उर्मिलेश-
हिन्दी के बड़े अखबार समूह-दैनिक भास्कर(Dainik Bhaskar) के कई दफ्तरों और समूह के कुछ प्रमुख लोगों के घरों पर सरकारी एजेंसियों की छापेमारी की खबर आ रही है. खबर के मुताबिक देश के कई शहरों में ऐसी छापेमारी हो रही है.
पिछले काफी समय से यह अखबार समूह (दैनिक भास्कर और दिव्य भास्कर आदि) सच लिखने से नहीं डर रहा था! कोरोना दौर में लोगों की मुश्किलों और सरकारों की आपराधिक लापरवाही व विफलताओं को अखबार ने बहुत तथ्यात्मक ढंग से उद्घाटित किया था.
कई बड़े राजनैतिक मसलों पर भी इसकी खबरें और संपादकीय टिप्पणियां हिंदी के अन्य अखबारों से बिल्कुल अलग दिख रही थीं. कई बार अचरज भी होता था कि इतना बडा अखबारी समूह होने के बावजूद Bhaskar Group के मालिक और संपादक ऐसा साहस कैसे दिखा पा रहे हैं?
हाल के दिनों में Pegasus जासूसी कांड और निकट अतीत के कुछ अन्य सनसनीखेज़ जासूसी कांडो का भी इस अखबार समूह ने जबर्दस्त कवरेज़ किया है. ग्रुप के कुछ प्रमुख प्रतिष्ठानों पर छापेमारी की खबर मिलते ही जब अखबार-समूह से सम्बद्ध एक वरिष्ठ संपादकीय पदाधिकारी से इसका सच जानना चाहा तो उन्होंने भी बताया कि छापेमारी की ऐसी खबरें उन्हें भी मिल रही हैं.
राहुल सिंह शेखावत-
भारत में पहले भी मीडिया को सरकार की नाफरमानी की कीमत चुकानी पड़ी है। प्रतिष्ठित अखबार दैनिकभास्कर समूह और UP के न्यूज चैनल BharatSamachar पर हुई छापेमारी न्यू इंडियन संस्करण है। मीडिया की तो हमेशा विपक्ष की भूमिका होनी चाहिए। लेकिन सत्ता के साथ चलना मौजूदा पत्रकारिता का अघोषित धर्म बन दिया गया है।
अब या तो मीडिया संस्थान सरकारों के सामने घुटने टेक दें या फिर एक्शन को झेलने के लिए तैयार रहें। उससे बड़ा संकट ये है कि दर्शक और पाठक अपने वैचारिक आस्था के आधार पर चैनल और अखबारों को पसंद करने लगे हैं। जिसके आधार पर समाज आज खुशी या नाखुशी जाहिर करता है।
बेशक फाइनेंशियल सरवाइवल और निजी हितों के लिए भी मीडिया मालिकान ने जन आकांक्षाओं से अन्याय किया है। सनद रहे कि छापों सिर्फ मीडिया का मुंह बन्द नहीं बल्कि आमजन की आंख फोड़ने का दुस्साहस है। अगर जिंदा रहना चाहते हो तो अपने लिए आवाज उठाइए। मर्जी आपकी है। जयहिंद।