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मजीठिया वेज बोर्ड संघर्ष : अमर उजाला को जवाब दायर करने का अब आखिरी मौका, भारत सरकार भी पार्टी

अमर उजाला हिमाचल से खबर है कि यहां से मजीठिया वेज बोर्ड के लिए लड़ाई लड़ रहे प्रदेश के एकमात्र पत्रकार को सब्र का फल मिलता दिख रहा है। अमर उजाला के पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की अगस्त 2014 की याचिका पर सात माह से जवाब के लिए समय मांग रहे अमर उजाला प्रबंधन को इस बार 25 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आखिरी बार दस दिन में जवाब देने का समय दिया है। अबकी बार कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि अगर इस बार जवाब न मिला तो अमर उजाला प्रबंधन जवाब दायर करने का हक खो देगा और कोर्ट एकतरफा कार्रवाई करेगा।

अमर उजाला हिमाचल से खबर है कि यहां से मजीठिया वेज बोर्ड के लिए लड़ाई लड़ रहे प्रदेश के एकमात्र पत्रकार को सब्र का फल मिलता दिख रहा है। अमर उजाला के पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की अगस्त 2014 की याचिका पर सात माह से जवाब के लिए समय मांग रहे अमर उजाला प्रबंधन को इस बार 25 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आखिरी बार दस दिन में जवाब देने का समय दिया है। अबकी बार कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि अगर इस बार जवाब न मिला तो अमर उजाला प्रबंधन जवाब दायर करने का हक खो देगा और कोर्ट एकतरफा कार्रवाई करेगा।

ज्ञात रहे कि इस मामले में प्रथम पार्टी भारत सरकार को बनाया गया है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय की ओर से कोर्ट में जवाब दायर किया जा चुका है। मामले की दूसरी पार्टी अमर उजाला के प्रबंध निदेशक हैं। उनकी ओर से सात माह में जवाब दायर नहीं किया जा सका है। हर बार कोर्ट से समय लिया जाता रहा है। इस बीच रविंद्र की ओर से अमर उजाला प्रबंधन द्वारा चार्जशीट करके वेतन बंद किए जाने की शिकायत भी कोर्ट में कर दी गई थी। इस संबंध में जनवरी माह में अर्जी दाखिल हुई थी।

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इस पर भी कोर्ट ने प्रबंधन से 11 मार्च से पहले जवाब-तलब किया है। इस मामले की तीसरी पार्टी श्रम विभाग हिमाचल प्रदेश को बनाया गया है, जिस पर वेज बोर्ड लागू करवाने का जि मा है। विभाग की ओर से सबसे पहले कोर्ट में गोलमोल जवाब दायर किया गया था। इसके बाद से विभाग हरकत में आ गया और सभी समाचार पत्रों के प्रबंधकों से वेज बोर्ड को लेकर जानकारी मांगी जाने लगी है। हालांकि फिलहाल सब कार्रवाई खानापूर्ति ही मानी जा रही है। हिमाचल प्रदेश में किसी भी अखबार ने मजीठिया वेज बोर्ड नहीं दिया है। इसके इतर अमर उजाला व जागरण प्रबंधन ने श्रम विभाग को दी जानकारी में तो दावा किया है कि वे वेज बोर्ड दे रहे हैं।

ज्ञात रहे कि अमर उजाला प्रबंधन के खिलाफ रविंद्र अग्रवाल ने लेबर आफिसर से भी अगस्त माह में ही शिकायत कर रखी है। पहले तो लेबर विभाग कार्रवाई की खानापूर्ति करता रहा। अब कोर्ट की सख्ती के डर से कार्रवाई में कुछ तेजी लाई है, मगर यह तेजी भी जानकारी के आभाव में प्रभावी नहीं साबित हो पा रही है। पिछले दिनों 20 फरवरी को लेबर आफिसर के यहां वेज बोर्ड के तहत एरियर व रोके गए वेतन की रिकवरी की तारीख रखी गई थी। इसके लिए नोएडा से खासतौर पर लीगल एक्सर्ट को भेजा गया था। लेबर आफिसर को मुहैया करवाए गए दस्तावेजों के जरिये अमर उजाला ने दावा किया है कि अखबार तो वेज बोर्ड दे रहा है। जब पूछा गया कि किस आधार पर तो बताया गया कि यूनिटें अलग करके।

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इसके पीछे अमर उजाला इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत सरकार के 1995 में आए एक निर्णय व वेज बोर्ड की नोटिफिकेशन की सेक्शन दो के पैरा 3 में समाचार पत्रों की क्लासीफिकेशन के क्लास ए में विभिन्न विभागों ब्रांचों व सेंटरों को क्लब करने को लेकर दिए गए फार्मूले को आधार बताया गया। वहीं माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फरवरी 2014 के निर्णय की अनदेखी गई गई। माननीय न्यायालय की जजमेंट के पैरा 54 से लेकर पैरा 59 तक एक समाचार पत्र की सभी यूनिटों की आय को ही वेज बोर्ड लागू करने का आधार माना गया है। इनमें साफ लिया गया है कि एक समाचार पत्र की सकल आय को वेज बोर्ड लागू करने का आधार बनाना कानूनसंगत है। इसमें उस इंडियनएक्सप्रेस मामले का भी जीक्र किया गया है, जिसमें यूनिटों को अलग करने को लेकर व्यवस्था दी गई थी, मगर इस निर्णय में यह भी कहा गया था कि आल इंडिया आधार पर समाचार पत्र की आय को वेज बोर्ड का आधार बनाना किसी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है। साथ ही इसे नोट बैड इन ला कहा गया था। हालांकि यह फैसला तब के वेज बोर्ड को लेकर था और मौजूदा वेज बोर्ड को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का नया फैसला आ चुका है, मगर अखबार प्रबंधन कर्मचारियों को उनका हक देने से बचने के लिए कई तरह के कानूनी हथकंडे आजमाने की जुगत भिड़ा रहे हैं।

इसके अलावा अमर उजाला ने वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में न्यूजपेपर एस्टेबलिशमेंट की परिभाषा व इसकी सेक्शन 2डी से जुड़े शेड्यूल को भी ताक पर रखा है। अमर उजाला अपने प्रकाशन केंद्रों को अलग-अलग यूनिटें बनाकर वेज बोर्ड के भार से बचना चाह रहा है। जबकि यही प्रबंधन अपने कर्मचारियों को एक यूनिट से दूसरी यूनिट में ट्रांस्फर कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि अगर अमर उजाला प्रबंधन दूध से धुला है तो वह हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में अपना जवाब दायर करने से क्यों बचता आ रहा है। अब अमर उजाला को कौन समझाए कि अगर मजीठिया वेज बोर्ड से इसी तरह बचा जा सकता तो दैनिक जागरण, भास्कर, हिंदोस्तान व अन्य अखबार भी ऐसा ही कर सकते थे।

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0 Comments

  1. purushottam asnora

    March 2, 2015 at 2:18 pm

    हम नहीं समझ पा रहे हैं कि मीडिया के मगरमच्छ माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को भी कैसे धत्ता बता रहे हैं? अमर उजाला अपनेे को उत्तराखण्ड का नं 1 अखबार कहता है तब भी वह मजेठिया आयोग के अनुसार अपने कर्मियों को वेतन देने से टाल मटोल करता है। संसार का नं 1 अखबार कहने वाले जागरण की भी वही हालत है। जो अपने पत्रकारों -कर्मचारियों का शोषण कर नं 1 बने रहना चाहते हैं दरअसल ये मीडिया माफिया हैं, इन्हें देश के कानून, अपने कर्मियों के सुख-दुख और स्वस्थ व्यवसाय को किनारे कर अपनी व्यवस्था लागू करने का दण्ड मिलना ही चाहिए, लेकिन इन टटपुजिये संस्थानों में काम करने वाले अधिकांश पत्रकार-कर्मचारी इतने भयभीत हैं कि वे अपनी जायज मांग और वैधानिक अधिकार को संघर्ष को भी राजी नही हैं। ऐसी स्थिति में संपादक नाम का प्रवन्धन का दलाल उनके शोषण का अधिकार पा लेता है और प्रवन्धन को कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं होती। अमर उजाला हो या जागरण या कोई भी समाचार पत्र उनके खिलाफ मजेठिया वेतन बोर्ड लागू न करने की सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।

  2. praveen

    March 13, 2015 at 5:29 pm

    Management of Amar Ujala trying to close Financial Year 2015 total revenue by more then 1000 cr. For this purpose huge level of fake billing is done. This is for the purpose of bring an IPO in market.

    If Amar Ujala is not able to implement wage board according to the order of supreme court in true sense NO IPO WILL COME FORWARD as SEBI will not approve such IPO which are based on gross fraud of Management and matter of SUPREME COURT CONTEMPT IS INVOLVE.

    Rajul Ji ye aapne kya kia…. aage kahi peeche Kuan…

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