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सियासत

मोदी के चार साल : देश की जनता अपनी बर्बादियों का जश्न मनाए भी तो कैसे?

Girish Malviya : ‘सखी सैंया तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है…’ जी हाँ कांग्रेस राज की मशहूर ‘महंगाई डायन’ मोदीराज के आखिरी साल में आपको परेशान करने फिर आ पहुंची है. देश के थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर अप्रैल 2018 में 3.18 फीसदी रही. यह चार महीनों का उच्चतम स्तर है. लेकिन फिक्र न कीजिए मोदीजी ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है.

न न आप गलत समझ रहे हैं. मोदी जी महंगाई कम करने की बात नहीं कर रहे हैं. वह थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर का आधार वर्ष ही बदल रहे हैं. वैसे सरकार ने बीते साल मई में ही थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर का आकलन करने के लिए आधार वर्ष बदलकर 2011-12 किया था. लेकिन तब भी महंगाई दर कंट्रोल में नही आ पा रही थी. इसलिए आधार वर्ष को 2017-18 किया जा रहा है ताकि मनचाहे आंकड़े दिए जा सके. वो कहते हैं न, ‘न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी’. वैसे भी मोदीजी ने बाँस को घास घोषित कर दिया है… सो, बांसुरी तो वैसे भी नही बज सकती.

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सावधान हो जाइये.. विदेशी निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजारों से पिछले आठ वर्किंग डेज में (2 मई से 11 मई के बीच) 12 हजार 671 करोड़ रुपए (2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की निकासी की है.. यह अभूतपूर्व स्थिति है जो बता रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति बहुत तेजी से बिगड़ रही है. पिछले अप्रैल महीने के दौरान भी विदेशी निवेशकों द्वारा 15,500 करोड़ रुपए की निकासी की गयी थी इसे. 165 महीनों की सर्वाधिक निकासी बताया गया.

फरवरी में भी पूंजी बाजार से 11,674 करोड़ रुपए निकाले थे. तब भी बहुत हंगामा मचा था. लेकिन सिर्फ आठ दिनों के भीतर 12 हजार 671 करोड़ रुपए की निकासी तो सोची भी नहीं जा सकती थी. साफ दिख रहा है कि भारत में बहुत तेज़ी के साथ आर्थिक परिदृश्य गड़बड़ा रहा है. इसलिए विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल कर जा रहे हैं. इस निकासी के सम्बंध में एक कहावत याद आती है. जब जहाज डूबने वाला होता है तो सबसे पहले चूहे ही निकल कर भागते हैं.

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इस बार मोदीजी ने अपनी सरकार के 4 साल पूरा होने का जश्न मनाने के आदेश अब तक नही दिए ? दरअसल उन्हें डर है कि जनता पूछेगी कि आपने इन 4 सालो में क्या किया तो जवाब क्या देंगे ? …..दरअसल देश की अर्थव्यवस्था को तो पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है इन्होंने. सार्वजनिक क्षेत्र के (पीएसयू) बैंक 1969 में हुए नेशनलाइजेशन के बाद सबसे बड़ी क्राइसिस से गुजर रहे हैं। उनका प्रॉफिट अभी 10 साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया देश की प्रतिष्ठा को रोज गिरा रहा है. विदेशी निवेशक अपना पैसा धड़ाधड़ निकाल रहे हैं. मार्च में इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन की ग्रोथ 4.4 फीसदी रह गई जो बीते 5 महीने का सबसे निचला स्तर है. व्यापार घाटा उच्चतम स्तर पर है. क्या यही उनका मास्टर स्ट्रोक था?

आज खबर आयी हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के यूको बैंक का शुद्ध घाटा 31 मार्च 2018 को समाप्त तिमाही में चार गुना बढ़कर 2,134.36 करोड़ रुपये हो गया. वहीं केनरा बैंक को चौथी तिमाही में 4,860 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. एक अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी बैंक इलाहाबाद का NPA बढ़ जाने से 3,509.63 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है एसबीआई भारत की कुल बैंकिंग का एक चौथाई हैं उसे भी अक्टूबर-दिसंबर के 3 महीने में 2,416 करोड़ का घाटा हुआ है. निजी बैंक भी क्राइसिस से जूझ रहे हैं ICICI बैंक का स्टैंड-अलोन शुद्ध मुनाफा 50 फीसद गिरकर 1,020 करोड़ रुपये रह गया. 2018 की चौथी तिमाही में एक्सिस बैंक को 2,188 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है. ओरियंटल बैंक आफ कामर्स का शुद्ध घाटा 31 दिसंबर को समाप्त चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में बढ़कर 1,985.42 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.

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NPA, नोटबन्दी और GST पर तो इतना लिखने को हैं कि पन्ने के पन्ने भी कम पड़े. जिस तरह का इकनॉमिक डिजास्टर मोदी के 4 सालों में देखने को आया है वह 2014 में अच्छे दिनों का सपना देखने वालों ने कभी सोचा भी नही होगा. आखिर देश की जनता अपनी बर्बादियों का जश्न मनाए भी तो कैसे?

आर्थिक विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.

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