाहरी खतरों से धर्म की रक्षा करने की बात हो तो वो सभी एकजुट हो जाएं. राजनीतिक सत्ता की दृष्टि से एक हो जाएं. भारतीय संदर्भ में ये बाहरी खतरा कौन है? अंग्रेज अपना लाव लश्कर लेकर सन 47 में चले गए. जो ईसाई बचे उनकी आबादी इतनी नहीं कि कोई चुनौती पेश कर सकें. बौद्ध, जैन और सिखों की आबादी भी ऐसी नहीं कि कोई चुनौती दे सकें. आखिर में बचते हैं मुसलमान. मुसलमानों ने अपने लिए एक देश पहले ही हासिल कर लिया था. और भारत में भी उनकी आबादी कुछ इलाकों में प्रभावी बनी रही. हिंदू और मुसलमानों में संघर्ष का लंबा इतिहास भी था. इसलिए हिंदुत्ववादियों की राष्ट्रवाद की राजनीति के लिए यहां पर पूरा माहौल था बशर्ते कुछ रुकावटें खत्म हो जातीं. बाधाएं हट जातीं.
आखिर ये बाधाएं कौन-कौन सी हैं? हिंदुत्ववादियों की राह में चार बड़ी बाधाएं हैं. ये पहले ही बता चुका हूं कि गांधी सबसे बड़ी बाधा थे. उनके अलावा तीन और बाधाएं हैं – नेहरू, पटेल और डॉ आंबेडकर. ये चारों हिंदू थे, मगर चारों हिंदुत्व के खिलाफ थे. डॉ आंबेडकर तो बाद में इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि हिंदू धर्म में सुधार की गुंजाइश नहीं है और इसलिए उन्होंने हिंदू धर्म का ही परित्याग कर दिया और बौद्ध धर्म अपना लिया. गांधी, नेहरू और पटेल वर्ण व्यवस्था के समर्थक तो थे लेकिन मुसलमानों के खिलाफ नहीं थे और जाति के आधार पर भेदभाव के भी खिलाफ थे.
इन चारों का भारत के जनमानस पर बहुत गहरा प्रभाव था. यही वजह है कि हिंदुत्ववादियों को एकछत्र राज हासिल करने की सियासी महत्वाकांक्षा पूरी करने में 67 साल लग गए. अब वह अवसर आया है और इन्होंने भारत पर इन चारों के असर को खत्म करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. नेहरू के वंशज राजनीति में इनके विरोधी नहीं होते तो ये उन पर सबसे पहले दावेदारी जताते. नेहरू पंडित भी थे और प्रोग्रेसिव भी थे. लेकिन दिक्कत यही है कि उनके वंशज राजनीति में हैं. इसलिए इन्होंने नेहरू को खलनायक के तौर पर पेश किया है. नेहरू के विरुद्ध पटेल को खड़ा किया है. दूसरी तरफ गांधी और आंबेडकर के नाम पर जलसा करके वो जनता के बीच सहृदय होने का मायाजाल फैला रहे हैं.
गांधी की हत्या के कलंक से भी हिंदुत्वावदी मुक्त होना चाहते हैं और इसके लिए भी उन्हें गांधी का ही सहारा चाहिए. यही नहीं विश्व में गांधी की प्रतिष्ठता और लोकप्रियता काफी ज्यादा है. वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान और मुसलमानों के खिलाफ अपना ये युद्ध भी गांधी के सहारे लड़ना चाहते हैं. इसलिए हिंदुत्ववादियों का सत्ता प्रतिष्ठान “गांधी जिंदाबाद” कर रहा है और देश में इनके कार्यकर्ता “गांधी मुर्दाबाद” चिल्ला रहे हैं. इसी को सियासी पाखंड कहते हैं. और जिस देश की जनता अपने अधिकारों और दायित्वों को लेकर जागरुक नहीं हो वहां पाखंड एक ताकतवर सियासी हथियार होता है।
गांधी बापू ही नहीं “मां” भी थे… मां!
एक सोचने-समझने वाला व्यक्ति उस समय बड़ा अपराध कर रहा होता है जब वह गलत को गलत कहना बंद कर देता है और मौन धारण कर लेता है. लेकिन यह अपराध छोटा अपराध है. इससे कहीं बड़ा अपराध वह उस समय करता है जब गलत को सही के तौर पर पेश करने लगता है और न सिर्फ पेश करता है बल्कि उस झूठ को सत्य के तौर पर स्थापित करने के लिए दो कदम आगे बढ़ जाता है. इन दिनों दक्षिणपंथ से प्रभावित कुछ नए-नए लोग यही घिनौनी साजिश कर रहे हैं. उन्होंने किसी न किसी लोभ में अपने मन और मस्तिष्क से विवेक और शालीनता का पर्दा उतार फेंका है. अब वो हमारे सामने अपनी क्रूरता का नग्न प्रदर्शन कर रहे हैं.
ताजा मसला महात्मा गांधी को “औरतखोर” और “चरित्रहीन” साबित करने का है. इनके मुताबिक गांधी “औरतखोर” थे और उन्होंने महिलाओं का “शोषण” किया था और नेहरू ने इस “सत्य” पर पर्दा डाल दिया. ताज्जुब की बात है कि इन लोगों ने अपने झूठ को “सत्य” के तौर पर स्थापित करने के लिए जो आधार चुना है – वह गांधी का संपूर्ण वांग्मय है. वो उसमें दर्ज कुछ उद्धरण प्रस्तुत कर रहे हैं. अरे भई, जब नेहरू ने पर्दा डाल दिया तो फिर संपूर्ण वांग्मय में कहां से आ गया?
खैर, कस्तूरबा गांधी के निधन के बाद गांधी अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा लेना चाहते थे. क्यों लेना चाहते थे? इसका भी जवाब है. गांधी के जीवन का एक मूल मंत्र यह है कि वो सामने खड़े दुश्मन को भी हानि नहीं पहुंचाना चाहते थे. ऐसा चाहते तो फिर पहले ही हमले के बाद गोडसे और इस गिरोह के सरगनाओं को हमेशा के लिए सलाखों के पीछे डलवा देते. लेकिन उन्होंने उन्हें लगातार माफ किया. इस उम्मीद में कि उनमें कुछ सुधार होगा और वो अपने भीतर के इंसान को हासिल कर लेंगे.
इतिहास ने यह साबित किया है कि इस मामले में गांधी गलत थे. कुछ विकृतियां ऐसी होती है जिसमें सुधार की गुंजाइश नहीं होती. कुछ परवर्जन ऐसे होते हैं जो किसी शख्स को इंसान बनने ही नहीं देते. गांधी ने यह समझ लिया होता और समय रहते इसे रोकने के उपाय किए होते तो न केवल वो खुद कुछ समय और जिंदा रहते बल्कि गोडसे इतना विकराल और खतरनाक रूप धारण नहीं करता.
गांधी को यह लगता था कि उनका जीवन एक तप है और उनके तप से देश में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और यहां के लोग मिल-जुल कर रहेंगे. मतलब वो दो स्तर पर संघर्ष कर रहे थे. एक बाहरी और दूसरा भीतरी. बाहर अंग्रेजी हुकूमत से लड़ रहे थे और भीतर अपने आप से भी लड़ रहे थे. और गांधी ने अपने पूरे जीवन में बाहरी और भीतरी संघर्ष को कभी अलग नहीं किया. अंत तक उनकी यही धारणा रही कि अपने भीतर के छल-कपट को हम जिस दिन खत्म कर लेंगे सामने की दुनिया सुंदर हो जाएगी. उनकी निश्चलता, उनकी पवित्रता, उनके प्रेम और उनकी करुणा दुनिया के समस्त विकारों का इलाज कर देगी और इंसान का हृदय परिवर्तित होगा और वह वाकई इंसान बन जाएगा.
और देश जब आजादी के मुहाने पर पहुंचने लगा तो चारों तरफ हिंसा फैल गई. इससे गांधी हिल गए. उन्हें लगा कि जीवन भर की तपस्या में कहीं कोई चूक हुई है. इसलिए उन्होंने अपने मन की पवित्रता को आजमाने का एक आखिरी प्रयोग किया. यह प्रयोग ब्रह्मचर्य का प्रयोग था. आप इसे सनक कह सकते हैं. एक सामाजिक जीवन में मौजूद व्यक्ति ऐसा प्रयोग करे इसका कोई तुक नहीं बनता. लेकिन गांधी ने यह प्रयोग किया था. गांधी की इस सनक पर काफी शोध हुए हैं और बहुत कुछ लिखा गया है. और उन दिनों भी जब यह भेद खुला था तो गांधी ने इसे स्वीकार किया. उन्होंने कहा था कि उन्हें यह बात छिपानी नहीं चाहिए थी. सत्य के मार्ग पर चलने वाले किसी व्यक्ति को कोई बात छिपानी नहीं चाहिए.
स्त्री और पुरुष संबंध के कई आयाम होते हैं. हर संबंध में सेक्स या फिर सेक्सुअल आनंद ही अंतिम लक्ष्य या अंतिम सत्य है- यह मान लेना गलत होगा. गांधी का संबंध उनके आस-पास मौजूद स्त्रियों से कैसा था यह वो स्त्रियां खुद बता चुकी हैं. मनु गांधी ने अपनी डायरी में लिखा है कि गांधी उनके लिए मां के समान थे. लेकिन यह बात चिन्मयानंद के चेलों को कौन समझाए?
“आप मेरी हत्या कर सकते हैं, मैं पुलिस की मदद नहीं लूंगा”
आजादी के वक्त भारत-पाकिस्तान में दंगे चल रहे थे. हिंदू-मुसलमान के बीच हिंसा की खबरें चारों तरफ से आ रही थीं. पंजाब और बंगाल में तो खून की नदियां बह रही थीं. गांधी जी सुबह से शाम तक लोगों को समझाते-बुझाते रहते. भाई-चारे का मतलब बताते रहते. करीब 80 साल के गांधी जी पहले नोआखाली, फिर बिहार, उसके बाद कोलकाता और बाद में दिल्ली दंगे शांत करने के लिए जान हथेली पर लिए घूमते रहे.
15 अगस्त को जब पूरा देश जश्न मना रहा था, उस दिन वह कोलकाता की मुस्लिम बस्ती में एक मुसलमान के घर में रह रहे थे और हैवान बने हिंदुओं से हथियार डाल कर मुसलमानों को गले लगाने की अपील कर रहे थे. गांधी ने मुस्लिम नेताओं को इस बात के लिए राजी किया था कि कोलकाता में मुसलमानों की हिफाजत सुनिश्चित करने के एवज में मुस्लिम नेता पूर्वी बंगाल (आज का बांग्लादेश) में हिंदुओं की हिफाजत करेंगे. इन्हीं कोशिशों के क्रम में जब वो कोलकाता पहुंचे, तो 13 अगस्त, 1947 को वहां उग्र हिंदुओं का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने पहुंचा. उस प्रतिनिधिमंडल और गांधी जी की वो बातचीत आज भी पढ़ने लायक है.
(समाप्त)
लेखक समरेंद्र सिंह एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे हैं और अब एक उद्यमी के बतौर सक्रिय हैं.
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पार्ट (1) : आखिर गोडसे की जमात कब समझेगी कि गांधी और बुद्ध मरा नहीं करते!
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केशव पंडित
October 3, 2019 at 1:29 pm
समरेंद्र सिंह जी आप इतने बुद्धि जीवी हैं तो १ सबाल का उत्तर दें आप गांधी जी राम को मानते थे मरते समय भी उनके श्री मुख से तीन बार राम राम राम निकला उसी राम पर सोनिया गांधी जी हु इज राम बोलकर गांधी और गांधी की विचारधारा का कांग्रेस अपमान कर रही या बीजेपी | दूसरा सबाल गांधी जी ने राजीव के परिवार को अपनी जाती लिखने को दी फिर पंडित बनकर गांधी का अपमान कौन कर रहा है | राहुल गांधी (बनिया) है तो जनेऊ क्यों पहनता जब पहनता है तो नेहरू क्यों नहीं लगाता समरेंद्र सिंह उर्फ़ निर्बुद्धिजिवी जी एक तरफ़ा गोलियां मत दागा करो | बढ़िया लिखने का मतलब ये नहीं की सच लिखा हो ये जरूरी नहीं अपनी ये अंडी टीवी के रंडी रोना रोने बाले दोहरे चरित्र के पत्रकार और पत्रकारिता को ख़तम करो तो देश के लिए बेहतर होगा | गांधी और गांधी के राम को कितना मानते हो पता है |