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ज़बरदस्ती में भाई लोग एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय के पीछे पड़ गए हैं!

Abhishek Upadhyay : ज़बरदस्ती में भाई लोग एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय के पीछे पड़ गए हैं। अरे भई, हाँ। रवीश कुमार। अब खानदानी नाम रवीश पांडेय है तो क्या हुआ? सेक्युलर हैं। सर्वहारा समाज के प्रतिनिधि हैं। रवीश कुमार ही सूट करता है। अब क्या हो गया जो इन्ही रवीश पांडेय, माफ़ कीजिएगा रवीश कुमार के बड़े भाई ब्रजेश पांडेय बलात्कार के मुकदमे में हैं।

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Abhishek Upadhyay : ज़बरदस्ती में भाई लोग एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय के पीछे पड़ गए हैं। अरे भई, हाँ। रवीश कुमार। अब खानदानी नाम रवीश पांडेय है तो क्या हुआ? सेक्युलर हैं। सर्वहारा समाज के प्रतिनिधि हैं। रवीश कुमार ही सूट करता है। अब क्या हो गया जो इन्ही रवीश पांडेय, माफ़ कीजिएगा रवीश कुमार के बड़े भाई ब्रजेश पांडेय बलात्कार के मुकदमे में हैं।

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पीड़ित भी कौन? एक दलित लड़की! वो भी नाबालिग? ज़िला मोतिहारी। बिहार। सेक्स रैकेट चलाने का मामला अलग से है! पर इसमें रवीश कुमार का करें?

अब ठीक है, माना कि आसाराम से लेकर स्वामी नित्यानन्द तक ऐसे ही मामलों पर बड़ा शोर मचाए रहे वो। गर्दा झाड़े पड़े थे। तब पीड़ित के साथ खड़े थे। रोज़ ही जलते सवालों की बौछार। स्टूडियो न हुआ था। आग का मैदान हो गया था तब। पर भूलो मत। भाई की बात है। आपस में भले लड़ लें। बाहर सब एक हैं। जब बाहर से विपत्ति आई तो युधिष्ठिर ने कहा था- “वयम पंचादि शतकम।” हम एक सौ पांच हैं। कौरव-पांडव सब एक। अब धर्मराज युधिष्ठिर की भी न सुने रवीश!!!

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एक बात और सुन लो। रवीश कुमार का भाई तो बलात्कारी हो ही नही सकता। ऊपरवाले की फैक्ट्री में कुछ लोगों के चूतड़ों पर नैतिकता का सर्टिफिकेट चिपकाकर। बाकायदा लाल स्याही से ठप्पा मारकर। फिर उन्हें नीचे भेजा जाता है। ऐसे हैं रवीश कुमार। अगर वो अपने भाई के खिलाफ कुछ भी लिख बोल नही रहे हैं तो सीधा मतलब यही है कि भाई दूध का धुला होगा। वो भी अमूल ब्रांड। फुल क्रीम मिल्क का। तुम समझे कि नही? ये पुलिस। ये थाना। ये कानून। वो दलित लड़की। वो महिला पुलिस इंस्पेक्टर जिसने जांच की और इनके भाई का नाम शामिल पाया। सब के सब बिके हुए हैं। सब झूठे हैं। फ्रॉड हैं।

ब्रजेश पांडेय से बड़ा बेदाग़ कौन होगा? उन पर रवीश पांडेय, अरे माफ़ कीजियेगा, रवीश कुमार का हाथ है। मेरी नज़र में ये भाजपाइयों या फिर संघ की साज़िश हो सकती है। Yes, रवीश कुमार के भाई कांग्रेसी नेता हैं। पिछला चुनाव मोतिहारी से लड़े थे। हार गए। सोनिया जी भी आई थीं। रवीश कुमार के भाई हैं। बड़े भाई। जलवा है। किसी ने राजनीतिक साज़िश कर दी होगी!!

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अब ये कौन सी बात हुई कि बिहार में तो नितीश कुमार की पुलिस है? भाई साज़िश मत करो रवीश कुमार के खिलाफ। कौन हैं ये नितीश कुमार। बोलो। कौन हैं? अबे, ये बीजेपी के एजेंट हैं। और क्या! रवीश कुमार के ख़िलाफ़ जो भी एक लफ्ज़ बोलेगा, वो बीजेपी का ही एजेंट होगा। जाओ, निकलवाए लो उस दलित लड़की की भी जनम कुंडली। बाप नही तो दादा। दादा नही तो परदादा। या उनके भी दादे। कोई न कोई बीजेपी से सटा रहा होगा। अब बीजेपी तब नही थी तो क्या हुआ!! तुम निकलवाए लो कुंडली। सावरकर और गोलवलकर के साथ कभी घूमे होंगें। इनके दादे-परदादे।

ये वही कम्युनल लोग हैं जो कहते हैं कि रवीश कुमार 2जी मामले में फंसी एनडीटीवी से मिली मोटी तनख्वाह डकारकर रोज़य ईमानदारी का प्रवचन देते हैं। अरे भइया, एनडीटीवी में 2जी मामले के चार्जशीटेड आरोपी टी.आनदकृष्णन ने कई सौ करोड़ का निवेश कर रखा है!!! तो क्या हुआ? कौन सी बिजली गिर गई? रवीश कुमार को इसमें से क्या मिला जा रहा है। हर महीने 5-6 लाख की तनख्वाहै तो मिल रही होगी। और का? अब अगर बगैर रिजर्व बैंक की इजाज़त से। चोरी छिपे। विदेश में बनी अपनी सहयोगी कम्पनियों मे कई सौ करोड़ की रकम डालकर। एनडीटीवी बैठ गई है। तो रवीश कुमार को पर्दे पर ईमानदारी की बात करने से काहे रोक रहे हो? अब वो अगर कुछ और नाही कर पाए रहे हैं। परिवार चलाना है। सो नौकरी भी नाहि छोड़ पाए रहे हैं। तो का ईमानदारी की बात भी न करें। उन्हें कुछ तो करने दो भाई लोगों।

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बड़ी गाड़ी। बड़ा बंगला। मोतिहारी में अलग। पटना में अलग। ग़ाज़ियाबाद और कहां कहां!! तो का हुआ? अब ये सोचो कि एयरकंडिशन ज़िन्दगी में रहकर भी कोई। टीवी के पर्दे पर सही। मेहनतकश मजदूर के पसीने के बारे में सोच लेता है। मामूली बात है???

तो भइया, हम तो इस लड़ाई में रवीश पांडेय, उफ़ ये ज़ुबान, फिर से माफ़ी, रवीश कुमार के साथ हैं। आप भी साथ आओ। चलो नया नारा गढ़ते हैं-

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“ब्रजेश पांडेय को बचाना है

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और

उस दलित लड़की को

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झूठा साबित करके दिखाना है।”

अब ये कौन साला आ गया है जो तेज़ आवाज़ में लाउडस्पीकर पर बल्ली सिंह चीमा की कविता बजाए जा रहा है? रवीश कुमार को सुनाए जा रहा है-

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“तय करो किस और हो तुम
आदमी के पक्ष में हो
या फिर कि आदमखोर हो तुम।”

भगाओ…मारो….साले को… चुप कराओ… यहां नैतिकता का इकलौता ठेकेदार पत्रकार जीवित है!!! वो भी नही देखा जा रहा है इनसे!!!!

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इंडिया टीवी में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. rakesh thakur

    February 21, 2017 at 11:01 am

    dear अभिषेक उपाध्याय ji

    lagta hai apko Ravish ji se kuch jyada preshani ha wo b personal level pr. Apko dhyan dila dun apke channel k senior pr b 1 anchor ne case kiya tha nd suicide attempt b tab aap kahan the.

  2. संजीव कुमार सिंह

    February 21, 2017 at 3:39 pm

    शुरू से शुरू से पड़ता चला गया, भैया दोषी, रविश क्योँ दूसरे दोषियों पर ऊँगली उठाता है, खुद के पास अच्छी खासी संपत्ति है…. लास्ट तक पड़ता चला गया, समझ में नहीं आया की लिखने वाला इतना कंफुजिया काहे गया है। पर जब लास्ट में देखा की किसी मोदी भक्त चेनल का पत्रकार है, सबकुछ समझ में आ गया।

  3. संजीव कुमार सिंह

    February 21, 2017 at 3:39 pm

    शुरू से पड़ता चला गया, भैया दोषी, रविश क्योँ दूसरे दोषियों पर ऊँगली उठाता है, खुद के पास अच्छी खासी संपत्ति है…. लास्ट तक पड़ता चला गया, समझ में नहीं आया की लिखने वाला इतना कंफुजिया काहे गया है। पर जब लास्ट में देखा की किसी मोदी भक्त चेनल का पत्रकार है, सबकुछ समझ में आ गया।

  4. ambrish

    February 22, 2017 at 3:56 am

    Bhaiya Abhishek Ji

    Ravish ji kaun hain aur kya kar rahen isse fark nahi padta LEKIN is ek ghatna ke itar bhi bahut si ghatnayen hai jahan aap maun hai KYON ?? ISKA bhi karan spasht kar den to achha lagega, Ravish ji ke case mein to BHAI (blood relation/jaisa aapne bataya) hai PAR anya mamlon me JAHAN kuch logo ke BHAI nahi bhi hain ve kyon chuppi sadhe baithe hain..

    Rgds

  5. RAJESH

    February 24, 2017 at 7:56 am

    बहुत बड़िया आर्टिकल लिखा गया है। रविश की ऐसी तेसी हुई पड़ी है। अपना मोदी विरोध दर्ज कराने के लिए कभी अखलाख तो कभी रोहित वेमूला को लेकर दलित-दलित चिल्लाता था। लेकिन आज जब खुद के उपर बात आई तो रविश अपनी माँ के घाघरे में जा छिपा बैठा है।

  6. अश्वमेघ

    February 24, 2017 at 8:07 am

    शातिर वामपंथी कॉमेंट बॉक्स में इस पर बात नहीं कर रहे की क्या लिखा है ? बल्कि इसपर बात कर रहे हैं की किसने लिखा है। हद है दोगलापंथी की खैर दलित समाज की बलात्कार पीड़िता के साथ खड़े रहने की बजाये सेक्स रैकेट चलाने वालों के साथ खड़े इन हवसी भेड़ियों के वामपंथी झुण्ड को देख कर समझ में आता है की क्यों एक वामपंथी बुढापे तक एक दूसरे की बहन बेटियों बीबियों पर हाथ साफ़ करते रहते हैं। मौका मिलते ही पितृ-सत्ता के बंधन से मुक्ति दिलाकर एक दूसरे के घरों में वामपंथी बीज बोते रहते हैं 😉

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