भविष्य निधि के भविष्य को लेकर नौकरीशुदा लोगों का वर्तमान परेशान हो गया है। क्या वित्त मंत्री अपने इस फैसले को वापस लेंगे, ऐसा तो कोई संकेत नहीं है कि नहीं लेंगे। बल्कि सूत्र आधारित जानकारी के अनुसार बीजेपी और सहयोगी दलों के सांसदों के साथ बैठक में उन्होंने उत्सुक सांसदों को कारण समझाने का प्रयास तो किया लेकिन वापसी की मांग को देखते हुए कह गए कि फैसला प्रधानमंत्री लेंगे। तो क्या ये फैसला प्रधानमंत्री का था या वित्त मंत्री ने ये कहना चाहा कि वे अपने इस फैसले पर अड़े रहेंगे। मंगलवार को एक बार फिर से राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ने सफाई दी कि पीपीएफ पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
इस सफाई से भ्रम ही फैल गया कि ये रोल बैक है या स्पष्टीकरण। क्या बजट में पीपीएफ के बारे में कुछ नहीं कहा गया था। यही बात राजस्व सचिव ने बजट के बाद वित्त मंत्री के साथ जब प्रेस के समक्ष प्रस्तुत हुए तब क्यों नहीं बताई, जबकि उन्होंने सिर्फ इसी पर विस्तार से बताते हुए कहा था, ‘मैं एनपीएस, ईपीएफ और अन्य योजनाओं को एक समान किये जाने पर बात करना चाहता हूं। तीन तरह के प्लान हैं। पहला सुपर एनुएशन फंड स्कीम। दूसरा प्रोविडेंट फंड स्कीम जिसमें ईपीएफ भी शामिल है। तीसरा है एनपीएस।’
लेकिन चौबीस घंटे से भी कम समय में राजस्व सचिव बताने लगे कि इस योजना में पीपीएफ शामिल नहीं हैं। राजस्व सचिव ने यह भी बताया था कि अब नियोक्ता यानी नौकरी देने वाले कर्मचारी के ईपीएफ में डेढ़ लाख से ज़्यादा नहीं देंगे। ईपीएफ में नियोक्ता का योगदान डेढ़ लाख तक सीमित कर दिया है। यह भी साफ किया था कि 1 अप्रैल 2016 से पहले की जमा राशि पर नया नियम लागू नहीं होगा। राजस्व सचिव ने यह भी कहा और उन्होंने यह बात सोमवार को भी कही थी कि EPF उन कर्मचारियों के लिए बना था, जिनकी आमदनी महीने की 15,000 रुपये थी। बाद में इसमें निजी कंपनियों के योगदान को भी शामिल कर लिया गया, जिनकी सैलरी 15,000 रुपये हैं उन्हें पैसा निकालते वक्त टैक्स नहीं देना होगा।
सवाल है कि 15,000 पाने वाले की सैलरी बढ़ गई तो क्या होगा। ज़ाहिर है बढ़ेगी ही। कहीं ऐसा तो नहीं कि समझाने के चक्कर में अफसरों ने मामला उलझा ही दिया है। आज सरकार ने जो प्रेस रिलीज जारी की है, उसमें भी 15,000 वाली बात है। वैसे पीएफ सैलरी के हिसाब से नहीं बेसिक के हिसाब से लगता है। कितने लोग ऐसे हैं जो ईम्पलाई प्रोविडेंट फंड आर्गेनाइज़ेशन ईपीएफओ के सदस्य हैं। प्रेस रिलीज में कहा गया है कि EPFO के क़रीब 3.7 करोड़ सदस्यों में से क़रीब 3 करोड़ ऐसे ही सदस्य हैं…। यानी करीब 3 करोड़ सदस्य 15,000 वेतन पाने वाले हैं। जिन्हें पैसा निकालते वक्त टैक्स नहीं देना पड़ेगा। EPFO में निजी क्षेत्र के करीब 60 लाख सदस्य ऐसे हैं जिनकी तनख्वाह ज़्यादा है। इस वर्ग के लोगों को अब टैक्स देना पड़ेगा।
EPFO के सदस्यों को लेकर दो तरह के आंकड़े हैं। प्रेस रिलीज में कहा गया है कि 3.7 करोड़ सदस्य हैं। सूत्र बताते हैं कि सदस्यों की संख्या 6 करोड़ से ज्यादा है जिनकी केवाईसी संस्था के पास है। ‘इकोनोमिक टाइम्स’ ने पांच करोड़ से ज़्यादा सदस्य बताये हैं। ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ अखबार के अनुसार सदस्यों की संख्या करीब छह करोड़ है। अब अखबारों की संख्या ज़्यादा है या सरकार की संख्या कम, इसकी जानकारी के लिए आरटीआई का सहारा लेना पड़ेगा या कोई सांसद संसद में यह सवाल पूछ ले। बजट में और बाद में राजस्व सचिव ने यह कहा था कि ईपीएफओ और पीपीएफ से जो साठ फीसदी हिस्सा है उसे सुपर एन्युइटी स्कीम में लगा देने पर कोई टैक्स नहीं लगेगा लेकिन जब पेंशन मिलने लगेगा तो उस पर टैक्स लगेगा। प्रेस रिलीज में कहा गया है कि जब इस 60 फीसदी पैसे को एन्युइटी में रखा जाएगा तो कोई टैक्स नहीं लगेगा और तब आपका पूरा फंड टैक्स फ्री हो जाएगा।
पहले कहा गया कि सुपर एन्युईटी में डालने के बाद जो पेंशन के रूप में जो राशि मिलेगी उस पर टैक्स लगेगा। अब कहा जा रहा है कि राशि पर टैक्स नहीं लगेगा। अब आप एक और बात समझिये। सरकार कहती है कि साठ फीसदी हिस्सा अगर सुपर एन्युइटी में नहीं लगाएंगे तो ही टैक्स देना होगा। अगर बीमा पॉलिसी खरीद लेंगे तो नहीं देना होगा। सरकार बीमा कंपनियों के लिए कर्मचारियों पर टैक्स लगा रही है या हमारे भले के लिए। नौकरी के दौरान कर्मचारी जिन बीमा पालिसी को पांच-दस हज़ार के प्रीमियम में खरीदते रहते हैं उसी की एक पॉलिसी हम रिटायर होने के बाद लाखों रुपये देकर खरीदेंगे। अगर किसी ने पहले से ही ऐसा प्लान ले रखा हो तो वो दोबारा क्यों खरीदेगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बदलाव के ज़रिये इंश्योरेंस सेक्टर का खजाना भरा जा रहा है। सरकार क्यों तय करेगी कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले पैसे को हमें कहां देना है। वो विकल्प दे, कानूनी रूप से मजबूर न करें। अगर सरकार आपके पेंशन को लेकर इतनी ही चिन्तित है तो ईपीएफओ में ही पेंशन का हिस्सा है, उसे ही क्यों नहीं बड़ा कर देती है।
आप जानते हैं कि ईपीएफओ के तीन हिस्से होते हैं। बेसिक का 12 फीसदी आप देते हैं, इतना ही कंपनी देती है। कंपनी के 12 फीसदी में से 3.67 फीसदी पेंशन में चला जाता है, जो आपको मिलता है, लेकिन यह राशि बहुत कम होती है। अगर सरकार का इरादा पेंशन बढ़ाना है तो साठ फीसदी पैसे को बाज़ार में लाने की बजाय ईपीएफओ के पेंशन फंड में ही क्यों नहीं डाल देती। सरकार ने बीमा कंपनियों के जिस सुपर एन्युईटी प्लान के लिए हमारी गाढ़ी कमाई पर जो टैक्स लगाया है क्या हम उसके बारे में जानते हैं, उनकी क्या शर्तें होंगी, उनके क्या प्रावधान होंगे। क्या आप जानते हैं। राजस्व सचिव, प्रेस रिलीज और वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा के बयान में कहा गया है कि पीपीएफ से पैसा निकालने पर किसी तरह का टैक्स नहीं लगेगा, लेकिन क्या इसका एलान सरकार बजट पास कराते वक्त करेगी।
अब आपको एनपीएस की मौजूदा शर्त के बारे में बताता हूं। एनपीएस के बुकलेट में लिखा है कि जब आप साठ साल के होंगे तो आपको अपनी कुल जमा पेंशन राशि का कम से कम 40 फीसदी एन्युइटी प्लान में लगाना होगा। अगर साठ साल से पहले निकालेंगे तो 80 फीसदी एन्युइटी प्लान में लगाना होगा। चालीस फीसदी तो पहले से ही है। तो क्या सरकार ने एन्युइटी में पैसा लगाने का एनपीएस का कोटा 40 से 60 फीसदी कर दिया है। सुपर एन्यूइटी प्लान समझने के लिए आपको बता दें। एन्युइटी का मतलब आप एक बार पैसा डाल दें और उसे वृत्ति के आधार पर यानी महीने या साल के आधार पर मिल सकता है, तन्ख्वाह की तरह। बहुत सारी कंपनियां एन्युइटी प्लान ला रही हैं लेकिन भारतीय जीवन बीमा निगम की दो पॉलिसी हैं। जीवन अक्षय 6 और जीवन निधि। वित्त मंत्री जयंत सिन्हा ने विस्तार से बताते हुए कहा कि टैक्स आपको इसलिए देना पड़ेगा क्योंकि हमारी कोशिश है कि अगर हम आपको इतना बड़ा टैक्स ब्रेक दे रहे हैं…अगर आप रिटायरमेंट इनकम का प्रयोग नहीं करते हैं तो आपको टैक्स देना पड़ेगा… जब फाइनेंस बिल में हम लोगों ने ये प्रस्ताव लाया तो बहुत से सुझाव आए… हम लोग उस पर विचार कर रहे हैं… बदलाव करेंगे जो उचित होगा… मगर आज ये लागू होगा…
यानी ये फैसला लागू होगा। वैसे हमने उनका पूरा बयान नहीं पढ़ा है। हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि अगर कंपनी का हिस्सा जो पहले 12 फीसदी होता था उसे डेढ़ लाख रुपये तक सीमित करने से लाभ किसको होगा, नुकसान किसको होगा। तो क्या वाकई नया बदलाव 70 लाख लोगों से ही संबंधित है, तो क्या जानना दिलचस्प नहीं होगा कि इन 70 लाख लोगों से सरकार को कितना टैक्स मिल जाएगा। इस फैसले का विरोध करने वाले कहते हैं कि सैलरी पर टैक्स तो सब देते ही हैं। ईपीएफओ पर टैक्स लेने का मतलब है दोबारा टैक्स देना। वैसे भी ब्याज़ दर कभी 12 फीसदी थी जो आठ से साढ़े आठ के बीच रहती है। क्या इसे कमी नहीं मानी जाए।
ब्याज को लेकर भी कई तरह के बयान आए। बजट में कहा गया कि साठ फीसदी हिस्से पर टैक्स लगेगा। फिर कहा गया कि उस साठ फीसदी में जो ब्याज का हिस्सा होगा उस पर टैक्स लगेगा। वैसे ब्याज की राशि भी कम नहीं होती। उस पर भी टैक्स लगने से आपको लाखों रुपये देने होंगे। 1952 से ईपीएफओ की योजना चल रही है। 2016 में सरकार इस नतीजे पर कैसे पहुंची कि इसकी निकासी के साठ फीसदी हिस्से पर टैक्स लगाना चाहिए या इसे बीमा सेक्टर की तरफ धकेल देना चाहिए। एक जानकारी और हाथ लगी है। हम ईपीएफओ की साइट पर गए थे। वहां 25 फरवरी का एक नोटिफिकेशन मिला जिसके अनुसार सरकार ने बजट से पहले एक बड़ा बदलाव कर दिया है। पहले 55 साल की उम्र होते ही कर्मचारी कभी भी पैसा निकाल सकता था, यानी 55 साल वाले को नौकरी छूटने के बाद दो महीने का इंतज़ार नहीं करना होता था। नए नोटिफिकेशन में दो महीने के इंतज़ार की छूट अब 58 साल पर दी गई है। 55 साल से पहले जब कर्मचारी पैसा निकालता था तो अपना और कंपनी का हिस्सा निकाल सकता था। दोनों पर मिलने वाला ब्याज भी निकाल सकता था लेकिन नए नोटिफिकेशन के अनुसार 58 साल से पहले पैसा निकालेंगे तो कर्मचारी को अपना हिस्सा और उस मिले ब्याज में से ही पैसा मिलेगा। कंपनी या नियोक्ता का हिस्सा और उस पर मिला ब्याज 58 साल के बाद मिलेगा। अगर आप ईपीएफ के पैसे के भरोसे हैं तो आप कम से कम इन बातों को तो जान ही लीजिए। सरकार ईपीएफ के पैसे पर प्रतिबंध से लेकर निवेश की शर्तें क्यों थोप रही है।
जाने माने जर्नलिस्ट रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से.
sanjib
March 3, 2016 at 7:24 pm
Lagta hai Modi ji Iss Desh aur Desh ki Janta ki Seva Kerney Nahin Aaye hain, Balki “Baniyon aur Lalaon ki Dukan” Chalaaney aaye hain. Bihar aur Dilli se seekh abhi tak nahin liye hain. Din bhar Rona Rotey hain ki Congress Sarkar Chalney Nahin Deti. Arey bhaiya, Sarkar kaise chalegi? Jab aap “Anti Labour” kaam kar rahey ho. Iss Desh me Kisaanon ki tarah hi ek badaa tabka Workers ka hai, yadi Unka Hak maroge, to kahin ke nahin Rahoge. Main BJP Voter hoon aur Kattar Voter hoon. Par ab Lagta hai Inse “Moh Bhang” Kerna Padega. Ye (BJP) to Adani aur Ambani ke Bhaley ke liye sochte hain, chahey Workers jaye Bhaand me. Abhi bhi Waqt hai, Sudhar jao Modi ji aur BJP Kunba, warna Kahin ke nahi Rahoge.. Jai Hind