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साहित्य

यूपी में जंगलराज : प्रसिद्ध कवि केदार नाथ अग्रवाल के घर पर भूमाफिया का धावा

Sudhir Singh : बाँदा में कवि केदार नाथ अग्रवाल का घर बिक गया। आज शाम किसी भूमाफिया ने ढेर सारी निर्माण सामग्री इकट्ठी करके निर्माण भी शुरू कर दिया है। कुछ असलहाधारी भी बैठे हैं। इस अपने पुश्तैनी घर में हिंदी के विश्वप्रसिद्ध कवि केदार जी करीब 65 साल तक रहे । यह घर अर्धसदी तक हिंदी के बड़े रचनाकारों का भी मिलने-जुलने का केंद्र रहा जहाँ राहुल सांकृत्यायन नागार्जुन, त्रिलोचन, रामविलास शर्मा, महादेवी वर्मा, हरिवंशराय बच्चन जैसे लेखक आते थे। 1972 में बाँदा में आयोजित बाँदा सम्मेलन का भी केंद्र यह घर था। केदार जी के निजी संग्रह की लगभग 7 दशकों की दुर्लभ पत्र-पत्रिकाएँ और हजारों पुस्तकें भी यहीं रखी हैं जिनकी देखरेख केदार शोधपीठ न्यास करता है जिसके सचिव नरेन्द्र पुण्डरीक का कोई पता नहीं है। यह बड़ा और गम्भीर मसला है जिसके लिए तुरंत कुछ किये जाने की जरूरत है।

<p>Sudhir Singh : बाँदा में कवि केदार नाथ अग्रवाल का घर बिक गया। आज शाम किसी भूमाफिया ने ढेर सारी निर्माण सामग्री इकट्ठी करके निर्माण भी शुरू कर दिया है। कुछ असलहाधारी भी बैठे हैं। इस अपने पुश्तैनी घर में हिंदी के विश्वप्रसिद्ध कवि केदार जी करीब 65 साल तक रहे । यह घर अर्धसदी तक हिंदी के बड़े रचनाकारों का भी मिलने-जुलने का केंद्र रहा जहाँ राहुल सांकृत्यायन नागार्जुन, त्रिलोचन, रामविलास शर्मा, महादेवी वर्मा, हरिवंशराय बच्चन जैसे लेखक आते थे। 1972 में बाँदा में आयोजित बाँदा सम्मेलन का भी केंद्र यह घर था। केदार जी के निजी संग्रह की लगभग 7 दशकों की दुर्लभ पत्र-पत्रिकाएँ और हजारों पुस्तकें भी यहीं रखी हैं जिनकी देखरेख केदार शोधपीठ न्यास करता है जिसके सचिव नरेन्द्र पुण्डरीक का कोई पता नहीं है। यह बड़ा और गम्भीर मसला है जिसके लिए तुरंत कुछ किये जाने की जरूरत है।</p>

Sudhir Singh : बाँदा में कवि केदार नाथ अग्रवाल का घर बिक गया। आज शाम किसी भूमाफिया ने ढेर सारी निर्माण सामग्री इकट्ठी करके निर्माण भी शुरू कर दिया है। कुछ असलहाधारी भी बैठे हैं। इस अपने पुश्तैनी घर में हिंदी के विश्वप्रसिद्ध कवि केदार जी करीब 65 साल तक रहे । यह घर अर्धसदी तक हिंदी के बड़े रचनाकारों का भी मिलने-जुलने का केंद्र रहा जहाँ राहुल सांकृत्यायन नागार्जुन, त्रिलोचन, रामविलास शर्मा, महादेवी वर्मा, हरिवंशराय बच्चन जैसे लेखक आते थे। 1972 में बाँदा में आयोजित बाँदा सम्मेलन का भी केंद्र यह घर था। केदार जी के निजी संग्रह की लगभग 7 दशकों की दुर्लभ पत्र-पत्रिकाएँ और हजारों पुस्तकें भी यहीं रखी हैं जिनकी देखरेख केदार शोधपीठ न्यास करता है जिसके सचिव नरेन्द्र पुण्डरीक का कोई पता नहीं है। यह बड़ा और गम्भीर मसला है जिसके लिए तुरंत कुछ किये जाने की जरूरत है।

Hareprakash Upadhyay : उत्तर प्रदेश सरकार के लिए यह शर्मनाक स्थिति है कि प्रसिद्ध कवि केदार नाथ अग्रवाल का बांदा में घर बिक गया और सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंग रही। हर साल खैरात की तरह लाखों रूपये साहित्यकारों के कथित सम्मान पर लुटाने वाली सरकार का साहित्य के प्रति सतही सरोकार इससे उजागर होता है। लगता है उसे गाजर और मूली में फर्क की तमीज़ नहीं है। केदार नाथ अग्रवाल हिंदी के गौरव हैं, उनके धरोहर के प्रति सरकार की यह उदासीनता न सिर्फ हास्यास्पद बल्कि आपराधिक है। देश भर के लेखकों को इस पर आंदोलन खड़ा करना चाहिए।

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सुधीर सिंह और हरे प्रकाश उपाध्याय के फेसबुक वॉल से.

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