Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

करोना दंश से मौत के मुंह में जाकर वापस लौटने वाले पत्रकार की मर्मस्पर्शी कहानी है ‘बनारस लॉकडाउन’

-रामजी प्रसाद भैरव
(साहित्यकार एवं लेखक, चंदौली)

जब कभी निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की बात उठेगी तो बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत जेहन में स्वतः कौंध जाएंगे । यह इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि विजय विनीत ने कोई किताब लिखी है, बल्कि उन्होंने 75 दिनों की इस जिंदगी को बड़ी संजीदगी से जिया है, जो अब किताब की शक्ल में आप के सामने है।
मेरी बात पर शायद आप को आश्चर्य हो की यह 75 दिनों की जिंदगी क्या है? इसे समझने के लिए आप को उनके द्वारा लिखी गयी किताब ” बनारस लॉकडाउन ” पढ़ना होगा। जब कोरोना के भय से बनारस की पारम्परिक संस्कृति , ध्वंस के मुहाने पर खड़ी कातर भाव से उन सबकी ओर देख रही थी, जो जिंदगी के रक्षक व रहनुमा थे, तो कौन आगे आकर उन्हें ढांढस बधाया?

किसने भय से आक्रांत बनारस के नब्ज़ को छूने की कोशिश की?खौफ़ के सन्नाटे में थमी हुई जिंदगी और धीमी हो चुकी हृदय के स्पंदन को किसने सुनने साहस किया? अपने अड़ी और गलचउर के लिए मशहूर बनारस ने कैसे चुप्पी ओढ़ ली? उस छटपटाहट को महसूस करने वाला कौन था? बनारस के घंटा-घड़ियाल और हर-हर महादेव के नारों की अटक चुकी गले में आवाज़ को किसने सबसे पहले अकनने की कोशिश की? इन सब प्रश्नों का बस एक उत्तर है विजय विनीत? वही विजय विनीत जो सच और ईमानदार पत्रकारिता के लिए उत्तर भारत में जाने जाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विजय विनीत ने कोविड 19 यानी कोरोना वायरस के आतंक में जी रहे बनारस की 75 दिनों तक सूक्ष्म पड़ताल की। जांचा-परखा! जो पाया उसकी रिपोर्टिंग निष्पक्षता के साथ की। कोई कल्पना की उड़ान नहीं। बस जो सच था उसे लिख दिया। कोरोना के भयाक्रांत परिवेश में बनारस ने जो देखा, उसे विजय विनीत ने पल-पल जिया है। यह सब इत्तेफ़ाक नहीं हो सकता। यह साहस नहीं दुःसाहस का काम था। जब लोग अपने घरों की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर, दमघोटू कोरोना के भय में जी रहे थे, तो विजय विनीत रिपोर्टिंग करते हुए, सन्नाटे की छाती पर कदमताल करते नज़र आ रहे थे। उन्हें अपनी जिंदगी का मोह नहीं था, ऐसा नहीं है, बल्कि बनारस के उन लाखों लोगों की जिंदगी से मोह था। जो इस लॉकडाउन में घुट-घुट कर जी रहे थे । उनकी आमदनी मरती जा रही थी। मानसिक संत्रास जीवन में असंतुलन पैदा कर रहा था। लोग सोच रहे थे , कहाँ पीछे छूट गया? सदियों पहले का हँसता खिलखिलाता हमारा बनारस?

बस इसी बात की पड़ताल करने के लिए उन्होंने चप्पे चप्पे की खाक छानी, जो देखा वह भयावह सच था, सब सोच रहे थे। सांसारिक लोगों को मोक्ष देने वाले बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की यह दशा कैसे हो गयी? खैर आप कल्पना कर सकते हैं, बनारस को कोरोना ने किस तरह बदरंग किया? बनारस की सीमाएं सील थी। चिरई का पूत नदारत था। ऐसे में लेखन का जुनून लिए विजय विनीत सन्नाटे को भेदते हुए ऐसे आगे बढ़ रहे थे, जैसे जल में कोई मछली सरलता से आगे बढ़ जाती है। बनारस में लाखों लोग ऐसे हैं जो रोज कमाते-खाते हैं ! लॉकडाउन के दिनों में उनका चूल्हा कैसे जला होगा? क्षुधा की आग आखिर किस वरदान से मिटती होगी? यह जानने की कवायद विजय विनीत ने की है । उनके द्वारा लिखी पुस्तक ” बनारस लॉकडाउन ” विपत्तियों की महागाथा बनकर उभरी है। इस लिए कह सकता हूँ , ” बनारस लॉकडाउन ” महज एक किताब नहीं है,बल्कि बनारस का दस्तावेज है। सच्ची कहानियों का दस्तावेज, जिसे कई पीढ़ियाँ संजोकर रखेगी। किताब के आंतरिक रिपोर्टों पर हम आगे भी चर्चा करते रहेंगे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खास बात यह है कि इस पुस्तक को गढ़ने में विजय विनीत खुद षड्यंत्र कारी वायरस की चपेट में आ गए। जीवन और मौत से 14 दिन तक लड़ते रहे और क़ोरोना पर विजय पाई। लेवल-3 में पहुंचकर जिंदा वापस आने वाले यह देश के कुछ चुनिंदा पत्रकारों में शामिल हैं। फिलहाल इस पुस्तक के दूसरे संस्करण का लोकार्पण 23 नवंबर 2020 को बनारस पुस्तक मेला छित्तूपुर (सिगरा) वाराणसी में होने जा रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement