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साहित्य

विमलेश चमकती हुई भाषा और अलहदा मुहावरे के कवि हैं : केदारनाथ सिंह

नीलांबर कोलकाता द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में 11 फरवरी को चर्चित युवा कवि कथाकार विमलेश त्रिपाठी की वाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित नई कविता पुस्तक ‘कंधे पर कविता’ का विमोचन वरिष्ठ कवि  केदारनाथ सिंह के हाथों शरत सदन में संपन्न हुआ। उक्त अवसर पर बतौर विशिष्ट अतिथि खंडवा से प्रताप राव कदम, वाराणसी से डॉ. शिवानी गुप्ता, भुवनेश्वर से डॉ. राकेश कुमार सहित कोलकाता से डॉ. शंभुनाथ, डॉ. अभिज्ञात, शैलेन्द्र शांत, डॉ. मीरा सिन्हा, डॉ. आशुतोष, पीयूष कांत राय, निशांत एवं अन्य साहित्यकार उपस्थित थे।

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नीलांबर कोलकाता द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में 11 फरवरी को चर्चित युवा कवि कथाकार विमलेश त्रिपाठी की वाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित नई कविता पुस्तक ‘कंधे पर कविता’ का विमोचन वरिष्ठ कवि  केदारनाथ सिंह के हाथों शरत सदन में संपन्न हुआ। उक्त अवसर पर बतौर विशिष्ट अतिथि खंडवा से प्रताप राव कदम, वाराणसी से डॉ. शिवानी गुप्ता, भुवनेश्वर से डॉ. राकेश कुमार सहित कोलकाता से डॉ. शंभुनाथ, डॉ. अभिज्ञात, शैलेन्द्र शांत, डॉ. मीरा सिन्हा, डॉ. आशुतोष, पीयूष कांत राय, निशांत एवं अन्य साहित्यकार उपस्थित थे।

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केदारनाथ सिंह ने विमलेश त्रिपाठी के इस संग्रह पर बोलते हुए कहा कि विमलेश एक ऐसे कवि हैं जिन्हें मैं बहुत पसंद करता हूँ। इस संग्रह में कवि कुछ कदम और आगे बढ़ाते हुए खुद को सिद्ध करता है। वरिष्ठ कवि ने कहा कि विमलेश ने अपनी माटी से जुड़कर एक नई और चमकती हुई भाषा और अपना अलहदा मुहावरा गढ़ा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि  विमलेश ने अपने कंधे पर कविता को उठाकर यहाँ तक पहुँचाया है, हम उम्मीद करेंगे कि वे इसे बहुत दूर तक ले जाएंगे। गौरतलब है कि श्री सिंह ने विमलेश त्रिपाठी की दो कविताओं ‘शब्द कहीं नहीं जाते’ और ‘दो हाथ मिलकर’ का पाठ भी किया।

खंडवा से विशेष तौर पर विमोचन के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए पधारे चर्चित कवि प्रताप राव कदम ने कहा कि विमलेश ने अपनी सशक्त लेखनी की बदौलत बिना अपनी पहली पीढ़ी को कुछ कहे-बताए कविता और कथा के फलक पर एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। वे एक ऐसे कवि हैं जो बिना किसी शोर के चुपचाप बहुत अच्छी कविताएँ लिख रहे हैं। उनका संग्रह कंधे पर कविता उनके कवित्व और सरोकार का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

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वाराणसी से आई युवा आलोचक डॉ. शिवानी गुप्ता ने विमलेश के संग्रह को इस मायने में महत्वपूर्ण बताया कि उसमें लोक की अनुगूँज के साथ ही संबंधों की पीड़ा और रचनाकार का दुख भी अभिव्यक्त हुआ है। तमान दुख और निराशा के बीच विमलेश उम्मीद और प्रेम को बचाए रखने वाले कवि हैं। उन्होंने विमलेश त्रिपाठी को अपनी पीढ़ी का महत्वपूर्ण कवि बताते हुए कहा कि विमलेश की लेखनी यह बताती है कि वे यहीं रूकने वाले नहीं है, उन्होने कविता की दुनिया में एक अपूर्व और नूतन मुकाम गढ़ने वाले हैं।

भुवनेश्वर में अध्यापन कार्य कर रहे युवा समीक्षक डॉ. राकेश कुमार सिंह ने विमलेश की कविता को सार्वदेशिक अनुभव संपन्न बताते हुए कहा कि उनकी कविताओं की स्थानीयता एक वैश्विक जिम्मेवारी लिए हुए है। उन्होंने गमछा कविता का उल्लेख करते हुए कहा कि कवि की जड़े अपनी जमीन में धंसी हुई हैं लेकिन उललेखनीय है कि उनका फलक बहुत व्यापक है। उनके कंधे पर कविता एक बड़ो दायित्व की तरह है।

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युवा आलोचक और शोधार्थी पीयूष कांत राय ने विमलेश की कविताओं को पर्यावरण की चिंता से जोड़ते हुए कहा कि विमलेश लोकल से ग्लोबल की ओर यात्रा करते हुए दिखाई पड़ते हैं। वे एक ऐसे कवि हैं जिनकी ओर हम आशा की निगाह से ताक रहे हैं, और वह बहुत बड़ी है।

विमोचन के बाद नीलांबर समूह द्वारा उदय प्रकाश की कविता पर माइम की प्रस्तुति की गई। विमलेश त्रिपाठी के संग्रह कंधे पर कविता पर एक काव्य कोलाज के साथ ही दारियो फो की कृति पर आधारित नाटक कातिल मुंशिफ का मंचन भी हुआ। नीलांबर के सचिव श्री ऋतेश पाण्डेय ने कहा कि विमलेश त्रिपाठी के साथ हमारी मित्रता के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं और इस 25 वें वर्ष की पहली कड़ी के रूप में यह पूरा कार्यक्रम आयोजित किया गया है।

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अंत में डॉ. शंभुनाथ ने नीलांबर के सदस्यों को एक बहुत भव्य कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बधाई दी और कहा कि नीलांबर हर बार अपनी रचनात्मकता से मुझे स्तब्ध करता है। कार्यक्रम का सफल संचालन ममता पाण्डेय और धन्यवाद ज्ञापन ‘कंधे पर कविता’ के कवि और नीलांबर के अध्यक्ष विमलेश त्रिपाठी ने किया।

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प्रस्तुति – मनोज झा

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