Awadhesh Kumar : सुमित्रा महाजन के संभावित ओएसडी सुरेश बाफना (नई दुनिया के पत्रकार) का विरोध शुरू… भाजपा एवं संघ से सहानुभूति रखने वाले पत्रकारों के बीच इस बात की चर्चा गरम है कि नई दुनिया के सुरेश बाफना लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के साथ औपचारिक तौर पर जुड़ने जा रहे हैं। इसे लेकर कई पत्रकारों में मैंने रोष देखा है। तर्क यह है कि एक एसएफआई में सक्रिय रहा आदमी आखिर कैसे सुमित्रा महाजन का सहयोगी हो सकता है? उनकी चिंता यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंत्रियों को ओएसडी एवं सहयोगी बनाने के लिए तो मापदंड बना दिया है कि किसी को पद देने से पहले उसकी आईबी जांच होगी, पर सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष होने के बाद सरकार के नियंत्रण एवं प्रधानमंत्री के नेतृत्व से परे हो गईं हैं। वे तो स्वतंत्र हैं।
लेकिन सब किसी तरह इसे रोकना चाहते हैं। हालांकि एसएफआई की पृष्ठभूमि से मेरा विरोध नहीं हो सकता है। किसी भी विचारधारा में यदि राजनीतिक प्रशिक्षण हुआ है तो वह गैर राजनीतिक व्यक्तियों से ज्यादा व्यावहारिक एवं जनता का ध्यान रखने वाला होगा। लेकिन क्या वाकई बाफना का ज्ञान, उनका स्वभाव, उनकी छवि, पत्रकार के रुप में उनके ऐसे कार्य हैं जो उन्हें लोकसभा अध्यक्ष का सहयोगी या विशेष कार्य अधिकारी के योग्य बनाते हैं? क्या नरेन्द्र मोदी ने जिस भावना से सरकार का गठन किया है और संसद के बारे में उनने जो राय प्रकट की है वह भावना उनके अंदर हो सकता है?
हालांकि बाफना जी से मेरी बातचीत कम ही होती है, और जब भी हुई अच्छे माहौल में हई। लेकिन मुझे अफसोस है कि बाफना जी के बारे में पत्रकारिता के अंदर भी धारणा अच्छी नहीं है। पत्रकारिता में भले उनका लंबा समय गुजरा है, लेकिन कभी अपने पत्रकारीय कर्म से उनकी प्रशंसा हुई हो, या अपने पेशे में उनका प्रभाव बढ़ा हो ऐसा नहीं हुआ। हां, राजनीतिक दलों के नेताओं और कुछ नौकरशाहों तथा व्यापारियों से संबंध की बात हो तो अलग है। मोदी को देश के लोगों ने बहुत उम्मीद के साथ बहुमत दिया है, इसलिए सुमित्रा महाजन भले लोकसभा अध्यक्ष हो गईं हों, उन्हें यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति के कारण कल छवि पर कोई आंच न आए। मध्य प्रदेश के मालवा अंचल के ही किसी व्यक्ति केा उन्हें नियुक्त करना है तो दूसरे विकल्प भी हो सकते हैं जिन पर उन्हें विचार करना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.
Serious journalist
July 19, 2014 at 3:32 pm
Bafna ji ko main 20 saal se janta hoon. Unki chhavi aur karya kushalta par koi prashn nahi uttha sakta. OSD banana ya na banana alag baat hai lekin iss tarah se patrkarita ke naam par logon ke upar bina soch vichar aur khoj ke prashn uthana bahut sharmindagi ki baat hai.
silvi sharma
July 19, 2014 at 3:38 pm
ऐसी भी काफी चर्चा रही हे की किसी ज़माने में मध्यप्रदेश के संघ भाजपाके एक सर्वमान्य नेता भी एस एफ आई से निकटता थी, ये नेता बाद में देश के बड़े नेता बने,, आपको किसी की प्रगती से कुंठित क्यों हो रहे हे,,,,आप भी कतार में थे क्या जनाब?? आप किसी को प्रमाणपत्र क्यों बाँट रहे हे,, अंगूर खट्टे . हे..? हा हा और आपके जैसा पत्रकार कोई नही हे ,क्या बोलते हे ,क्या लिखते हे आपके सिवा कोई नही जानता ,,विरोध शायद सिर्फ आप कर रहे हे, किसी दूसरे का नाम नही हे,,हा हा कुंठा छोड़े ,,बड़ा दिल रखे,,
B D Nagar
July 19, 2014 at 4:58 pm
Sumitra Mahajan ji dwara OSD banane ke liye agar Suresh Bafna ji ke naam par vichar kiya ja raha hai to main Sumitra ji ko unki jankalyankari soch ke liye bahut bahut badhai deta hun ki unhone chatukarita karne wale patrakaron ki bajaye ek swachh chhavi wale Imandar partrakar ko chuna hai,
Maine Suresh Bafna ji ke sath lag-bhag 25 saal tak kaam kiya hai. In 25 saalon mein maine unhe kafi karib se jaana hai, chahe (Congress, United Morcha, NDA ya UPA) kisi ki bhi sarkar rahi ho, unke sabhi netaon se achche sambandh rahe lekin kabhi bhi netaon se kisi bhi tarah ka fayeda lene ka ya khabrein likhne mein pakshapaat karne ka aarop nahi laga. unhe kabhi bhi paise ke phiche bhagte huye nahi dekha shayad yahi karan hai ki NaiDunia jaise sanskari akhbaar mein vo itne varshon se jude hue hain jabki paise ke lalach mein patrakar kapdon ki tarah nokariyan badalte rehte hain.
Main Awdesh Kumar ji se poochna chahunga ki vo tay karne wale kaun hote hain ki Suresh Bafna OSD ho sakte hain ya nahi, Sumitra Mahajan ji dwara ek Imandar patrakar ko apna OSD banakar udaharan pesh karna chahiye ki BJP mein Imandari ki kadra hoti hain na ki chatukarita karne walo ki
Saurabh
July 19, 2014 at 6:05 pm
मैंने बाफना जी के साथ लगभग ४ साल काम किया है, वो वाकई में ईमानदार और अपने काम की अच्छी समझ रखने वाले व्यक्ति है। उन्होंने कभी भी अपने पद का दुरूपयोग करने की नहीं सोची। ऐसे लोगो की जरूरत सभी को होती है। मै नहीं समझता कि किसी पर ऐसे ही उंगली उठाना ठीक बात है। बाफना जी को मेरी तरफ से सुभकामनाये।
आशय संघवी
July 21, 2014 at 7:50 am
आशय संघवी
सुरेश बाफना जी के नाम को लेकर आखिर इतना हंगामा क्यों? वे अगर लोकसभा स्पीकर के निजी स्टाफ में शामिल होकर कुछ बन भी जाएं तो कौनसी आफत आ जाएगी? वैसे भी सत्ता के गलियारों में दलालों और भçडवों की कोई कमी नहीं है, इसलिए एक दलाल और आ जाएगा तो कौनसा आसमान टूट पçडेगा। बीडी नागर जी ने सुरेश बाफना की स्तुति में ऊ पर लिखा है कि कई लोग पैसों के लालच में नौकरियां बदलते रहते हैं लेकिन सुरेश बाफना अपनी काबिलियत और ईमानदारी की वजह से वर्षों से एक ही संस्थान (नईदुनिया) से जुडे हुए हैं। उनकी इस दलील के लिहाज से तो देश उन तमाम वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों को भ्रष्ट, लालची और नाकाबिल मान लिया जाना चाहिए, जो एक से अधिक अखबारों या न्यूज चैनलों में काम कर चुके हैं और अभी भी कर रहे हैं। दिवंगत हो चुके राजेंद्ग माथुर और सुरेंद् प्रताप सिंह को भी ऐसे ही पत्रकारों की श्रेणी में रखना चाहिए क्योंकि उन्होंने भी एक से ज्यादा संस्थानों में अपनी सेवाएं दी थीं। हकीकत तो यह है कि नाकारा और धंधेबाज लोग ही किसी एक संस्थान में पçडे-सçडे रहकर अपना जीवन गुजार देते हैं। सुरेश बाफना भी ऐसे ही लोगों में शुमार है। वे लिखने-पढने के मामले में भले ही नाकारा हो लेकिन दलाली और धंधेबाजी के मामले में उन्हें कोई नाकारा नहीं कह सकता। अपनी इसी योग्यता के दम पर वे अपने कैरियर की शुरू आत से आज तक नईदुनिया में ही बने हुए हैं और नईदुनिया के पूर्व प्रबंधन ने पत्रकारिता से इतर दूसरे नैतिक-अनैतिक कामों में उनकी इसी योग्यता का पूरा-पूरा इस्तेमाल भी किया। शायद अपनी इसी योग्यता से वे मौजूदा प्रबंधन के भी दुलारे बने हुए हैं।
hemant
July 21, 2014 at 9:32 am
जीवनभर भ्रष्ट कांग्रेसी नेताओं के चरण-चूमने वाले सुरेश बाफना को स्वच्छ छवि का बताने वालों की बुद्घि पर तरस आता है और उनके चाल-चलन पर शंका होती है कि कहीं वे भी बाफना की तरह दलाली को ही तो पत्रकारिता नहीं समते हैं। जो लोग बता रहे हैं कि उन्होंने बाफना के साथ 25 साल या बीस साल या चार साल काम किया है, वे यह भी बताएं कि उन्होंने उसके साथ कहां काम किया है। जहां तक नई दुनिया की बात है तो वहां तो बाफना ने किसी भी ईमानदार और स्वाभिमानी व्यक्ति को एक-डेढ साल से ज्यादा टिकने ही नहीं दिया है। हां, टांसफर-पोस्टिंग जैसे दलाली के धंधे में जरू र कुछ लोग उसके साथ वर्षों से जुडे हुए हैं।
अभिताभ
July 21, 2014 at 9:46 am
कामरेड बाफना जी को अच्छे दिन मुबारक हो,वैसे संघ और संगठन को सर्पोपरी माननेवाले प्रधानमंत्री मोदी जी को सुमित्रा जी क्या एसएफआई भी संघ का नया अनुषांगिक संगठन हो क्या है क्या?क्या राष्ट्रवादी पत्रकारों का देश में अकाल हो गया है क्या?दरबारी ,दलाल धन्धेबाज़ बाफना सरीखे इंसान अगर वास्तव में ओएसडी बनाये जाते है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा
अभिताभ
July 21, 2014 at 9:53 am
सुरेश बाफना को अगर काबिल और ईमानदार मान लिया जाए तो फिर काबिलियत और ईमानदारी की परिभाषा ही बदलनी होगी। अपनी नौकरी बचाने के लिए किसी भी तरह का गंदा और अनैतिक कृत्य करने के लिए तत्पर रहने वाले इस भ्रष्ट और निकृष्ट आदमी ने नईदुनिया के दिल्ली ऑफिस में कभी किसी ईमानदार और योग्य व्यक्ति को लंबे समय तक नहीं टिकने दिया और तरह-तरह से प्रबंधन की चापलूसी तथा चुगलखोरी व साजिशों के जरिए उन लोगों की नौकरी खाई है
ambrish ray
July 21, 2014 at 10:48 am
अवधेश कुमार नाहक परेशान हो रहे हैं। कहां-कहां हथेली लगाएंगे। सुरेश बाफना व्यक्ति नहीं प्रवृत्ति का नाम है। और यह प्रवृत्ति हर सरकार में हर जगह व्याप्त रहती है। सुरेश बाफना किसी के ओएसडी बने या बने इससे क्या फर्क पçडता है। इनके जैसे लोग तो जहां भी रहेंगे, वहीं अपना धंधा चलाते रहेंगे और गंदगी फैलाते रहेंगे। अवधेश जी ने अपने पोस्ट में बाफना को एसएफआई की पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति बताया है लेकिन मेरा मानना है कि यह तथ्य नहीं बल्कि सुरेश बाफना पर एक किस्म का अपुष्ट ‘आरोप’ है। क्योंकि वामपंथी दलों में और चाहे कैसे भी लोग हों या अतीत में रहे हों पर बाफना जैसे भ्रष्ट, गंदे और गिरे हुए चरित्र के लोग तो वहां नहीं ही होते हैं। अवधेश जी जैसे गंभीर व्यक्ति को ऐसा ‘आरोप’ लगाने के पहले थोडा सोचना चाहिए।
anand bharti
July 23, 2014 at 7:56 am
भाई मेरे, अटल जी के बारे में भी तो कहा जाता था कि छात्र जीवन में उनका सम्बन्ध कम्युनिस्ट छात्र संघटन से था।
jeemy
July 23, 2014 at 8:09 am
एक दलाल और धंधेबाज की तुलना अटल जी जैसे महान व्यक्ति से नहीं की जानी चाहिए। एक गंदे व्यक्ति के बचाव में बेदा दलीलें देने वाले ऐसा करके खुद के बारे में भी लोगों में संदेह ही पैदा कर रहे हैं।
jeemy
July 23, 2014 at 8:15 am
एक दलाल और धंधेबाज की तुलना अटल जी जैसे महान व्यक्ति से नहीं की जानी चाहिए। एक गंदे व्यक्ति के बचाव में बेहुदा दलीलें देने वाले ऐसा करके खुद के बारे में भी लोगों में संदेह ही पैदा कर रहे हैं।