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सुख-दुख

ये हार बहुत भीषण है म्हराज!

Sheetal P Singh : पिछले दो दिनों में दिल्ली के सारे अख़बारों में पहले पेज पर छापे गये मोदी जी + बेदी जी के विज्ञापन का कुल बिल है क़रीब चौबीस करोड़ रुपये। आउटडोर विज्ञापन एजेंसियों को होर्डिंग / पोस्टर / पैम्फलेट / बैनर / स्टेशनरी / अन्य चुनावी सामग्री के बिल इससे अलग हैं। इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा प्रधानमंत्री और अन्य हैवीवेट सभाओं के (कुल दो सौ के क़रीब)इंतज़ाम तथा टेलिविज़न / रेडियो विज्ञापन और क़रीब दो लाख के क़रीब आयातित कार्यकर्ताओं के रख रखाव का ख़र्च श्रद्धानुसार जोड़ लें। आम आदमी पार्टी के पास कुल चुनाव चंदा क़रीब चौदह करोड़ आया। बीस करोड़ का लक्ष्य था। कुछ उधार रह गया होगा। औसतन दोनों दलों के ख़र्च में कोई दस गुने का अंतर है और नतीजे (exit poll) बता रहे हैं कि तिस पर भी “आप” दो गुने से ज़्यादा सीटें जीतने जा रही है! ये हार बहुत भीषण है म्हराज! ध्यान दें, ”आप” बनारस में पहले ही एक माफ़िया के समर्थन की कोशिश ठुकरा चुकी थी, आज उसने “बुख़ारी” के चालाकी भरे समर्थन को लात मार कर बीजेपी की चालबाज़ी की हवा निकाल दी।

Sheetal P Singh : पिछले दो दिनों में दिल्ली के सारे अख़बारों में पहले पेज पर छापे गये मोदी जी + बेदी जी के विज्ञापन का कुल बिल है क़रीब चौबीस करोड़ रुपये। आउटडोर विज्ञापन एजेंसियों को होर्डिंग / पोस्टर / पैम्फलेट / बैनर / स्टेशनरी / अन्य चुनावी सामग्री के बिल इससे अलग हैं। इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा प्रधानमंत्री और अन्य हैवीवेट सभाओं के (कुल दो सौ के क़रीब)इंतज़ाम तथा टेलिविज़न / रेडियो विज्ञापन और क़रीब दो लाख के क़रीब आयातित कार्यकर्ताओं के रख रखाव का ख़र्च श्रद्धानुसार जोड़ लें। आम आदमी पार्टी के पास कुल चुनाव चंदा क़रीब चौदह करोड़ आया। बीस करोड़ का लक्ष्य था। कुछ उधार रह गया होगा। औसतन दोनों दलों के ख़र्च में कोई दस गुने का अंतर है और नतीजे (exit poll) बता रहे हैं कि तिस पर भी “आप” दो गुने से ज़्यादा सीटें जीतने जा रही है! ये हार बहुत भीषण है म्हराज! ध्यान दें, ”आप” बनारस में पहले ही एक माफ़िया के समर्थन की कोशिश ठुकरा चुकी थी, आज उसने “बुख़ारी” के चालाकी भरे समर्थन को लात मार कर बीजेपी की चालबाज़ी की हवा निकाल दी।

Om Thanvi : तमाम एग्जिट पोल नतीजों के समान रुख से उन लोगों के मुंह बंद हुए (जो बचे उनके असल नतीजे के रोज हो जाएंगे) जो लोगों के चेहरों को नहीं पढ़ना चाहते, न हवा में तैरती गंध भांप पाते हैं। आज कई चैनलों पर जाना हुआ, कई पत्रकार मित्रों से मुलाकात हुई; यह सुनना अच्छा लगा कि जनता के बदलते मानस का हमें बेहतर अंदाजा हुआ और उसे उसी भाव में निरंतर हमने कहा भी। इस जोखिम के बावजूद कि पक्षपात और बिकाऊ हो जाने जैसे आरोप झेलने होंगे। सच्चाई यह है कि इस समर में केंद्र की विराट ताकत की हार, दिग्गज नेताओं की फौज के पराभव, पूंजीपतियों की थैलियों की निरर्थकता और जाति-धर्म आदि जैसे अनेक ध्रुवों के मिथक टूटने की सम्भावना कदम-कदम पर जाहिर थी। बहरहाल, ‘आप’ पार्टी के समर्थन में उमड़ा जन-सैलाब दिल्ली प्रदेश में ही नहीं, केंद्र की राजनीति के लिए भी नया आगाज है – यह बदलाव राजनीति के समूचे ढर्रे को प्रभावित करेगा। कुछ ज्यादा कह दिया क्या? इंतजार कीजिए और देखते रहिए। देश की राजनीति का रंग और तेवर अब बदलना ही चाहिए। क्या कांग्रेस, भाजपा और अन्य दल नए संदेश और निहितार्थ समझ रहे हैं? और मोदीजी, आपके लिए डॉ लोहिया का संदेश — सुधरो या टूटो। इससे पहले कि संघ – और प्रकारांतर से पार्टी – अपनी ताकत फिर दिखाने लगे। ‘गुड गवर्नेन्स’ का झांसा नारे की शक्ल में बहुत ज्यादा खिंचेगा नहीं, जब लोग दिल्ली के छोटे-से शासन तंत्र से उसे जोड़कर देखने लगेंगे। ये केजरीवाल, जो सुबह हजामत करवाकर बैठा है, बड़ी जालिम चीज है!

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Sanjaya Kumar Singh : एक्जिट पॉल के नतीजे देखने के बाद मुझे भाजपा के विज्ञापन याद आ रहे हैं। मैने सब लिख रखे हैं आज ये देखिए, “मैं किरण बेदी। दिल्ली में जब विकास की बात चली तो हमारे लोकप्रिय जननायक श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसकी कमान मेरे हाथों में दी और कहा, दिल्ली से आप पिछले 40 सालों से जुड़ी हैं अब थोड़ी सेवा और करनी है। मेरा ये मानना है कि दिल्ली में विकास का ये काम हम मिलजुल कर ही कर सकते हैं। इसलिए इस बार हमें भाजपा को पूर्ण बहुमत से जीताना है। मेरा दिल्ली वालों से वादा है कि हम आपको एक सुरक्षित और भ्रष्टाचार मुक्त राजधानी देंगे।” चलो चलें मोदी के साथ, अबकी बार मोदी सरकार और घर-घर में मोदी के बाद इस विज्ञापन में खुद किरण बेदी कहती हैं, “विकास का ये काम मिल-जुल कर ही कर सकते हैं।” सवाल ये उठता है कि मिल-जुल कर ही विकास करना था तो दिल्ली भाजपा के पुराने, अनुभवी नेताओं के साथ मिलजुल कर जीतने की कोशिश क्यों नहीं की गई। और मिल-जुल कर ही करना था तो दिल्ली में मोदी जी को किरण या क्रेन सेतु की जरूरत क्यों पड़ी। ना पार्टी ने स्पष्ट किया ना मतदाताओं को समझ में आया। मतदान के बाद किरण बेदी ने भाजपा के प्रति जो कृतज्ञता दिखाई उससे भी लगा कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए नहीं, किरण बेदी को बनाने के लिए ज्यादा जोर लगा रही थी। वरना क्या कारण है कि मास्टर स्ट्रोक इस तरह फिस्स हो गया। देखिए, चुनाव परिणाम अगर एक्जिट पॉल जैसे ही रहे तो भाजपा शायद इसपर विचार करे और कुछ समझ में आए। मै समझ रहा था कि भाजपा अगर दिल्ली में हार भी गई तो किरण बेदी का राज्यपाल बनना तय है। पर किरण बेदी 40 साल दिल्ली में ही रही हैं, बाहर तो वो टिक ही नहीं पाईं – चंडीगढ़ भी नहीं। गवरनर कहां की बनाई जाएंगी। कोई अनुमान?

Jaishankar Gupta : हमने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनाव के समय भी तमाम ओपीनियन और एक्जिट पोल्स को खारिज करते सार्वजनिक तौर पर, एक टीवी चैनल पर वरिष्ठ पत्रकारों, संपादकों के साथ चुनावी चर्चा में कहा था कि आप को 30 से कम सीटें नहीं मिलेंगी। तब कोई मानने को तैयार न था। इस बार भी शुरू से हमारा मानना रहा है कि आप को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा, लेकिन केजरीवाल के बारे में प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी पार्टी के बौने हो गए बडे नेताओं के मुंह से ‘सुभाषित’ झरने लगे, बौखलाहट में भाजपा की चुनावी राजनीति के चाणक्य और खासतौर से लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के सूत्रधार स्वनामधन्य अमित शाह जी ने मतदान से दो दिन पहले अपना रणनीतिक ज्ञान बांटा कि विदेश में जमा कालाधन लाकर र भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रु. जमा करने का वादा चुनावी जुमला भर था और यह भी कि दिल्ली का यह चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज पर रेफरेंडम नहीं माना जाना चाहिए, उसके बाद हमने कहना शुरू किया कि ‘आप’ को 40 से अधिक सीटें मिल सकती हैं। पता नहीं सीटों का आंकडा कहां जाकर फीट बैठेगा। दस फरवरी को सब पता चल जाएगा।

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Mukesh Kumar : सारे एक्जिट पोल आम आदमी पार्टी की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं। हालाँकि अंतिम परिणाम आने बाक़ी हैं लेकिन क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दस लाख का सूट पहनकर अपनी हार स्वीकार करने की तैयारी नहीं कर लेनी चाहिए। उन्होंने अपने विज्ञापनों में कहा था कि जो देश सोच रहा है वह दिल्ली सोचती है, तो देश ने दिल्ली के ज़रिए संदेश दे दिया है कि उन्हें न तो उनका अंदाज़ रास आ रहा है और न ही उनकी सरकार का चाल-चलन। अपने परिवार के कुकर्मों पर चुप्पी साधे रहने और कुछ न करने का उनका अंदाज भी उनके पाप के घड़े को भर रहा है। क्या वे चेतेंगे? उनके महारणनीतिकार और बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह समाज को तोड़-फोड़ कर जिस तरह की राजनीतिक बिसात बिछाकर विजय हासिल करने का नुस्खा आजमाते रहे हैं, उनके लिए भी इस हार में संदेश छिपा है। ओबामा की मत सुनिए मगर दिल्ली और देश की आवाज़ तो सुन लीजिए।

वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह, ओम थानवी, संजय कुमार सिंह, जयशंकर गुप्त और मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. Kamal Dubey

    February 9, 2015 at 5:41 pm

    देखो तो इक पहाड़ से कंकड़ उलझ गया,
    जोश ओ जूनून से यह दिलावर उलझ गया,
    हिम्मत को उसकी आप भी अब दाद दीजिये,
    लाखों के सूट-बूट से मफलर उलझ गया.

    कुमार विश्वास की इन लाईनों पर लन्दन से श्री ज्ञान पाण्डेय जी की प्रतिक्रिया आई है –

    Excellent Dr Vishvas and Kamal ji. Being from IIT KGP old timer, we all dreamt, couldn’t do any thing and ran away. You have done it. After 2013 elections AAP inspired me to write poetry. I got only 44% marks in Intermediate exam and this is seen in my ‘tukkebazi’ – attached.
    दौड़ो दौड़ो भारत वासियों. तुम्हारा देश लुटा जाता है
    चुप् है मोहन्,
    अमीर गरीबो का खून् पिये जाता है,
    तड़प रहा है आम् आदमी, कानून् हँसी उड़ाये जाता है,
    दौड़ो दौड़ो देश के नवजवानो तुम्हारा देश लुटा जाता है.
    किसी को रोटी नही, तो किसी को पानी नहीं,
    किसी को बिजली नहीं तो किसी को छाया नहीं,
    फिर कोई बेशर्म करोड़ो जश्नो मे उड़ाए जाता है.
    रोको रोको भाइयो बड़ा अन्याय हुआ जाता है,
    कहीं चोर हैं तो कही चोट्टाला है दफ़्तर दफ़्तर में घोटाला है,
    घोटाले की बात मत कर ‘दुखीमन्’ क्योंकि हर घोटाले मे घोटाला है,
    दौड़ो दौड़ो भारत वासियों. तुम्हारा देश लुटा जाता है.
    आकाश मे लूटा जनता को २ जी में,
    किसानो की धरती छीन छीन कर खाई
    बाँट दिया खदानो को रिश्तेदारों में, रत्ती भर शर्म भी ना आई,
    दौड़ो दौड़ो नवजवानो तुम्हारा देश बिका जाता है.
    एक् पार्टी गयी तो दूसरी आई
    सबने ने लूट्ने की ऐसी होड़ लगाई
    खा गये लाखों करोड़ों,
    गरीबो का ना पेट भरा ना डकार आई,
    दौड़ो दौड़ो भारत वासियों, तुम्हारा देश लुटा जाता है.
    क्या ले जाएँगे ये सफेद कुर्ते वाले,
    क्यों अज्ञान के सागर मे डूबे है ये ब्रद्ध और ब्रद्धा?
    ना रो तड़प तड़प के रे दुखीमन, ये तेरी समझ के बाहर का है मुद्धा,
    दौड़ो दौड़ो नवजवानो तुम्हारा देश बिका जाता है.
    ये कैसी है सरकार, कैसे है ये सांसद?
    कोई चोर है तो कोई ख़ूनी है, कैसे सम्मान करूं इनका?
    कोई बलात्कारी है तो कोई रंगरूनी है,
    दौड़ो दौड़ो प्रवासियों, तुम्हारा देश बिका जाता है.
    भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं हम,
    ईमानदार को कुचल देते हैं हम,
    आत्मा तो मर चुकी है, सुन ‘दुखीमन’
    खाली कोर्ट के फैसले को ही मानते हैं हम,
    दौड़ो दौड़ो प्रवासियों तुम्हारा देश छिना जाता है.
    -जी एन पाण्डेय,
    स्वांसी, लन्दन।

  2. Tej Bahadur Yadav

    February 10, 2015 at 5:23 am

    Apake Man kj dasaa Kavita men Parhakar Palaken Bheeg Gayee, ab Sarkar Badal Gayi Choukidar Samajh Kar Bhediya ko Satta par Baitha diya, Apakaa man Vaise hi Dukhi raha gaya Hoga. lekin aaj Dilli ki janata ne Ummed ki Kiran Jaga di hai, Eshver se Prarthanaa hai ki vah Kejariwal And Parti Ko jameen par hi rakhe.

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