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सुख-दुख

अमर उजाला के उदय कुमार की टुच्ची राजनीति के शिकार पत्रकार दविंद्र सिंह गुलेरिया की किताब ‘बेरोजगार की आखिरी रात’

‘बेरोजगार की आखिरी रात’ पुस्तक का जुलाई माह में अमेरिका के प्रतिष्ठित आथर हाउस में प्रकाशन हुआ है। यह किताब ई-बुक के रूप में अमेजॉन.इन पर उपलब्ध है। इसके लेखक दविंद्र सिंह गुलेरिया लगभग आठ साल तक अमर उजाला में रहे हैं। उन्होंने दिसंबर 2013 में चंडीगढ़ से अमर उजाला से इस्तीफा दिया था। उस समय वह पंजाब संस्करण के प्रभारी थे। कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के रहने वाले गुलेरिया सात साल से अधिक समय तक अमर उजाला हिमाचल डेस्क के प्रभारी रहे। करीब दो माह तक वह हिमाचल अमर उजाला के संपादकीय विभाग के प्रभारी भी रहे। चूंकि वह ईमानदार आदमी हैं, चापलूसी न तो करते हैं और न ही करवाते हैं, बस काम से मतलब रखते हैं। उदय कुमार ने उनको अमर उजाला में बहुत परेशान किया।

‘बेरोजगार की आखिरी रात’ पुस्तक का जुलाई माह में अमेरिका के प्रतिष्ठित आथर हाउस में प्रकाशन हुआ है। यह किताब ई-बुक के रूप में अमेजॉन.इन पर उपलब्ध है। इसके लेखक दविंद्र सिंह गुलेरिया लगभग आठ साल तक अमर उजाला में रहे हैं। उन्होंने दिसंबर 2013 में चंडीगढ़ से अमर उजाला से इस्तीफा दिया था। उस समय वह पंजाब संस्करण के प्रभारी थे। कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश के रहने वाले गुलेरिया सात साल से अधिक समय तक अमर उजाला हिमाचल डेस्क के प्रभारी रहे। करीब दो माह तक वह हिमाचल अमर उजाला के संपादकीय विभाग के प्रभारी भी रहे। चूंकि वह ईमानदार आदमी हैं, चापलूसी न तो करते हैं और न ही करवाते हैं, बस काम से मतलब रखते हैं। उदय कुमार ने उनको अमर उजाला में बहुत परेशान किया।

उदय कुमार द्वारा गलत तबादले करने के कारण शिमला डेस्क पर चार पद एक साल से अधिक समय तक खाली रहे थे। गुलेरिया शिमला में अमर उजाला हिमाचल डेस्क के प्रभारी थे तो उन्होंने कई बार खाली पदों को लेकर अवगत करवाया, पर पद नहीं भरे गए। हर दिन तीन या चार एडिशन बिना सब एडिटर के होते थे। गुलेरिया ने जैसे-तैसे एक साल से अधिक समय तक काम चलाया। उन्होंने साल में लगभग 25 साप्ताहिक अवकाश लगाए, जिसका उन्हें कुछ नहीं मिला। इसका इनाम उन्हें अप्रैल 2013 में चंडीगढ़ ट्रांसफर के रूप में मिला था। गुलेरिया की जगह उदय कुमार ने शिमला में अपना आदमी बैठाया था। साथ में डेस्क पर खाली पड़े सारे पद एकदम से भर दिए थे ताकि उनका आदमी डेस्क पर फेल न हो जाए।

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जो काम गुलेरिया अकेले देखते थे, उसको देखने के लिए दो आदमी लगा दिए थे। पर फिर भी वे काम ढंग से नहीं कर पाते थे। यहां तक कि डेस्क के लोग भी इससे बहुत दुखी थे। उदय कुमार की इस टुच्ची राजनीति के कारण गुलेरिया ने अमर उजाला छोड़कर हमीरपुर से प्रकाशित हो रहे डीएनएस ज्वाइन कर लिया था। दविंद्र सिंह गुलेरिया छात्र समय से ही लिखते रहे हैं। उन्होंने पहली किताब 17 साल की आयु में लिखी थी। इसे प्रकाशित करने के लिए हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी शिमला ने अप्रैल, 1995 में दो हजार रुपए स्वीकृत किए थे। गुलेरिया को आज भी इस बात की टीस है कि उनके साथ इस तरह से अन्याय किया गया। पर उन्हें खुशी है कि अमेरिका के प्रकाशन हाउस ने उनकी किताब छापकर विरोधियों को इसका करारा जवाब दिया है।

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0 Comments

  1. Prashant Sharma

    August 24, 2014 at 6:03 pm

    I was quite young when. I joined amar ujala in shimla. perhaps I was 20. i have learnt a lot from Mr Guleria who had been a very honest and workaholic kind of banda. we all respect him a lot. I resigned after one year of service in the newspaper. all the facts mentioned here in are true

  2. Rajeshwar Rajesh

    August 25, 2014 at 1:52 pm

    Guleria is making fool of others. Mr. Guleria thinks that he is the only intellectual in the world. Chaploosi ka mater hai , Amar Ujala me nahi chali , isliye bhaag pade.. Log bolte hai ki isne Divy Himachal me bhi khoob chaploosi ki thi , jab wahaan band ho gai toh raton raat bhaag kar Gurrani ke CHAPDASI ban gaye…

  3. DS Guleria

    August 26, 2014 at 6:47 am

    राजेश्वर राजेश जी,
    पहली बात तो यह है कि मैं अपने आप को शून्य समझता था और समझता हूं। मेरी लड़ाई मानवता के लिए है और यह बहुत लंबी चलनी है। दुनिया देखेगी। इतना तय है कि उसमें अमेरिकी मेरे साथ होंगे। मेरी सोच क्या है, आपको मेरी किताब पढ़कर पता चल जाएगा। यह किताब अमेजॉन.इन पर उपलब्ध है। आपने लिखा है कि मैं भाग गया तो दोस्त बात ऐेसे है कि मैं आपकी तरह फर्जी नाम से कमेंट डालने वाला नहीं हूं। दम है तो असली नाम के साथ सामने आना। मर्दों की तरह आमने-सामने बात करना। जिस राजपूत की रगों में असली खून होगा, वह कभी पीठ दिखाकर नहीं भागता। वह या तो मारता है या मरता है। हमारे पूर्वज जंगलों में जाकर शेरों से टकराते रहे हैं और युद्ध में सिर कट जाने पर बिना सिर के भी लड़ते रहे हैं। मैं जानता हूं कि तुम मेरे आसपास के ही प्राणी हो। नाम बदलकर भड़ास निकाल रहो हो। तुम्हें मेरी किताब से तकलीफ है तो तुम भी लिखो यार दिक्कत क्या है? आज भी अमर उजाला के शिमला डेस्क पर वोटिंग करवा लेना, 90 फीसदी से ज्यादा लोग मेरे साथ हैं। पूर्व पीएम वीपी सिंह ने 16 साल पहले मेरी विचारधारा से प्रभावित होकर मेरे ऊपर कविता लिखी थी-ऐ वंदे खतोकिताबत क्यों करते हो…। मैंने कॉलेज में पढ़ते समय श्री मद् भगवद गीता पढ़ी थी, उसमें लिखा है कि चापलूसी करने वाले लोग इस दुनिया के सबसे निम्न स्तर के प्राणी होते हैं। फिर भी आपको या किसी को लगता है कि मैं चापलूस हूं तो आपको क्या तकलीफ है?

  4. Sanjay Kaushal

    August 27, 2014 at 3:34 am

    मैंने भी अमर उजाला जैसा अच्छा अखबार उदय कुमार के कारण छोड़ा था ! पता नहीं ऐसे लोग यहां तक कैसे पहुँच गए ! श्री दिनेश जुयाल और गुरुरानी जैसे लोगों के साथ काम कर के बहुत कुछ सीखा

  5. Vivek Thakur

    August 27, 2014 at 12:13 pm

    सर जी आप बहुत अच्छा काम कर रहे है और हम आपके साथ है | (राजेश्वर राजेश) के जैसे लोग धरती पर ही कलंक है | ऐसे लोग खुद कुछ कर नही सकते है और अगर कोई दूसरा करे तो आग ही लग जाती है | और ऐसे लोगो मे कुछ करने की क़ाबलियत भी नही होती है | सर जी वैसे भी राजपूतों के आगे कोई भी नही टिक पाया है | ये तो कोई तुच्छ मानव है | सर जी आप ऐसे ही किताबे लिखते रहे और तुच्छ लोगो को आग की तरह जलाते रहें | हम सदैब आपके साथ है |

  6. DS Guleria

    August 27, 2014 at 4:13 pm

    श्री प्रशांत शर्मा जी, श्री संजय कौशल जी एवं श्री विवेक ठाकुर जी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

  7. Ankush Lath

    February 9, 2015 at 5:23 pm

    Guleria ji dont required certificate of integrity and commitment from any disgruntled element. Have worked under him at Divya Himachal. He is amazing at his work.

  8. DS Guleria

    February 14, 2015 at 10:47 am

    धन्यवाद अंकुश जी.

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