विजय विनीत-
चंदौली के जांबाज पत्रकार बिहारी लाल अनंत में चले गए। इन्हें भी निगल गया धूर्त कोरोना। इस पत्रकार के लिए चंदौली के कलेक्टर और सीएमओ, किसी सरकारी अस्पताल में न एक अदद बेड दिला पाए, न वेंटिलेटर। नतीजा, पत्रकार बिहारी लाल के मौत की चीख चंदौली के एक निजी अस्पताल में गूंजीं और आंसू बहाकर सामने आईं।
बिहारी लाल (40 वर्षीय) चंदौली के ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने बीस बरस पहले मेरे साथ नौगढ़ इलाके में भूख से तड़प-तड़रकर दम तोड़ने वाले आदिवासियों की खबरें लिखी थी। साथ ही नक्सल हमलों के दौरान उन तमाम खबरों को कागजों पर उतारा था जो निर्दोष नागिरकों और पुलिस के जवानों की लाशों से गुजरी थीं। इस जांबाज रिपोर्टर को अब वो आंखें तलाशती रहेंगी, जिनकी जिंदगी बचाने के लिए बिहारी लाल ने हिन्दुस्तान अखबार को संसद में लहराने पर विवश कर दिया था।
कद्दावर पत्रकार बिहारी लाल शुरुआती दिनों से ही हिन्दुस्तान अखबार से जुड़े थे। वो बबुरी इलाके से रिपोर्टिंग करते थे। सोमवार की रात करीब तीन बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। अब वह दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी मौत नौकरशाही और सरकार से सवाल-दर-सवाल कर रही हैं कि आखिर उनकी मौत का गुनहगार कौन है? पीएम से लेकर सीएम और कलेक्टर व सीएमओ तक से एक अदद बेड व वेंटिलेटर के लिए गुहार लगाई गई, लेकिन दोनों अफसर काठ सरीखे साबित हुए। लगा कि इनके अंदर कोई दिल ही नहीं है।
साथी बिहारी लाल चंदौली के सेलेब्रिटी पत्रकार थे। इनके अंदर एक ऐसा जिंदादिल इंसान था जो समाज का दर्द, सिसकियां और हर किसी की पीड़ा को पल भर में पढ़ लेता था। प्राणों के चीत्कार को वो कागजों पर स्याही से उकेर दिया करते थे। ये सिर्फ पत्रकार ही नहीं, सिद्धहस्त फोटोग्राफर भी थे।
सामाजिक दायित्वों को बेहतरीन ढंग से निभाने में सबसे आगे रहने वाले बिहारी लाल ऐसे पत्रकार थे जिन्होंने खबरों को कभी नहीं बेचा। इनका मनना था कि बिकने वाले पत्रकारों की खबरें नहीं बिका करती हैं। साथी आनंद सिंह को जब पता चला कि बिहारी लाल कोरोना के चंगुल में फंस चुके हैं और सरकारी अस्पताल में विस्तर नहीं है तो जोड़-तोड़कर उन्हें एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया। इस अस्पताल में आक्सीजन के अलावा कुछ भी नहीं था। न वेंटिलेटर और न कोरोना का प्रापर इलाज करने वाले दक्ष चिकित्सक।
चंदौली के ढेरों मीडियाकर्मी इन्हें वेंटिलेटर देने की डिमांड कर रहे थे, लेकिन सीएमओ चुप्पी साधे रहे। बाद में चंदौली के एक प्रशासनिक अफसर ने बताया कि जिले में सिर्फ दो सरकारी वेंटिलेटर है और उन्हें चलाने का हुनर न डाक्टरों को है और न तकनीकी कर्मचारियों को।
हिन्दुस्तान वाराणसी के एचआर प्रबंधक श्री लोकनाथ सिंह जी लगातार कोशिश करते रहे, लेकिन बनारस में भी कोई अस्पताल इस जांबाज पत्रकार के लिए बेड देने के लिए तैयार नहीं हुआ। हमने और एक्टविस्ट डा.लेनिन रघुवंशी जी ने केंद्र और राज्य सरकारों को ट्विट भी किया। बिहारी लाल की जिंदगी बचाने के लिए गुहार पर गुहार लगाते रहे, लेकिन लालफीताशाही की लापरवाही ने उनकी लाश को पालिथीन बैग में भरकर श्मशान घाट पहुंचने पर विवश कर दिया।
बिहारी लाल की मौत ने हमें बुरी तरह झकझोर दिया है। इनसे मेरा दिल का रिश्ता था। हमें अपने घर उतरौत जाना होता था तो बबुरी बस स्टैंड पर मशहूर गुलाब जामुन और चाट खिलाने के लिए वो मेरा इंतजार कर रहे होते थे। दरअसल हमने ही इन्हें अखबार से जोड़ा था। इससे पहले बबुरी में उन्होंने स्टूडियो खोला तब भी मेरी सलाह ही मानी। घर-परिवार की हर छोटी-बड़ी बातें मुझसे साझा किया करते थे।
बिहारी लाल के जाने से मन बहुत द्रवित है। दिल आहत और व्यथित है। ये ऐसे सख्श थे जो सबके लिए आदत, सबके लिए जरूरत और अपने परिवार के लिए तो पूरी जिंदगी थे। दो दिन पहले ही रोते हुए कहा था-भैया, मेरा इलाज ठीक से नहीं हो रहा है। अब नहीं लगता कि बच पाऊंगा। मैंने उन्हें ढांढस बधाया, लेकिन तभी से मेरा दिल बैठता जा रहा था। समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या करें? कैसे बचाएं इस जांबाज पत्रकार की जिंदगी।
चंदौली के एक सेलेब्रिटी पत्रकार की मौत योगी सरकार और नौकरशाही के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। इसीलिए कोई अफसर उनके तीमारदारों से भी उनका हालचाल पूछने नहीं पहुंचा। दरअसल, चंदौली के अफसरों ने इनकी बीमारी को गंभीरता से लिया ही नहीं। ये उस इलाके के पत्रकार थे जहां के सांसद देश के काबीना मंत्री हैं।
कोविड काल में अगली पंक्ति में खड़े होकर जनता की पल-पल की खबरें पहुंचाने वाले पत्रकारों के साथ जो बर्ताव किया जा रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। अब सरकार भी मीडिया को आवश्यक सेवाओं का हिस्सा मानने में हिचकती है। तभी तो पत्रकार बिहारी लाल के साथ समाज बहिष्कृत जैसा व्यवहार किया गया। चंदौली में कुछ दिन पहले ही मेरे अजीज साथी पत्रकार एचएन मिश्रा जी और उनकी मां को कोरोना निगल गया। फिर भी चंदौली के अफसरों की कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। यहां तो पत्रकारों की जिंदगी कीड़े मकोड़ों से भी बदतर हो गई है। चौबीस घंटे अखबारी ड्यूटी करने वाले आंचलिक पत्रकारों की हालत बिगाड़ने के लिए आखिर कौन है जिम्मेदार? शासन-प्रशासन, नेता-परेता या फिर अखबार के मालिक? चंदौली का पत्रकार भी भीड़ में मर रहा है और जिले के निर्लज्ज अफसर फोन उठाने तक का जहमत नहीं उठाते। शायद पहली बार इतना काहिल डीएम और सीएमओ चदौली भेजे गए हैं, जिन्हें जन-सरोकारों से कोई लेना-देना ही नहीं है।
बबुरी इलाके के एक मामूली गांव के पत्रकार बिहारी लाल की रुखस्ती इतना खामोश और गुमनाम रहेगी, शायद किसी को इसका एहसास नहीं था। इनकी मौत ने तो सिर्फ मुझे ही नहीं समूचे चंदौली को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। सूचना देने के लिए फौरी तौर पर खबर लिखनी पड़ी, जो बिहारी लाल की लाश से गुजरी। हम तो इस स्थिति में भी नहीं थे कि कोरोना के जख्म से एक हरदिल अजीज पत्रकार साथी के जाने का दर्द, बेचैनी और उनकी लाश का सामना कर सकें। बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना है कि बिहारी लाल जी के पूरे परिवार को दुख की घड़ी में सहनशक्ति दें। जिंदगी भर याद आएंगे बिहारी…विनम्र नमन।