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साहित्य

70 साल बाद सामने आ सका जयपाल सिंह मुंडा का लेखन

झारखंड आंदोलन के सर्वोच्च नेता जयपाल सिंह मुंडा के दुर्लभ लेखों का संकलन 70 साल बाद प्रकाशित हुआ है। ‘आदिवासिडम’ शीर्षक से आई इस अंग्रेजी पुस्तक में जयपाल सिंह मुंडा के 25 मूल लेख और भाषण शामिल हैं। झारखंड आंदोलन के दौरान 40-50 के दशक में लिखे और छपे इन लेखों व भाषणों का संकलन और संपादन आदिवासी मामलों के लेखक और संस्कृतिकर्मी अश्विनी कुमार पंकज ने किया है। 160 पृष्ठों की इस पुस्तक को प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन, रांची ने प्रकाशित किया है। 

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झारखंड आंदोलन के सर्वोच्च नेता जयपाल सिंह मुंडा के दुर्लभ लेखों का संकलन 70 साल बाद प्रकाशित हुआ है। ‘आदिवासिडम’ शीर्षक से आई इस अंग्रेजी पुस्तक में जयपाल सिंह मुंडा के 25 मूल लेख और भाषण शामिल हैं। झारखंड आंदोलन के दौरान 40-50 के दशक में लिखे और छपे इन लेखों व भाषणों का संकलन और संपादन आदिवासी मामलों के लेखक और संस्कृतिकर्मी अश्विनी कुमार पंकज ने किया है। 160 पृष्ठों की इस पुस्तक को प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन, रांची ने प्रकाशित किया है। 

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‘आदिवासिडम’ के संपादक अश्विनी कुमार पंकज ने बताया कि वे पिछले कई वर्षों से झारखंड आंदोलन के ऐतिहासिक दस्तावेजों को सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने 2015 में जयपाल सिंह मुंडा की पहली जीवनी लिखी जो विकल्प प्रकाशन, दिल्ली द्वारा 2015 में प्रकाशित हुआ। श्री पंकज के अनुसार झारखंड राज्य की परिकल्पना करने वाले जयपाल सिंह मुंडा का मूल्यांकन भारतीय राजनीति और इतिहास में आज तक नहीं हुआ है। नवगठित झारखंड के सभी सरकारों द्वारा भी उनकी घोर उपेक्षा की गई। जबकि भारतीय राजनीति में उनका योगदान नेहरू-अम्बेडकर जैसे राजनीतिज्ञों से कहीं कम नहीं है। वे एक राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। उन्होंने देश के लिए आईसीएस का बलिदान किया।

श्री पंकज ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा भारत में आदिवासियत के सबसे बड़े पैरोकार जयपाल सिंह मुंडा ने 40 के दशक में ही आदिवासी संस्कृति और दर्शन को अभिव्यक्त करने के लिए ‘आदिवासिडम’ शब्द की संकल्पना की थी। जिसका हिंदी अर्थ ‘आदिवासियत’ है। हाल के दशकों में आदिवासियत के लिए अंग्रेजी में जो शब्द आया है, वह है इंडीजिनिटी। परंतु जयपाल ने लगभग 80 साल पहले ही भारतीय आदिवासियों के संदर्भ में इसके लिए आदिवासीडम शब्द को सिर्फ गढ़ा ही नहीं था बल्कि भारतीय राजनीति में उसे स्थापित भी कर दिया था। प्रस्तुत पुस्तक ‘आदिवासिडम’ भारत के आदिवासी आकांक्षाओं का ऐतिहासिक दस्तावेज है जो सात दशक बाद प्रकाशित हुआ है। फिलहाल यह किताब अंग्रेजी में है। लेकिन हमारी कोशिश है कि जल्दी ही इसका हिंदी अनुवाद भी लाया जाए।

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केएम सिंह मुंडा
प्रवक्ता, झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा

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