राजस्थान कोटा के अखबार वितरक राठौर ने दैनिक भास्कर के झूठे दिखावे के आगे 10 जनवरी 2019 को अपनी जान गंवा दी। भास्कर खुद को नंबर वन सिद्ध करने के लिये अब किसी की जान लेने में भी पीछे नहीं हटता। दैनिक भास्कर अपनी झूठी ग्राहक संख्या बताने के लिये वितरकों पर अपनी अखबार की प्रतियां थोपता है और उसके पैसे गुंडे भेजकर वसूलता है। राठौर पर भास्कर का लगभग 1.5 से 2 लाख का कर्जा था।
अपने मीडिया के नाम पर दादागिरी करने का ये कोई पहला मामला नहीं है। कोटा के चौपाटी काउंटर के वितरक राठौर भी मीडिया की इस गुंडागर्दी का शिकार हुआ और अपना प्राण त्याग कर ही मुक्ति का रास्ता निकाला। सूत्रों से खबर है कि दैनिक भास्कर ने उसकी ग्राहक संख्या से अधिक उसको अखबार की प्रतियां थोपी जिसका भुगतान करने में वो असमर्थ था। उसके घर पर रद्दी बढ़ती गई। उसके घर मे क्लेश होना शुरू हो गया। कर्जे तले वो दबता चला गया। अखबार के इस कर्जे ने उसके परिवार की खुशियां में ज़हर घोल दिया।
विवाद आये दिन की बात हो गई। विवादो के चलते उनकी धर्मपत्नी उनको छोड़ कर चली गई। उनकी इस दशा पर भी दैनिक भास्कर को रहम नहीं आया। वो निरंतर उसको परेशान करते रहे। घर मे घुसकर उसको धमकाते रहे और उन प्रतियों का पैसा मांगते रहे जो उसने कभी खरीदी ही नहीं बल्की उस पर थोपी गई और जो बिकी नहीं, सिर्फ रद्दी हुई है। दरअसल होता ये है कि अखबार एक्सीक्यूटिव स्कीम का प्रलोभन देकर अंडशंड प्रतियां बढ़ा देते हैं और मजे की बात ये है कि उसका लाभ वितरक तक नहीं पहुँचता, वो ही सारा पैसा खा जाते हैं। तभी तो 12-13 हज़ार कमाने वाले एक्सीक्यूटिव कार मेन्टेन कर के चलते हैं। इस नीति से वितरकों को तो साफ साफ नुकसान है और अखबार मालिकों को भी घाटा है।
ताज्जुब की बात है भास्कर से परेशान होकर एक वितरक आत्महत्या कर रहा है लेकिन दूसरे वितरकों के कान पर जूं तक नही रेंगती। वितरकों के ढेर सारे फोकट के नेता हैं जिन्हें अपने साथी के मरने पर भी कुछ एक्शन नहीं लेना आता। कुछ तो ऐसे हैं जो सिर्फ चाटने का काम करते हैं। वितरक भाइयों को सोचना चाहिए आज किसी के साथ हुआ है, कल उनके साथ भी हो सकता है। सूत्रों से खबर है कि वितरक राठौर ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था जिसमें दैनिक भास्कर के एक एक्सीक्यूटिव का नाम दर्ज है।
कोटा से एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.