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भास्कर ग्रुप ने मजीठिया से डर के मारे नंबर वन वाला अपना विज्ञापन हटवा दिया!

देश मे नंबर एक अखबार का दावा करने वाला भास्कर ग्रुप मजीठिया के डर के साये मे जी रहा है. मजीठिया वेज बोर्ड की हड्डी भास्कर समूह के गले में इस कदर अटकी है कि न तो इसे निगलते बन रहा है और न ही उगलते. ताजा एक घटनाक्रम तो कुछ इसी तरफ इशारा करता है. बुधवार 7 अक्टूबर के अंक में नेशनल लेवल पर एक इनहाउस विज्ञापन प्रकाशित करने का फैसला लिया गया. इसके लिए विज्ञापन जारी भी कर दिया गया. इस विज्ञापन में भास्कर के सभी संस्करणों और पाठकों की संख्या बताते हुए भास्कर द्वारा खुद को देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र होने का दावा किया गया था. विज्ञापन अखबार में चिपका दिया गया और डाक एडिशन में पब्लिश भी हो गया.

<p>देश मे नंबर एक अखबार का दावा करने वाला भास्कर ग्रुप मजीठिया के डर के साये मे जी रहा है. मजीठिया वेज बोर्ड की हड्डी भास्कर समूह के गले में इस कदर अटकी है कि न तो इसे निगलते बन रहा है और न ही उगलते. ताजा एक घटनाक्रम तो कुछ इसी तरफ इशारा करता है. बुधवार 7 अक्टूबर के अंक में नेशनल लेवल पर एक इनहाउस विज्ञापन प्रकाशित करने का फैसला लिया गया. इसके लिए विज्ञापन जारी भी कर दिया गया. इस विज्ञापन में भास्कर के सभी संस्करणों और पाठकों की संख्या बताते हुए भास्कर द्वारा खुद को देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र होने का दावा किया गया था. विज्ञापन अखबार में चिपका दिया गया और डाक एडिशन में पब्लिश भी हो गया.</p>

देश मे नंबर एक अखबार का दावा करने वाला भास्कर ग्रुप मजीठिया के डर के साये मे जी रहा है. मजीठिया वेज बोर्ड की हड्डी भास्कर समूह के गले में इस कदर अटकी है कि न तो इसे निगलते बन रहा है और न ही उगलते. ताजा एक घटनाक्रम तो कुछ इसी तरफ इशारा करता है. बुधवार 7 अक्टूबर के अंक में नेशनल लेवल पर एक इनहाउस विज्ञापन प्रकाशित करने का फैसला लिया गया. इसके लिए विज्ञापन जारी भी कर दिया गया. इस विज्ञापन में भास्कर के सभी संस्करणों और पाठकों की संख्या बताते हुए भास्कर द्वारा खुद को देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र होने का दावा किया गया था. विज्ञापन अखबार में चिपका दिया गया और डाक एडिशन में पब्लिश भी हो गया.

लेकिन अचानक देर रात इस विज्ञापन को रोकने के आदेश जारी हो गए. बताया जा रहा है कि शायद अधिकारियों को यह अंदेशा हो गया था कि विज्ञापन अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है, क्योंकि कहीं यह नंबर वन का दावा मजीठिया वेज बोर्ड के सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस में संज्ञान लेकर कर्मचारियों की इसी मुताबिक सेलरी देने से न जुड़ जाए. फिलहाल विज्ञापन हटाए जाने को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. विज्ञापन को आनन फानन में रोक कर उसकी जगह फीचर पेज संबंधत मैटर रिलीज करवाया गया. 

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0 Comments

  1. anjan

    October 13, 2015 at 9:07 pm

    डीबीकॉर्प लिमिटेड देश की शीर्ष 500 कंपनियों में शामिल हो गई है। विश्वविख्यात डन एंड ब्रेडस्ट्रीट की ओर से हाल ही में मुंबई में जारी ‘इंडियाज टॉप 500 कंपनीज-2015’ की सूची में डीबी कॉर्प लिमिटेड का भी नाम शामिल है। मीडिया एंड एंटरटेंमेंट कैटेगरी में डीबी कॉर्प के अलावा सिर्फ पांच अन्य कंपनियां इस सूची में जगह बना पाई हैं। शीर्ष 500 की सूची में निजी क्षेत्र की ऐसी कंपनियां और सार्वजनिक क्षेत्र के वे उपक्रम शामिल हैं, जो बीते वर्षों में अपने-अपने क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करते आए हैं।
    कंपनियों को विभिन्न फायनेंशल इंडिकेटर्स के साथ शीर्ष 500 में रखा गया है। इन इंडिकेटर्स में टोटल इनकम, नेट प्रॉफिट और नेट वर्थ आदि शामिल हैं। डन एंड ब्रेडस्ट्रीट के अनुसार ये शीर्ष कंपनियां देश के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाती हैं।
    डीबी कॉर्प लिमिटेड के अंतर्गत देश के सबसे बड़े हिंदी अखबार दैनिक भास्कर, गुजराती अखबार दिव्य भास्कर, मराठी अखबार दिव्य मराठी और अंग्रेजी अखबार डीएनए का प्रकाशन होता है। इसके अलावा अहा जिंदगी, बाल भास्कर और यंग भास्कर जैसी मैग्जीन का प्रकाशन भी होता है। देश के प्रमुख 17 शहरों में मायएफएम के नाम से रेडियो स्टेशन हैं। इसके अलावा हिंदी की वेबसाइट dainikbhaskar.com, गुजराती वेबसाइट divyabhaskar.com, मराठी वेबसाइट divyamarathi.com, अंग्रेजी वेबसाइट dailybhaskar.com एवं अन्य वेबसाइटों के कुल 3.84 करोड़ यूनिक विजिटर के साथ डिजिटल के क्षेत्र में भी प्रमुख स्थान है।

  2. kyrra

    October 8, 2015 at 4:46 am

    भास्कर में मजिठिया को लेकर भले ही ज्यादातर कर्मचारी नहीं बोले हो लेकिन अब एक बात सामने आ रही है कि कंपनी लगातार आगे बढने की बात कर रही हे इसके लिए हर महीने लाखों रुपए भोपाल में रिव्यू मीटिंग्स के नाम से खर्च हो रहे हैं, एडिटोरियल में बेस्ट स्टेट एडिटर के एक लाख, एडिटर के पचास हजार सहित हजारों के इनाम घोषित किए हैं, इनका अब विरोध भीहोने लगा है। प्रमुख 17 एडिशन में पीपीटी को लेकर हाय तौबा मची हुई है। राई का पहाड बनाने पर तुलें है, रिपोर्टर पूरीतरह से परेशान है इसके अलावा कई ऐसे लोग है जो अखबार की बैकबॉन है उन्हें यह कभी भी नसीब नहीं होगा क्योंकि वे ऐसे पन्नों के लिए काम करते हैं जो एमडी को नजर नहीं आएंगे।
    लोगों का कहना है कि इतने रुपए हर माह खर्च हो रहे हैं उतने अगर कर्मचारियों को अच्छे इंक्रिमेंट में दिए होते तो यह नौबत नहीं आती।

    अब पाठकों की परवाह किसी को नहीं है केवल एक ही परवाह है कि एमडी को दिखाने के लिए काम करना है।

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