संजय कुमार सिंह-
ऐसे तो बिहार का होटल और पर्यटन कारोबार भी चौपट होगा… मैं तो नहीं घुसने वाला बिहार में… बिहार में शराब पीने के आरोप में छह इंजीनियर की और फिर एक विवाह पार्टी पर छापे के वायरल वीडियो के बाद यह जरूरी लग रहा है कि बिहार जाने वाले यात्रियों को यात्रा शुरू करने से पहले बताया जाए कि बिहार में शराब पर प्रतिबंध है। होटलों में छापामारी करने की बजाय – यह जिम्मेदारी होटल वालों की होनी चाहिए कि वे ग्राहकों से बताएं कि शराब पीने / रखने की अनुमति नहीं है और संबंधित जांच होटल उद्योग के हित में होटल वाले खुद करें।
राज्य में कानून व्यवस्था का जो हाल है उसके मद्देनजर पुलिसिया छापेमारी का कोई मतलब नहीं है। अगर शराब से इतना ही परहेज है तो होटलों में यह लिखा होना चाहिए कि कमरे में शराब रखने-ले जाने की अनुमति नहीं है। वैसे भी, होटल में और बाराती जैसे बाहरी लोगों को शराब पीने से रोकने के लिए बिहार में पाबंदी नहीं लागू की गई होगी। एक गरीब राज्य शराब से हो सकने वाली आय को इस तरह खो रहा है तो वह अपने उद्देश्य पर ही रहे। कानून लागू करने के नाम पर वसूली का मौका न बनाए। होटलों में रिसेप्शन पर शराब जमा करवाकर प्रतिबंधित किया जा सकता है। होटल व्यवसाय के हित में है कि इसके बाद पक्की सूचना पर ही छापामारी हो। तब आर्यन खान जैसा मामला नहीं होना चाहिए। उद्योग धंधे में चौपट बिहार शराब के खिलाफ ऐसे अभियान से अपना होटल और पर्यटन कारोबार भी खो देगा।
मैं शराब नहीं पीता इसलिए ध्यान नहीं दिया पर मुझे लगता नहीं है कि पटना के होटलों में यह लिखा हो कि कमरे में शराब ले जाना रखना या पीना मना है। स्टेशन पर तो नहीं ही दिखा। अगर बताया नहीं जाएगा तो पीने वाला कैसे जानेगा? और फिर पीने पर गिरफ्तार कर लेना तो वानखेड़ों को कमाने का मौका देना है। इस गिरफ्तारी के बाद तो बिहार जाने से ही डर लगने लगा है। मैं पीता नहीं हूं पर शादी में साथी बारातियों को पीने से रोक नहीं सकता और ना ही मुखबिरी कर सकता हूं।
ऐसे में ऊपर के आदेश पर छापा पड़ा और मैं भी धर लिया गया तो बाद में आर्यन सिंह या शाहरुख सिंह साबित होकर भी क्या कर लूंगा? शराब पीने या पीने के आरोप से मेरी इज्जत तो नहीं जाएगी पर मुकुल रोहतगी जैसे वकील करके भी जमानत मिलने में 20 दिन लग जाए तो इस सिस्टम से डरने के अलावा भी कोई रास्ता है क्या। कुछ सोचिए नीतिश जी। अब मैं तो नहीं घुसने वाला बिहार में।
मेरा एक मित्र बिहार तो नहीं ही गया, कलकत्ता ट्रेन से नहीं जाता था। अब तो वह रहा नहीं पर तब ऐसे हालात नहीं थे। फिर भी। बाहर वालों के लिए पहले ही डरावना था बिहार अब और हो गया है। जय हो।
सत्येंद्र पीएस-
बिहार में शराब चेकिंग को लेकर अजीब-अजीब खबरें आ रही हैं। अभी एक फेसबुकीय सूचना में एक बोतल शराब के साथ 6-7 इंजीनियरिंग स्टूडेंट पकड़े गए। उसके बाद एक वीडियो चल रहा है कि एक शादी वाले परिवार के हर कमरे में घुसकर पुलिस जामा तलाशी कर रही है।
शराब रोकने के नाम पर यह हरकतें असह्य हैं। सरकार को अगर रोकना है तो शराब की आवक रोके। यह संभव नहीं होता कि सरकार सेठों से 3,000 किलो हेरोइन मंगवाए और गली, मोहल्ले, पार्कों में लोगों को 5 ग्राम की पुड़िया पकड़कर ड्रग एडिक्शन रोक पाएं।
सरकार को सख्ती करनी ही है तो सही जगह पर करे। समझ में आता है। हाल के वर्षों में सरकारों ने जिस तरह गली मोहल्ले में शराब उपलब्ध कराई, वह नियाहत शर्मनाक है। मुझे कभी समझ में नहीं आया कि आबकारी विभाग और मद्य निषेध विभाग एक साथ खोलने का क्या मतलब होता है।
शराब रोकने का बेहतर तरीका है कि इसकी उपलब्धता कम कर दीजिए। पियाक अपने आप कम हो जाएंगे। यह तो संभव नहीं है कि आप पर्याप्त आपूर्ति देते रहें और पब्लिक पर लाठियां भांजकर शराबबंदी कर दें।
नीतीश सरकार की इससे घटिया हरकत कुछ नहीं हो सकती कि पुलिस भेजकर घर-घर जामा तलाशी कराए। नीतीश जी, यह दुनिया जानती है कि यह शराबबंदी नहीं, लूट है। सरकार ने पुलिस से वसूली बढ़ा दी होगी और अब वह आम जनता को परेशान कर रही है। यूपी में भी यही हो रहा है। पुलिस से वसूली बढ़ाए जाते ही वाहनों की चेकिंग तेज हो जाती है।
शराबबंदी सरकार की अवैध वसूली का एक जरिया बन गया है। मुझे नहीं लगता कि नीतीश सरकार शराबबंदी को लेकर सीरियस है।