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फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकारों को गालियां देता है दैनिक जागरण भदोही का पत्रकार हरिनाथ यादव!

Sanjaya Kumar Singh : छोटे शहरों के बड़े अखबारों की पत्रकारिता… भदोही में एक नेता के भतीजे ने किसी लड़की से छेड़खानी की और बात बढ़ी को उससे बदतमीजी की तथा उसके कपड़े भी फाड़ दिए। यह खबर भदोही से कायदे से रिपोर्ट नहीं हुई और लखनऊ के पत्रकार कुमार सौवीर ने इसपर अपने पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम पर विस्तार से लिखा और फेसबुक पर उसका लिंक भी दिया। खबर का शीर्षक था, “समाजवादी नवरात्र शुरू: एमएलए के भतीजे ने सरेआम नंगा किया अनाथ किशोरी को”।

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Sanjaya Kumar Singh : छोटे शहरों के बड़े अखबारों की पत्रकारिता… भदोही में एक नेता के भतीजे ने किसी लड़की से छेड़खानी की और बात बढ़ी को उससे बदतमीजी की तथा उसके कपड़े भी फाड़ दिए। यह खबर भदोही से कायदे से रिपोर्ट नहीं हुई और लखनऊ के पत्रकार कुमार सौवीर ने इसपर अपने पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम पर विस्तार से लिखा और फेसबुक पर उसका लिंक भी दिया। खबर का शीर्षक था, “समाजवादी नवरात्र शुरू: एमएलए के भतीजे ने सरेआम नंगा किया अनाथ किशोरी को”।

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इस क्रम में और भी खबरें कीं। उन्होंने एक और खबर लिखी, “भदोही काण्ड: धंधा है दलाली व चरण-चूमने का, खबर कैसे मिले”। इसे पप्पू जी यादव ने शेयर किया और टिप्पणी लगाई, “भदोही के पत्रकारों की जय हो”। इसपर हरिनाथ यादव ने कमेंट में दैनिक जागरण में छपी खबर लगाई और लिखा, “दैनिक जागरण ने प्रथम पेज पर प्रकाशित किया है। पत्रकारों पर आरोप मढ़ने से पहले अपनी गिरेबां में जरूर झांक लिया करें”। यहां तक तो मुझे मामला ठीक लग रहा था और लगा कि भदोही में भी कोई वीर और कर्मठ पत्रकार है जिसकी प्रतिभा दबी हुई है।

इसीलिए इसमें मेरी दिलचस्पी जगी। इसपर कुमार सौवीर ने लिखा, “Harinath Yadav : हादसे के तीन बाद तुम्‍हें खबर मिली, इसके लिए पहले शर्म के चलते अपना चेहरा काला कर लो। पत्रकारिता के बेशर्म चेहरा हो तुम। भदोही की अपनी ही बेटियों की इज्‍जत को इस तरह अपनी दलाली के लिए बेच रहे हो तुम। आक्‍थू।” आप कुमार सौवीर की भाषा और आक्थू कहने से असहमत और नाराज हो सकते हैं पर अभी मुद्दा वो नहीं है। वे खबर नहीं करने और इसका कारण दलाली बता रहे हैं। इसपर हरिनाथ यादव ने लिखा, “ Kumar Sauvir किसी जमाने में आप जौनपुर में एक अच्छे समाचार पत्र में कार्यरत थे। आपकी कारस्तानी के चलते आपको वहां से हटा कर मुख्यालय से जोड़ा गया था। बाद में वहां से आप को भगाया गया।” यह आरोप का जवाब नहीं है और आरोप के जवाब में आरोप लगाने से आरोप खत्म नहीं हो जाता।

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इस पर कुमार सौवीर ने लिखा, “और तुम भदोही में रह कर भदोही की बेहाल बेटियों को न्‍याय दिलाने के बजाय सादाब जैसे अपराधियों की दलाली में उन बच्चियों की इज्‍जत और उनके भविष्‍य को बेच रहे हो। करते रहो। तुम्‍हारी नीय‍त ही यही है। इसके अलावा तुम क्‍या कर सकते हो। तैयार रहना, जल्‍दी ही तुम सब की खबर लूंगा। फेसबुक पर कमेंट और फिर जवाब भी कमेंट के रूप में हुई इस बातचीत का स्क्रीन शॉट कुमार सौवीर ने पोस्ट किया और है इसे पप्पू जी यादव ने भी साझा किया है। पर यह बातचीत मुझे मिली नहीं इसलिए संक्षेप में लिख रहा हूं। स्क्रीन शॉट पढ़ने में साफ नहीं है और पूरी बातचीत टाइप करने में समय लगेगा। इसलिए सिर्फ जरूरी अंश।

कुमार सौवीर ने लिखा कि लड़की सरेबाजार नंगा कर दी गई और महज छेड़खानी का सर्टिफिकेट देते हुए तुम्हे शर्म नहीं आती है। इसपर हरिनाथ यादव ने लिखा, “ऑफिस में बैठकर समाज सेवा की बात करते हैं भदोही आयो और सच्चाई जानो घटना की और पत्रकारों के बारे में भी।” इसपर कुमार सौवीर ने लिखा, “खूब पता है क्या करते हो तुमलोग भदोही में रहकर। इतनी बड़ी घटना को तुमलोगों ने तीन दिनों तक छिपाए रखा। जबकि हादसे के एक घंटे बाद ही पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया था।” हरिनाथ यादव ने इसके जवाब में लिखा, “घटना के दिन मैं छुट्टी पर था। दूसरे दिन पता चलते ही समाचार प्रकाशित किया गया।” इसके बाद गाली और आरोप। अपने ऊपर गाली लगाने वालों को धमकी आदि-आदि।

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मैं इस खबर की चर्चा पत्रकारों के निजी संबंध या आरोप-प्रत्यारोप के विश्लेषण के लिए नहीं कर रहा हूं। इस खबर के जरिए मैं यह दिखाना चाह रहा हूं कि छोटे शहरों में अंशकालिक पत्रकारों के सहारे, न्यूनतम वेतन से भी कम तनख्वाह पर काम करने वाले पत्रकारों के जरिए हिन्दी के बड़े और तेजी से बढ़ने वाले अखबारों की पत्रकारिता कैसी है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया की जरूरत समाज को है पर उसकी क्या दशा है। गली-मोहल्लों में संवाददाताओं की फौज और हर शहर से अखबार और छोटी-छोटी जगहों से संस्करण निकालने वाले अखबार में अगर एक व्यक्ति छुट्टी पर हो तो खबर अगले दिन छपती है (आरोप तो ज्यादा है)। बिहार यूपी में ऐसे मामलों में होता यह है कि मीडिया में शोर मचने पर एफआईआर लिखी जाती है पर यहां एफआईआर होने के बाद भी खबर नहीं है।

अमूमन होता यह है कि हिन्दी पट्टी के सभी शहरों में रिपोर्टर शाम को 100 नंबर पर या पुलिस कंट्रोल रूम में किसी परिचित, मित्र या सूत्र को फोन करके खबरें लिख देता है और उसकी दिहाड़ी पूरी हो जाती है। इसीलिए ज्यादातर मामलों में खबरें एफआईआर की तरह ही लिखी जाती हैं। यहां छेड़खानी का आरोप एक नेता के भतीजे पर है और प्रकाशित खबर में नीचे लिखा हुआ है कि कपड़े फाड़ दिए। सरे राह किसी लड़की का कपड़ा फाड़ देने बगैर छुए और जबरदस्ती किए संभव नहीं है और नए कानून के तहत मेरे ख्याल से यह बलात्कार की श्रेणी में आएगा पर एफआईआर क्या है और मामला क्या है यही सब देखना रिपोर्टर का काम होता है। अगर रिपोर्टर चूक जाए तो डेस्क पर बैठे लोगों का काम होता है कि रिपोर्टर को आवश्यक जानकारी देने के लिए कहा जाए। पर ऐसा कुछ जागरण के डेस्क ने नहीं किया और पुरानी खबर को आधी-अधूरी छाप दी।

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इसलिए खबर बेचने का आरोप लग रहा है तो रिपोर्टर छुट्टी पर होने का बहाना बना रहा है और आरोप लगाने वाले पर आरोप लगा रहा है, उससे भी बात नहीं बनी तो गाली दे रहा है। ऐसी है हमारे यहां छोटे शहरों के बड़े अखबारों की पत्रकारिता। दिलचस्प है कि हरिनाथ यादव फेसबुक पर खुद को दैनिक जागरण से जुड़ा बता रहे हैं और जागरण का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं पर गालियां देकर। किसी संस्थान का प्रतिनिधि अपने संस्थान की ओर से बोलते हुए किसी को गाली लिखे – शर्मनाक से अच्छा शब्द नहीं मिल रहा है मुझे।

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के एफबी वॉल से. इस स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं…..

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Shambhunath Shukla कुमार सौवीर हिम्मती पत्रकार हैं और शायद इसीलिए सांस्थानिक पत्रकारिता उन्हें स्वीकार नहीं कर पाई। पर आपने इस पूरे घटनाक्रम का बहुत अच्छा विश्लेषण किया है। इन सारे अखबारों के मुफस्सिल संवाददाता बस किसी तरह दिहाड़ी पूरी करते हैं और खबरों के लिए वे थानेदार के भरोसे रहते हैं साथ ही उनके साथ मिलकर एकाध मामलों में पैरवी कर लेते हैं जो उनकी रोजमर्रा की आदत है। किसी खबर के प्रति उनका रवैया चलताऊ और निपटाऊ रहता है। पर यह सिर्फ रिमोट एरिया में ही नहीं। वर्नाक्यूलर अखबारों के राजधानी स्थित दफ्तरों में यही होता है। कल एनडीटीवी के प्राइम टाइम में रवीश कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस के न्यूज रूम से बैठकर शो किया था उसे देखकर आंखें खुली की खुली रह गईं। और अपने जनसत्ता वाले दिन याद आ गए जब हम सब एक्सप्रेस के न्यूज रूम में ही बैठते थे और उनसे खबरें साझा करते थे। शायद इसीलिए तब की हिंदी पत्रकारिता भी आज की तरह चलताऊ नहीं थी।

Kumar Pal सर स्थिति इससे भी कही ज्यादा जटिल और भयाभय है। कस्बों के रिपोर्टर ख़बरों में कम और दलाली में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। कहीं न कहीं इसके लिए मीडिया समूह भी जिम्मेदार है। हर एजेंसी से नियूनतम महिना तय है उसे हर महीने उतना देना ही देना है अगर नहीं दिया तो उसकी दुकान बंद। दरअसल अख़बारों ने मजबूर कर दिया है पत्रकारों को दलाली करने के लिए। अख़बार अब वेतन देने की बात नहीं करते अब सीधे सीधे बात होती है महीने में कितना दोगे। और अख़बार को कितने चाहिए जिससे सामंजस्य बैठ जाता है वही पत्रकार का तमगा लगाये दलाली करता फिरता है। आज पत्रकारिता गहरे संकट के दौर से गुजर रही है। प्रतिभावान पत्रकार सड़कों की खाक छान रहे है और चापलूस मालिकों के चहेते बन मलाई खा रहे है। आज कल काम से ज्यादा चापलूसी भा रही है।

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Sunil Singh छोटे शहरों में बाकई पत्रकार पुलिस थाने से खबर निकाल कर छाप देते हैं। उस खवर की गहराई में नही जाते हैं। और इनकी दलाली तो सबको मालूम ही है। दारू मुर्गे पर भी बिक जाते हैं।

Sanjeev Gupta ये 100 टका सच्चाई है। सही विश्लेषण।

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मूल खबर पढ़ें….

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0 Comments

  1. rahi mk

    April 13, 2016 at 3:46 pm

    Main Kumar Pal ji se 100% sahmat hoon. In Tuchchey Malikon, Manageron aur Directaron ki wajah se aaj Patrakarita Hasiye par hai aur Dalalon ki lottery nikal gai hai.. Koi vyakti dalali nahin kerna chahta (kuchh Janmjaat Dalal kism ke logon ko chhod ker). Inhein dalali par mazboor Management kertey hain.

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