Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

बैंक क्यों डूब रहे हैं?

मिलिंद खांडेकर-

इस महीने अमेरिका में तीन बैंक डूब गए. स्विट्ज़रलैंड में क्रेडिट सुएज बैंक बिक गया और अब जर्मनी में ड्यूश बैंक के शेयर गिर गए. भारत में भी बैंक शेयरों में गिरावट हुई है.

2008 में अमेरिका में बैंक डूबे थे क्योंकि उन्होंने बिना गारंटी के लोन बाँट दिए थे. अबकी बार बैंक के पास पैसे थे लेकिन वो तुरंत सबको चुकाने की स्थिति में नहीं है. संकट की जड़ में कोरोनावायरस है. लॉक डाउन लगा था. दुनिया भर में सेंट्रल बैंक ( हमारा रिज़र्व बैंक या अमेरिका में फ़ेडरल रिज़र्व) ने 2020 में ब्याज दरों को घटा दिया ताकि माँग बढ़े. अर्थव्यवस्था को मंदी के चक्र से बाहर निकाला जा सकें . अब इसी का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है. ब्याज दर कम होने से लोगों के हाथ में पैसा आया . खर्च किया तो महंगाई बढ़ने लगीं. महंगाई को रोकने के लिए सेंट्रल बैंक फिर ब्याज दर बढ़ा रहे है. अमेरिका में साल भर में साढ़े चार प्रतिशत दरें बढ़ी है जबकि भारत में ढाई प्रतिशत. इस उम्मीद में ब्याज दरें बढ़ाई जा रही है कि महंगाई कम होगी. महंगाई कम हो नहीं रहीं, मंदी का ख़तरा अलग मंडरा रहा है. इस बीच , बैंक डूबने से नया संकट खड़ा हो गया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

अमेरिका की सिलिकॉन वैली बैंक के ज़्यादातर ग्राहक स्टार्ट अप थे. कोरोनावायरस के बाद उनको निवेशकों से मोटे पैसे मिले . उन्होंने पैसा बैंकों में रख दिया. बैंक में डिपॉजिट अचानक बढ़ गए. 2018 में 49 बिलियन डॉलर डिपॉजिट थे. 2021 में डिपॉजिट बढ़ कर 189 बिलियन डॉलर हो गए. बैंक ने पैसे सरकारी बॉन्ड में लगा दिए. बॉन्ड दस साल बाद मैच्युएर होने थे. सब ठीक चल रहा था कि अचानक फ़ेडरल रिज़र्व ने ब्याज दरों को बढ़ा दिया. नतीजा ये हुआ कि बैंकों ने जो बॉन्ड ख़रीदे थे उसके दाम गिर गए. यहाँ तक भी ठीक था लेकिन जब डिपॉजिटर पैसे माँगने आने लगे तो बैंक को घाटा उठाकर बॉन्ड बेचने पड़े. अगर डिपॉजिटर लंबा इंतज़ार करते तो बैंक पैसे चुकाने की स्थिति में था. इसी लहर की लपेट में अमेरिका के दो और बैंक डूब गए.

ये बीमारी फिर यूरोप पहुँची . स्विट्ज़रलैंड में क्रेडिट सुएज को UBS को ख़रीदना पड़ा. यहाँ कारण दूसरा था , बैंक घाटे में चल रहा था और उसके बड़े निवेशक सऊदी नेशनल बैंक ने कह दिया कि और पैसे नहीं लगाएँगे. यही बयान उसके बिकने का कारण बना . अब इस हफ़्ते बीमारी स्विट्ज़रलैंड से जर्मनी के ड्यूश बैंक पहुँच गई. यह बैंक ठीक ठीक फ़ायदे में है लेकिन ब्याज दरों का असर पड़ा है. उसे डिपॉजिट का बीमा ख़रीदने के लिए ज़्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं. शेयर बाज़ार को डर लगा कि कहीं इसका हाल क्रेडिट सुएज जैसा ना हो जाए. महीने भर में शेयर के दाम 25% गिर चुके हैं. फ़िलहाल बैंक सुरक्षित है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारत में वित्त मंत्रालय ने बैंकों से पूछा कि किस किस बॉन्ड में पैसे लगाया है. वित्त मंत्री ने सरकारी बैंकों के साथ बैठक करके कहा है कि सतर्कता बरतें.

इस बीमारी का एक ही इलाज है कि सेंट्रल बैंक ब्याज दरों को बढ़ाना बंद कर दें , ये अभी संभव नहीं है. बैंकों के सामने समस्या यही है कि महंगाई क़ाबू में नहीं आ रही है. अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व ने पिछले हफ़्ते ब्याज दर बढ़ा दी . एक बार और बढ़ाने की संभावना है.इस साल घटने की संभावना बहुत कम है. बढ़ोतरी रुक जाए यही बड़ी बात है.. एक तरफ़ महंगाई की खाई है दूसरी तरफ़ मंदी का कुँआ है. सेंट्रल बैंक इकनॉमी को महंगाई से बचाने में लगे हैं मगर वहाँ से निकल कर मंदी में गिरने का डर बना हुआ है. इसका साइड इफ़ेक्ट बैंकों की सेहत पर पड़ रहा है

Advertisement. Scroll to continue reading.

( ये इकनॉमी और बिज़नेस को समझने-समझाने की कोशिश है . हर रविवार सुबह दस बजे हिसाब किताब एफबी पर छपता है . यहाँ छपे विचार मेरे अपने है और इंडिया टुडे ग्रुप से इसका कोई लेना देना नहीं है)

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement