अक्सर मीडिया में किसी महिला पर एसिड फेंकने की खबरें आती रहती हैं. कुछ खबरें ब्रेकिंग न्यूज तक सिमट कर रह जाती है तो कभी बीच-बीच में उनके दर्द को दिखाया जाता है. पहली बार किसी पत्रकार ने न केवल एसिड पीड़ितों के दर्द को महसूस किया है बल्कि किसी सिरफिरे के कारण तबाह हुई इन लड़कियों के जीने की जद्दोजहद, इलाज के लिए दर-दर भटकने, असप्ताल और कोर्ट के चक्कर लगाने, घर-परिवार के बिखरने, आर्थिक रुप से बुरी तरह टूट जाने की व्यथा को किताब के जरिए समेटने की कोशिश की है. वरिष्ट पत्रकार प्रतिभा ज्योति की किताब ‘एसिड वाली लड़की’ में पहली बार एसिड हमले के पीछे के मनोवैज्ञानिक पहलूओं से लेकर एसिड पीड़ित लड़कियों के प्रति समाज और सिस्टम के रवैए की गहराई से पड़ताल की गई है.
7 अक्टूबर 2016 को दिल्ली के कंस्टीच्यूशन क्लब के डिप्टी स्पीकर हॉल में ‘एसिड वाली लड़की’ किताब का विमोचन मणिपुर की माननीय राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला, महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी और मशहूर प्लास्टिक सर्जन डॉ अशोक गुप्ता ने किया. विमोचन कार्यक्रम कुछ लड़कियां भी मौजूद थीं जिनकी कहानियों को प्रतिभा ज्योति ने अपन किताब के जरिए उठाया है. किताब का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है. प्रतिभा ज्योति पिछले 16 सालों से पत्रकारिता में हैं और चरखा फीचर सर्विस, अमर उजाला, नई दुनिया और राजस्थान पत्रिका जैसे अखबारों के पॉलिटिकल ब्यूरों में काम कर चुकी हैं.
एसिड वाली लड़की किताब में हलद्वानी की कविता बिष्ट, सोनाली मुखर्जी और प्रज्ञा समेत उन आठ लड़कियों की चीखों को शब्दों में समेटने की कोशिश की गई है जिन पर किसी ने एसिड फेंककर हमेशा के लिए उनकी जिंदगी को तबाह करने की कोशिश की गई. यह किताब इस बात की छानबीन करती है कि एसिड हमले के बाद पीड़ित किस किस्म की शारीरिक और मानसिक यंत्रणा से गुजरती है और कैसे समाज और सिस्टम मूकदर्शक बनकर बैठा रहता है.
प्रतिभा ज्योति ने अपनी किताब का नाम ‘एसिड वाली लड़की’ क्यों रखा. इस बरे में वे बताती हैं कि जब इस किताब को लिखने के सिलसिले में वे एसिड पीड़ितों से मिलने उनके गांव, मोहल्ले में वो गई और उनका नाम लेकर पूछा तो किसी ने उनके घर का पता नहीं बताया लेकिन जब जिक्र किया कि जिस लड़की पर एसिड फेंका गया था उसका घर किधर है? फिर क्या, लोग तपाक से पता बता देते थे… अच्छा वो एसिड वाली लड़की ? एसिड ने इन लड़कियों की ना सिर्फ जिंदगी छीन ली है, पहचान भी छीन ली. प्रतिभा कहतीं हैं यदि आप जरा भी संवेदनशील है तो एसिड पीड़ितों के प्रति समाज का यह रवैया और भेदभाव आपको विचलित कर सकता है.
प्रतिभा ज्योति ने यह किताब घर बैठकर नहीं लिखी है. क़रीब चार साल पहले इसकी परिकल्पना तैयार की. फिर अपनी नौकरी छोड़कर कई एसिड पीड़ितों के घर जाकर, उनसे मिलकर, दर्द को महसूस किया, तब जाकर यह किताब बनी. किताब में एसिड पीड़ितों की कहानी के अलावा, भारत में इसके लिए बने कानून, चिकित्सा, मुआवजा और पुर्नवास जैसे मुद्दों के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में होने वाले एसिड हमले और उसके लिए बने कानून की भी विवेचना की गई है.