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साहित्य

मृत्युंजय प्रभाकर ने अपनी किताब ‘जो मेरे भीतर हैं’ को साहित्य अकादेमी से वापस लेने की घोषणा की

सेवा में,

अध्यक्ष
साहित्य अकादेमी
नई दिल्ली

मैं आपको इस पत्र की मार्फ़त यह इतल्ला करना चाहता हूँ (जिसकी कॉपी अकादेमी को मेल कर रहा हूँ) कि मैं देश में आम लोगों की व्यक्ति स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विचारों की स्वतंत्रता के दमन और श्री कलबुर्गी की नृशंस हत्या के बाद भी अकादेमी द्वारा उसकी कठोर निंदा न करने और लेखकों के विरोधस्वरुप अकादेमी पुरस्कार लौटाने के बाद बेहद ही लचर रूप में अपनी बात रखने के विरोध स्वरुप साहित्य अकादेमी द्वारा नवोदय श्रृंखला के अंतर्गत छापी गई मेरी पहली कविता पुस्तक ‘जो मेरे भीतर हैं’ को अकादेमी से वापस लेने की घोषणा करता हूँ।

<p>सेवा में,<br /><br />अध्यक्ष<br />साहित्य अकादेमी<br />नई दिल्ली</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- bhadas4media responsive advt --> <ins class="adsbygoogle" style="display:block" data-ad-client="ca-pub-7095147807319647" data-ad-slot="4034665012" data-ad-format="auto"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script> <p>मैं आपको इस पत्र की मार्फ़त यह इतल्ला करना चाहता हूँ (जिसकी कॉपी अकादेमी को मेल कर रहा हूँ) कि मैं देश में आम लोगों की व्यक्ति स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विचारों की स्वतंत्रता के दमन और श्री कलबुर्गी की नृशंस हत्या के बाद भी अकादेमी द्वारा उसकी कठोर निंदा न करने और लेखकों के विरोधस्वरुप अकादेमी पुरस्कार लौटाने के बाद बेहद ही लचर रूप में अपनी बात रखने के विरोध स्वरुप साहित्य अकादेमी द्वारा नवोदय श्रृंखला के अंतर्गत छापी गई मेरी पहली कविता पुस्तक 'जो मेरे भीतर हैं' को अकादेमी से वापस लेने की घोषणा करता हूँ।</p>

सेवा में,

अध्यक्ष
साहित्य अकादेमी
नई दिल्ली

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मैं आपको इस पत्र की मार्फ़त यह इतल्ला करना चाहता हूँ (जिसकी कॉपी अकादेमी को मेल कर रहा हूँ) कि मैं देश में आम लोगों की व्यक्ति स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विचारों की स्वतंत्रता के दमन और श्री कलबुर्गी की नृशंस हत्या के बाद भी अकादेमी द्वारा उसकी कठोर निंदा न करने और लेखकों के विरोधस्वरुप अकादेमी पुरस्कार लौटाने के बाद बेहद ही लचर रूप में अपनी बात रखने के विरोध स्वरुप साहित्य अकादेमी द्वारा नवोदय श्रृंखला के अंतर्गत छापी गई मेरी पहली कविता पुस्तक ‘जो मेरे भीतर हैं’ को अकादेमी से वापस लेने की घोषणा करता हूँ।

एक ऐसे वक़्त में जब आधुनिक सभ्यता की नींव बनी तार्किकता और वैज्ञानिक सोच पर देश भर में संघ गिरोह और उसकी समर्थित सरकार के द्वारा जबरदस्त हमले हो रहे हों, देश के नागरिकों के फंडामेंटल राइट्स को नकारा जा रहा हो और देश भर में विष-वपन का खेल केंद्र सरकार की देख-रेख में निर्बाध रूप से जारी हो, ऐसे में जब लेखकों की सर्वोच्च संस्था लचर और लाचार नजर आए, जनता के हितों के पक्ष में आवाज न उठाए, तो उस संस्था से किसी भी तरह का संबंध रखना मुझ जैसे लेखक के लिए कहीं से भी तर्कसम्मत नजर नहीं आता।

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उम्मीद है अकादेमी मेरी इस घोषणा के बाद मेरी पुस्तक ‘जो मेरे भीतर हैं’ के प्रकाशन और विपणन से खुद को अलग कर लेगी।

सधन्यवाद

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मृत्युंजय प्रभाकर


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