जो हमें बांस करता है, हम उसी को नमस्कार करते हैं। इस समय सूर्य ने बांस कर रखा है तो सारी दुनिया उसे नमस्कार कर रही है। यही नहीं, जहां से हमें बांस होने की आशंका होती है, हम वहां भी नमस्कार करने से नहीं चूकते हैं। अखबार मालिकों को सीएम और पीएम से बांस की आशंका थी, तो लोट गए चरणों में। छाप दिया बड़ा-बड़ा इंटरव्यू। कर्मचारियों को जब अखबार मालिकों के बिचौलियों से बांस होने की आशंका थी तो घेर-घेर कर नमस्कार करते थे। …और जब दैनिक जागरण के कर्मचारियों ने बांस किया तो प्रबंधन ने सूर्य नमस्कार करना शुरू कर दिया और चार लोगों को वापस ले लिया। जिन लोगों ने बांस नहीं किया, उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया। हमें बांस की आदत सी पड़ गई है।
बिना बांस के कोई काम ही नहीं होता इस देश में। दैनिक जागरण प्रबंधन के लोगों को फिर बांस किया जाने वाला है। जब तक उन्हें बांस नहीं किया जाएगा, वो मानेंगे ही नहीं। इंतजार कर रहे हैं कोई बांस तो करे। इस बार बड़ा मोटा बांस है। अभी शांत बैठे हैं। बांस होगा तो चिल्लाएंगे। अरे भैया क्यों इंतजार कर रहे हो बांस का। बांस कोई बांसुरी तो है नहीं कि कृष्ण जी आकर बजाएंगे और गोपियां मोहित हो जाएंगी। भारतीय संस्कृति को बांस संस्कृति कहा जाए तो ज्यादा स्पष्ट बात होगी।
तो बांस को आप संभाल कर रखिए। बांस के महत्व को तो संघ वालों ने गहराई से समझा है। बिना बांस के तो वे चलते ही नहीं। वे तो बात बे बात सरकार को भी बांस करते रहते हैं। गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया था-ये तुम्हारे परिजन भले ही हैं, लेकिन हैं तो बांस संस्कृति वाले ही। तुम इन्हें बांस नहीं करोगे, तो ये तुम्हें बांस कर देंगे। लेकिन अर्जुन कहां समझने वाले थे। बिना बांस किए किसी को बात समझ में आई है आज तक। भगवान कृष्ण ने जब विश्वरूप दिखाकर बांस किया तो क्षण भर में समझ आ गई सारी गीता।
आपको बताया गया था कि भाजपा को वोट दो, अच्छे दिन आएंगे। चुनाव जीतने पर भूल गए अच्छे दिन की बात। भूलना ही था। बांस का संस्कार लेकर जो पैदा हुए हैं। इंतजार कर रहे हैं कि कोई बांस तो करे। फिर लाएंगे अच्छे दिन। नीतीश और लालू ने मिल कर बांस करने का प्रोग्राम बनाया है। अब जीतन राम मांझी से बाप-बाप कर रहे हैं।
भइया, हम आपको कितना समझाएं। योग से देश सुधरने वाला नहीं है। इसे चाहिए एक बांस और एक बांस करने वाला। रहीम दास जी पता नहीं क्यों बांस को भूल गए। उन्हें भी लिखना चाहिए था। रहिमन बांस उठाइए, बिना बांस सब सून। तो आप सब लोग मजीठिया वेतनमान के लिए बांस उठा लीजिए। यकीन मानिए, यदि मजीठिया के लिए कोई बांस कर सकता है तो सिर्फ आप। शर्मिंदा मत होइए। आप सबको भरपूर बांस कर दिया गया है। अब आप की बारी है कि आप भी बांस करें। भगवान सबको बांस करने और बांस कराने का मौका जरूर देता है। आप बांस करने से चूक गए तो दैनिक जागरण प्रबंधन निरंतर आपको बांस करता रहेगा। यह जो मैं कर रहा हूं, अर्थात जो लिख रहा हूं, वह भी अपनी प्रजाति का बांस है। जय हिंद, जय भारत। जय बांस।
श्रीकांत सिंह के एफबी वाल से
जावेद अख्तर
June 25, 2015 at 8:24 pm
वाकई लाजवाब और बेमिसाल, 100 प्रतिशत सत्य वचन।।
रायपुर से जावेद अख्तर
सलाम छत्तीसगढ़ अख़बार