अमर उजाला की कानपुर यूनिट में नये संपादक हिटलर की तरह नए नए नियम और कानून लागू करने में लगे हैं। रिपोर्टर कितनी भी बेहतर खबर ले आए, उसको बाई लाइन देने पर मनाही है।
इनका कहना है कि रिपोर्टर को पेट्रोल का पैसा मिलता है वह तो फील्ड में जाएगा और खबरें लाएगा ही। उसका तो यह काम है फिर हम बाई लाइन क्यों दें। संपादक के इस आदेश के बाद रिपोर्टर परेशान हैं।
वहीं दूसरी ओर सिटी इंचार्ज भी संपादक के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। रिपोर्टर से बदतमीजी भरे लहजे में बात करना और धमकी देना सिटी इंचार्ज की रोज की आदत है। अब अमर उजाला में मीटिंग भी 10 मिनट में खत्म हो जाती है। इसके अलावा रिपोर्टरों से छप चुकी खबरों पर मिसिंग न्यूज़ का मेल देखकर स्पष्टीकरण मांगा जाता है।
बीते दिनों अमर उजाला समूह के निदेशक वरूण माहेश्वरी कानपुर में आकर रिपोर्टरों की तारीफ कर चुके हैं । वहीं दूसरी और संपादक का कहना है कि कानपुर यूनिट के रिपोर्टर कूड़ा है।
आवाज उठाने पर अमर उजाला समूह के रिपोर्टरों को ट्रांसफर और संवाद के कर्मचारियों को इस्तीफा ले लेने की धमकी दी जाती है।
संपादक की प्रताड़ना से तंग आकर चीफ सब एडिटर दो बार लंबी छुट्टी पर जा चुके हैं। फोटोग्राफर का बीपी और शुगर हाई हो गया। उनकी दवाइयां चलने लगी। इस वक्त हर्पीक की बीमारी से पीड़ित होकर घर में अवकाश पर हैं।
अमर उजाला में अपनी एक अलग छवि बनाने वाले एक चीफ सब एडिटर को संपादक ने यहां तक बोल डाला कि आपको लिखना नहीं आता। ऑफिस को जेल बनाने का काम भी किया जा रहा है। ऑफिस में खड़ा होना, हंसना और मोबाइल यूज करना सख्त मना है।
अमर उजाला के मालिकान से मेरा कहना है कि अमर उजाला कानपुर यूनिट इस वक्त शहर में नंबर दो का अखबार है। लेकिन अगर संपादक जी का ऐसा ही रवैया चला तो तीसरे और चौथे नंबर में आने पर समय नहीं लगेगा।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.