Rajesh Agrawal : युवा पत्रकार विकास शर्मा और कुछ मित्रों के साथ एक कांफ्रेंस के सिलसिले में कुछ दिन पहले दिल्ली में था। नेशनल ड्रामा स्कूल के परिसर में मैं और विकास घूम रहे थे। कला-समीक्षक, कहानीकार और कवि, कई पुरस्कारों-सम्मानों से अलंकृत प्रयाग शुक्ल भीतर प्रवेश करते हुए दिखे। मैं तो उन्हें पहचानता नहीं था, पर विकास की मुलाकात कभी उनसे हुई थी। देश के जाने-माने लोग बिना भीड़ के दिखें तो पत्रकार स्वाभाविक रूप से उन्हें लपक लेने की कोशिश करता है। विकास ने आगे बढ़कर प्रणाम किया। उन्हें याद दिलाया कि किन-किन और जगहों पर वह पहले उनसे मिल चुका है। शुक्ल जी को कुछ याद आ भी रहा था या नहीं, यह तो पता नहीं पर उन्होंने औपचारिकता निभाई और विकास को आशीर्वाद देते हुए उनका हाल पूछा।
प्रयाग शुक्ल
विकास ने फौरन कहा- गुरुदेव आप कुछ दुबले दिख रहे हैं, तबियत बीच में ठीक नहीं थी क्या? पिछली बार देखा था आप तंदुरुस्त लग रहे थे।
शुक्ल- नहीं, नहीं मेरी तबियत तो ठीक है, और जैसा पहले था वैसा अभी भी हूं।
विकास- नहीं, नहीं फिर भी आप कुछ….।
शुक्ल- अच्छा ये बताओ तुमने मुझे पिछली बार कब देखा था?
विकास- यही, कोई चार-पांच साल पहले।
शुक्ल- चार- पांच साल पहले और अब में आया फ़र्क इतनी जल्दी कैसे ताड़ गए?
विकास- जी, मैं तो ऐसे ही…। बात शुरु करने के लिहाज से पूछ लिया।
शुक्ल- मैं तो बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं। कॉफी हाउस में दो घंटे गप-शप मारकर आ रहा हूं। तुमने तो तबियत खराब बता कर मुझे निराश ही कर दिया।
विकास- जी….जी…। मेरा उद्देश्य ऐसा कुछ नहीं था।
शुक्ल- अच्छा बताओ, मेरी कितनी उम्र होगी।
विकास- अंदाजा नहीं, मेरे से तो काफी बड़े हैं।
शुक्ल- बड़ा तो हूं, फिर भी बताओ तो मेरी उम्र कितनी होगी?
विकास- साठ से तो ऊपर ही होंगे आप।
शुक्ल- विकास जी, मेरी उम्र है, 78 साल। अब इस उम्र में तुम्हारी तरह युवा तो दिख नहीं सकता। भला-चंगा तुम्हारे सामने खड़ा हूं। यह बात तो ठीक नहीं कि तुम मेरी तबियत को ढीली बताओ।
विकास- जी..जी…। सही कहते हैं..।
शुक्ल- ध्यान रखो कि किसी के सचमुच शुभचिंतक हो तो उससे ऐसी बात न करो कि वह अनावश्यक ही अपनी सेहत के बारे में सोच में पड़ जाए, दुखी हो जाए।
विकास- जी..जी..गुरुदेव समझ गया। आगे बिल्कुल ध्यान रखूंगा।
शुक्ल- तुम तो ध्यान रखोगे, पर समझ नहीं आता मैं किस-किस को रोकूं। महीने भर में सौ लोग ऐसे ही बातचीत शुरू करते हैं।
फिर शुक्ल जी ने एक वाकया सुनाया। भोपाल या मध्यप्रदेश के किसी जगह से एक जनसम्पर्क अधिकारी ने महीनों अंतराल के बाद उन्हें फोन किया था। उस अधिकारी ने बेहद आत्मीयता दिखाते हुए कहा- सुना है, आजकल आपकी तबियत ठीक नहीं रहती, अपनी सेहत का ख़याल रखिएगा। मुझे आपकी बड़ी चिंता लगी रहती है। शुक्ल जी ने उन्हें फौरन जवाब दिया- हां मेरी तबियत सचमुच आजकल ख़राब चल रही है। तुम ऐसा करो कि तुरंत दिल्ली चले आओ, मुझे तुम्हारी सख़्त जरूरत है…।
शुक्ल जी ने हमें सारी बातें इतनी विनम्रता से कही और बताई कि बुरा बिल्कुल नहीं लगा, लेकिन थोड़ी देर के लिए हम दोनों सन्न रह गए। पांच-सात मिनट की मुलाकात में वे हमें एक बड़ी सीख दे गए थे।
प्रयाग शुक्ल जी के साथ विकास फोटो खिंचवाने की मंशा रखते थे लेकिन इस वाकये के चलते आगे कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। हां, एनएसडी में हमने घंटों गुजारे, वहां पूर्व निदेशक देवेन्द्र राज ‘अंकुर’ से भी भेंट हुई। वे भी विकास के परिचित थे। उनके साथ तस्वीरें भी लीं। और भी कई हस्तियों से मिले।
बिलासपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल की एफबी वॉल से.