निष्पक्ष और निडर पत्रकारिता बनाम एमपी के दयनीय अख़बार… उन्हें अपनी तारीफ के लिए पाठकों की दरकार नहीं है. यह काम वे खुद अपने मुंह मियां मिट्ठू बन कर बखूबी कर लेते हैं. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं हिंदी के अख़बारों और खासकर मध्यप्रदेश के हिंदी के अखबारों के लम्बे चौड़े दावों और उनकी असलियत की. आज हिंदी के अख़बार अपने को सबसे तेज, विश्वसनीय, नंबर-1 और ना जाने क्या क्या घोषित करते रहते हैं. इसके लिए उनमें आपस में विज्ञापन युद्ध भी होता रहता है जिसे झेलना पाठक की नियति है. इनमें से एक को बिकने के हिसाब से एक नम्बरी मान लेते हैं पर जहाँ तक विश्वसनीयता का सवाल है, वह अक्सर तार-तार होती नजर आती है.
इसकी ताजा मिसाल भोपाल लोकसभा सीट है जहाँ भारतीय जनता पार्टी ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा है. इस फैसले पर देश के प्रमुख अखबारों ने संपादकीय लिख भाजपा की खिंचाई की है. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि आतंकी मुक़दमे की आरोपी को मैदान में उतार पार्टी ने जता दिया है कि कानून के शासन के कोई मायने नहीं रह गए हैं. हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा है कि साध्वी के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को देखते हुए प्रत्याशी बनाने से बचा जा सकता था.
अख़बार सवाल करता है कि अगर नेशनल कांफ्रेंस या अन्य पार्टी जमानत पर रिहा आतंकी गतिविधियों के आरोपी को प्रत्याशी बनाती है तो भाजपा का क्या स्टैंड होगा? टाइम्स ऑफ इंडिया का मानना है कि अदालत का फैसला आने से पहले साध्वी को चुनाव में उतारने से गलत संदेश जाएगा.
विडम्बना देखिए जिस सूबे की राजधानी की सीट पर इतना बड़ा घटनाक्रम हुआ वहां के अख़बारों को मानो सांप सूंघ गया हो. मजाल है जो दैनिक भास्कर, पत्रिका और नईदुनिया में से किसी ने इस मुद्दे पर संपादकीय कलम चलाई हो. इसके बरअक्स अप्रासंगिक मुद्दों पर बेजान से संपादकीय खूब लिखे जाते हैं. कईयों के शीर्षक इतने बड़े होते हैं कि पता ही नहीं चलता, यह संपादकीय है या खबर! साध्वी पर चल रहे मुकदमों के बारे में पाठकों को जानकारी देने के लिए कोई खबर नहीं छापी गई है. अलबत्ता इंडियन एक्सप्रेस ने प्रज्ञा ठाकुर के तीन मामलों में शरीक होने को लेकर बड़ी खबर अलग से की है.
भोपाल से वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश दीक्षित की रिपोर्ट.