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साहित्य

हर बार नया अर्थ देते हैं उद्भ्रांत – जयप्रकाश मानस

विद्वान समीक्षक और लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने अपने प्रमुख समीक्षात्मक आलेख में कहा कि उद्भ्रांत हमारे समय के श्वेत-श्याम को पौराणिक मिथकों और प्रतीकों में कहने वाले बहुआयामी कवि हैं और उनकी कविताएँ भी इतनी बहुआयामी कि हर बार नया अर्थ देती हैं । प्रसंग था – रायपुर में संपन्न हिंदी के वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत का एकल कविता पाठ, समीक्षा गोष्ठी और सम्मान समारोह ।

काव्यपाठ करते कवि उद्भ्रांत

विद्वान समीक्षक और लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने अपने प्रमुख समीक्षात्मक आलेख में कहा कि उद्भ्रांत हमारे समय के श्वेत-श्याम को पौराणिक मिथकों और प्रतीकों में कहने वाले बहुआयामी कवि हैं और उनकी कविताएँ भी इतनी बहुआयामी कि हर बार नया अर्थ देती हैं । प्रसंग था – रायपुर में संपन्न हिंदी के वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत का एकल कविता पाठ, समीक्षा गोष्ठी और सम्मान समारोह ।

काव्यपाठ करते कवि उद्भ्रांत

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जयप्रकाश मानस ने उपस्थित कवि पाठकों से उनकी सभी कृतियों से परिचय देते हुए कहा कि उद्भ्रांत निराला की परंपरा में एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्हें सभी काव्य के सभी अनुशासनों में विपुल और विलक्षण लिखने का गौरव हासिल है, वे किसी भी अकादमी प्राप्त कवि से कमतर नहीं ।

साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य गिरीश पंकज के अनुसार भारतीय काव्य परंपरा में उद्भ्रांत की कविता और कविता पाठ दोनों सभ्रांत हैं । वे बेहत्तर पाठ करने वाले ऐसे कवि हैं जो अर्थ को अपनी आंगिक भूमिका, आरोह-अवरोह और भावगत गति से बड़ी सहजता से श्रोता के समक्ष खोल-खोल देते हैं ।

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सुपरिचित आलोचक प्रो. राजेन्द्र मिश्र ने उद्भ्रांत को मनुष्य की पीड़ा, यातना का कवि मानते हुए जब कविता और पाठक के संबंधों का प्रश्न उठाया तो उसे वरिष्ठ कथाकार तेजिन्दर ने नकारते हए सोशल मीडिया और नये ज़माने के नयी प्रविधियों से आ रहे नये पाठकों की प्रबल संभावनाओं से परिचय दिलाते हुए कहा – ”मैं उद्भ्रांत उर्फ़ रमांकात शर्माजी का व्यक्तिगत मुरीद हूँ । उन्होंने जैसे लिखा है वैसे ही जीया है । उनकी कविताओं को मैने निजी जीवन में भी महसूसा है ।”

विशिष्ट अतिथि और राज्य सभा सांसद डॉ. भूषण लाल जांगड़े ने पाठकीयता के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा मुझ जैसे कम साहित्यिक रूचि वाला राजनीतिज्ञ को भी जब उद्भ्रांत की कविता सुनकर अच्छा लगा तो यह चिंता की बात नहीं है ।

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कवयित्री जया जादवानी के अनुसार उद्भ्रांत की कविताएँ जैसे नमक, सीता रसोई, ईंट आदि आम आदमी से जोड़नेवाली कविताएँ हैं जिनका रेंज़ बहुत है और वे बहुत दूर तक जाती हैं ।

इससे पहले एकल पाठ में उद्भ्रांत ने अपनी लगभग 30 बहुचर्चित कविताओँ का रम्य-पाठ किया, जिस पर उपस्थित श्रोत्राओं और कवियों ने अपने-अपने विचार रखे । कवि से प्रश्नोत्तर सत्र में डॉ. जे. आर. सोनी और डॉ. सीमा श्रीवास्तव ने अपनी जिज्ञासा रखी जिस पर उद्भ्रांत ने सारगर्भित जवाब दिया ।

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आयोजन में उद्भ्रांत की दो कृतियों – हिन्द पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ‘त्रेता’ और नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित ‘उद्भ्रांत:श्रेष्ठ कहानियाँ’ का विमोचन दो पाठक क्रमशः राजेश गनोदवाले और श्रीमती सीमा राठी के हाथों संपन्न हुआ जिसमें हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठ कवि विनोद कुमार शुक्ल जी ने उनका हौसला बढ़ाया । इस मौक़े पर वैभव प्रकाशन द्वारा प्रकाशित संतोष श्रीवास्तव सम के संग्रह वे सौदागर का विमोचन भी उद्भ्रांत और अन्य अतिथियों के हाथों संपन्न हुआ ।

समापन हुआ छत्तीसगढ़ की प्रमुख साहित्यिक संगठनों वृंदावन लायब्रेरी पाठक मंच, सृजनगाथा डॉट कॉम, छत्तीसगढ़ राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वैभव प्रकाशन, छत्तीसगढ़ मित्र, सद्भावना दर्पण, नाचा थियेटर, पत्रिका मुक्तिबोध, सृजन-सम्मान, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, गुरुघासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, दैनिक भारत भास्कर, मिनी माता फाउंडेशन आदि द्वारा श्री उद्भ्रांत के आत्मीय सम्मान से ।

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श्री उद्भ्रांत के सम्मान में युवा कलाकार प्रगति रथ ने गिटार पर एक संगीत प्रस्तुत की जिसे सभी ने सराहा । धन्यवाद ज्ञापन दिया डॉ. सुधीर शर्मा ने और संचालन किया वृंदावन लायब्रेरी पाठक मंच के संयोजक अजय अवस्थी ने । इस आयोजन में युवा कवि प्रवीण गोधेजा और संदीप तिवारी का उल्लेखनीय सहयोग रहा ।

इस महत्वपूर्ण आयोजन में रायपुर के अलावा कांकेर, दुर्ग और राजनांदगाँव के रचनाकार एवं पाठकगण उपस्थित थे।

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