मंद प्रतिभा हमेशा हमलावर होती है : वीरेन डंगवाल
(पंकज चतुर्वेदी)
Pankaj Chaturvedi : तुम कहते थे, ”मंद प्रतिभा हमेशा हमलावर होती है।” मैंने इसका सत्यापन देखा, जब कभी तुम पर हमले हुए। दुखद यह था कि अक्सर वे आक्रमण व्यक्तिगत और बेबुनियाद थे। उनका तुम्हारी कविता से कोई लेना-देना न था।
एक बार तो एक आलोचक ने बीमारी के बहाने ही तुम पर निशाना साधा। गोया कविता न सही, कैंसर सही ! ग़ालिब का एक शे’र याद आता है कि फ़रहाद को शीरीं से मिलाने का काम तो तेशे, यानी कुदाल ने भी किया, क्योंकि वह उसकी मृत्यु का कारण बना : ”हम सुख़न तेशे ने फ़रहाद को, शीरीं से किया / जिस तरह का कि किसी में हो कमाल, अच्छा है !”
दरअसल कुंठा कभी सत्य और न्याय का पक्ष लेने नहीं देती। दुष्यंत कुमार उससे मुक्त होने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हैं, क्योंकि उसके चलते जो व्यक्ति युयुत्सु नज़र आता है, वह वास्तव में अधर्म का साथ दे रहा होता है : ”मन की चट्टानों कुछ खिसको / राह बना लूँ ; / ओ स्वर-निर्झर बहो कि तुममें / गर्भवती अपनी कुंठा का कर्ण बहा लूँ…. प्राप्य-सत्य के लिए / महाभारत-सा जब-जब युद्ध छिड़ेगा, / यह कुंठा का पुत्र हमेशा / कौरव-दल की ओर रहेगा, / और लड़ेगा।”
तुम कभी किसी साहित्यिक राजनीति में शामिल नहीं रहे। तुमने प्यार की बात की, इसलिए यह अपमान तुम्हें सहना ही था ! जैसे कि शमशेर तुम्हारी कविता में कहते हैं : ”मैंने प्रेम किया / इसीलिए भोगने पड़े / मुझे इतने प्रतिशोध।”
स्वयं शमशेर ने बहुत पीड़ा के साथ लिखा था : ”कवि एक बड़ा-सा तोता है, जैसे कि मैं। जिसे उसके संरक्षक पालते हैं। कई होते हैं वो।”
तुम पर आक्षेप किये गये, क्योंकि तुमने भी कवि की इस नियति से इनकार किया था।…………”और लोग भी हैं, कई लोग हैं / अभी भी / जो भूले नहीं करना / साफ़ और मज़बूत / इनकार।”
(वीरेन डंगवाल स्मरण : आख़िरी कड़ी)
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