Gunjan Sinha : ETV (अब न्यूज 18) के बिहार के प्रमुख रहे बिमल पाठक के साथ बहुत अन्याय हुआ. उनके पिता का कुछ समय पहले देहांत हुआ था और अब माँ भी मृत्यु शैय्या पर थीं. इसी बीच बिमल को हैदराबाद ट्रान्सफर कर दिया गया. उन्होंने बहुत अनुरोध किया कि माँ बेहद बीमार हैं, कुछ दिन और उन्हें पटना ही रहने दिया जाए लेकिन प्रबंधन ने उनका कोई अनुरोध नहीं सुना. अंतत वे ट्रेन से रवाना हुए और आधे रस्ते थे कि इधर उनकी माँ गुजर गईं.
ये कैसे प्रबंधक हैं, कैसे मीडिया हेड हैं? जिनमे अपने स्टाफ के प्रति जरा भी संवेदनशीलता नहीं है? अपनी नकाबिल्यत छिपाने और लोगों को अपने सामने बौना करने के लिए ये उन्हें ताश के पत्तों की तरह अपने व्हिम पर फेटते रहते हैं. पटना से हैदराबाद और हैदराबाद से पटना. या फिर बाहर. इस कम्पनी से इस्तीफा दो और उस कम्पनी में बहाली लो वर्ना बाहर.
लोगों को निकाल देने का सबसे बढ़िया हथियार है ट्रान्सफर. और इस तानाशाही को रोकने के लिए न कोई यूनियन है और न कोई कानून. रोक सकती है सिर्फ खुशामद.
लेकिन बिमल पाठक खुशामद करने वाले आदमी नहीं हैं. कम बोलनेवाले, चुपचाप अपना काम करनेवाले सुयोग्य सहयोगी के रूप में मैंने उन्हें वर्षों देखा है. सही है कि हर आदमी अपने घर के पास रहना चाहता है. मुझे याद है और भी कई लोगों की तरह बिमल ने भी किसी जमाने में उन्हें पटना वापस भेजने का अनुरोध मुझसे भी किया था. लेकिन वह एक नार्मल स्थिति थी. सभी पटना रांची चाहते थे. ये संभव नहीं कि प्रबंधन सबको उसकी मनचाही पोस्टिंग दे.
लेकिन ऐसा भी क्या कि किसी की माँ मरणासन्न हो और उसे तुगलकी फरमान सुनाया जाए? अब प्रबंधन के वे लोग अपनी माँ से कैसे आँख मिलायेंगे? बिमल से कैसे आंख मिलायेंगे? बिमल इस नौकरी में क्या अपने अपराध बोध से मुक्त रह सकेंगे?
एक बात और बादशाही चार दिन की मिली है मैनेजर साहबान. आप खुद भी जूते चाटते नजर आते हैं. आप में हिम्मत नहीं कि आठ घंटे काम के और बाकी आराम के या कर्मियों के हक के दूसरे सवाल अपने लिए भी उठा सकें. लोग इतने कमजोर हो चुके हैं कि किसी भी शर्त पर मिल जाते हैं. लेकिन किसी दिन किस्मत की मार आप पर भी पड़ेगी.
लेकिन ऐसे मौकों पर ज्यादा बड़ी भूमिका साथी पत्रकारों की होती है. वे इकट्ठे आवाज क्यों नहीं उठाते कि उनकी बात / शिकायत सुनने के लिए कोई फोरम होना चाहिए जैसा श्री रामोजी राव ने बना रखा था. कोई भी अपनी शिकायत उनके पास रख सकता था. हालांकि उसमे भी सुनवाई की गारंटी नहीं थी, फिर भी कुछ तो था.
वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा की एफबी वॉल से.
Saggam Balaji
July 9, 2018 at 4:51 am
व्यवहारीक रूप से उनका ट्रान्सफर जरुरी हो सकता है, लेकीन अपने अंडर काम करनेवाले एस्प्लाॅयी की हालात भी जानना जरुरी होता है . ऐसे हालात मे टीम लीडर से अच्छा साथ कोई आैर नहीं दे सकता है ये उनको जानना जरुरी था आैर अपला लीडरशीप अच्छे से नीभा सकते थे…
बिहारी
July 10, 2018 at 4:11 am
यह एक पत्रकार की हत्या जैसा मामला है. विमल जी योग्य व कंपनी के वफादार सिपाही हैं. उनके साथ राजनीति हुई है.
jai prakash
July 11, 2018 at 5:16 am
जब बिअल पाठक जी की अगुआई में 2008 में ईटीवी यूपी से 35 से ज्यादा स्ट्रिंगर को बिना वजह निकाला गया था. तब क्या हुआ था.तब सीनियर लोगों की आत्माएं मर गयीं थी. उस समय जो निकाले गए थे उनका भी परिवार था. उनके माता पिता का दुःख है। वो कहते हैं न की ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती।