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सुख-दुख

भाजपा के मीडिया सेल में लागू है ‘बैनर-चैनल वर्णक्रम’ आधारित ‘आरक्षण’!

वृंदावन : बड़ों व ताकतवर का सम्‍मान करना और छोटों व गरीबों को ठेंगे पर रखना अमूमन हर व्‍यवस्‍था की परंपरा होती है. यह उसी तरह का शाश्‍वत सत्‍य है, जैसा कि सूरज के पूरब से निकलने का है. कहावत है कि अगर सांप के दंश में जहर का डर नहीं होता है तो लोग उसे भी पूंछ से पकड़कर नचाकर फेंक देते हैं. भाजपा में भी पत्रकारों को लेकर यही व्‍यवस्‍था लागू है. पहली व्‍यवस्‍था तो यह है कि आप बड़े बैनर और बड़ी एजेंसी के पत्रकार हैं तो उनको पूरी इज्‍जत दी जाती है. छोटे बैनर-एजेंसी के पत्रकारों पर ‘एहसान’ किया जाता है.

वृंदावन : बड़ों व ताकतवर का सम्‍मान करना और छोटों व गरीबों को ठेंगे पर रखना अमूमन हर व्‍यवस्‍था की परंपरा होती है. यह उसी तरह का शाश्‍वत सत्‍य है, जैसा कि सूरज के पूरब से निकलने का है. कहावत है कि अगर सांप के दंश में जहर का डर नहीं होता है तो लोग उसे भी पूंछ से पकड़कर नचाकर फेंक देते हैं. भाजपा में भी पत्रकारों को लेकर यही व्‍यवस्‍था लागू है. पहली व्‍यवस्‍था तो यह है कि आप बड़े बैनर और बड़ी एजेंसी के पत्रकार हैं तो उनको पूरी इज्‍जत दी जाती है. छोटे बैनर-एजेंसी के पत्रकारों पर ‘एहसान’ किया जाता है.

भाजपा के मीडिया सेल में पत्रकारों की तीन कटेगरी निर्धारित है. पहला सवर्ण पत्रकार, दूसरा पिछड़ा वर्ग पत्रकार तथा अंतिम अनुसूचित पत्रकार. और यह कटेगरी सामाजिक जाति व्‍यवस्‍था पर आधारित नहीं है बल्कि ‘बैनर-चैनल’ व्‍यवस्‍था पर आधारित है. अगर आपका बैनर-चैनल बड़ा है तो आप पहले श्रेणी में आते हैं, अगर बैनर-चैनल मझोला है तो आप दूसरी श्रेणी में आते है. इसके बाद के सारे बैनर-चैनल और पत्रकार तीसरी श्रेणी यानी अनुसूचित श्रेणी में आते हैं. इसी श्रेणी के लिहाज से भाजपा मीडिया सेल के लोग ‘व्‍यवस्‍था’ और ‘व्‍यवहार’ करते हैं.

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अगर आप पहले कटेगरी के पत्रकार हैं तो मीडिया सेल और प्रवक्‍ता से लगायत नेता तक आपकी सेवा में हर पल हाजिर रहते हैं. इस श्रेणी के पत्रकारों को खाना उनके कमरे में भी उपलब्‍ध कराए जाने का ‘कानून’ है. पल-पल उनकी खैरियत पूछे जाने की ‘परंपरा’ है. उनके हर सुख-दुख और जरूरत का पूरा ध्‍यान रखे जाने का ‘नियम’ है. हालांकि इस श्रेणी की सबसे बड़ी दिक्‍कत है कि इसमें लिमिटेड सीटें हैं. हिंदी में चार से पांच सीटें तथा अंग्रेजी में तीन से चार सीटें. कुछ सीटें इलेक्‍ट्रानिक मीडिया के लिए रिजर्व रहती हैं. जाहिर है, पार्टी के चंगुओं-मंगुओं को बड़ा नेता पत्रकारिता का यह एलिट वर्ग ही बना सकता है.

दूसरे और तीसरे श्रेणी के पत्रकारों पर भाजपा का मीडिया सेल ‘एहसान’ करता है. इन वर्गों को ज्‍यादा भाव न दिए जाने का ‘कानून’ है. इन्‍हें कमरे में कोई व्‍यवस्‍था न दिए जाने का ‘नियम’ है. और इनकी खैरियत या परेशानी ना पूछे जाने की ‘परंपरा’ है. इन दोनों वर्गों में सीटों की संख्‍या निर्धारित नहीं होती है, बल्कि इस श्रेणी का निर्धारण भाजपा का मीडिया सेल करता है. इस वर्ग के पत्रकारों को कितनी सीटों पर ‘आरक्षण’ दिया जाए, किसे तथ किसी अखबार में काम करने वाले को पत्रकार माना जाए, यह तय करने का अधिकार मीडिया प्रभारी को है. इसको भाजपा अध्‍यक्ष के कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती.

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‘बैनर’ वर्णक्रम के अनुसार सवर्ण पत्रकारों को कई बार और कई लोगों द्वारा कवरेज के लिए चलने की सूचना दिए जाने के साथ उन्‍हें घर से ससम्‍मान लाने की ‘व्‍यवस्‍था’ है. अन्‍य दो श्रेणियों के पत्रकारों को सिर्फ एक अदने से कर्मचा‍री से सूचना भिजवाए जाने का ‘नीति’ है. और इस श्रेणी के पत्रकारों को कार्यालय तक खुद से पहुंचने का ‘संविधान’ है. इसके अलावा सवर्ण श्रेणी के बैनर तथा इलेक्‍ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों का अघोषित ‘बंटवारा’ भी मीडिया तथा प्रवक्‍ता सेल में होता है. यह दोनों सेल इस श्रेणी में अपने-अपने हिस्‍से के पत्रकारों पर ‘कब्‍जा’ जमाकर उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत की चिंता करते हैं. ‘स्‍टील’ के गिलास से लकर ‘सोने’ के चैन तक. इस कंपटीशन में बड़े बैनर-एजेंसी-टीवी चैनल का पत्रकार तय करता है कि किसकी सेवा बढि़या है, वह उसी के ‘हिस्‍से’ में अपना ‘बंटवारा’ घोषित कर देता है. उसके पक्ष में लिखता है-दिखाता है. कुछ बुद्धिमान पत्रकार सबके ‘हिस्‍से’ में शामिल हो लेते हैं.

वृंदावन में भी इस बैनर श्रेणी क्रम का सर्वसुलभ उदाहरण देखने को मिला. सवर्ण श्रेणी के बैनर वालों को आश्रम से कार्यक्रम स्‍थल तक पहुंचने की बेहतर व्‍यवस्‍था की गई तो पिछड़ा तथा अनुसूचित श्रेणी के बैनर के पत्रकारों को एक गाड़ी में ठूंसकर ले जाए जाने की परंपरा का निर्वहन किया गया. इस ‘विषहीन’ श्रेणी के पत्रकारों से किसी तरह का कोई नुकसान पहुंचने की संभावना नहीं थी, लिहाजा एकमात्र महिला मीडिया सह प्रभारी को ‘पिछड़ा-दलित’ बैनर वर्ग के पत्रकारों के साथ ढकेल दिया गया. वाहन के अंदर सवारियों की तरह ठूंसे गए पत्रकारों में यह महिला मीडिया प्रभारी भी किसी तरह कार्यक्रम स्‍थल तक पहुंची. किसी ने पिछड़ा तथा दलित वर्ग बैनर के पत्रकारों को पूछना जरूरी नहीं समझा.

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0 Comments

  1. अमेय

    August 25, 2014 at 5:13 pm

    पहली बात तो यह कि पत्रकारों की पार्टी की व्यवस्था से नहीं बल्कि अपने चैनल या प्रेस की व्यवस्था से covergae के लिए जाना चाहिए क्यों कि चैनल या प्रेस की ओर से ये व्यवस्था रिपोर्टर और कैमरामैन को दी जाती है.खबर का संकलन करना निष्पक्ष पत्रकार का काम है और अगर मीडिया प्रभारी को टारगेट करके कुछ भी लिखना हो तो कभी भी बाल की खाल निकाली जा सकती है.सुविधा का लाभ उतना ही लेना चाहिए जिससे कि पत्रकारिता धर्म की भी मर्यादा बनी रहे.

  2. AVANEESH MISHRA

    August 26, 2014 at 9:28 am

    SACH KA AENA

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