Krishan pal Singh-
सुसुप्तावस्था से उठकर बसपा विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही ब्रह्मास़्त्र के साथ मैदान में उतर पड़ी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर लड़ने के बावजूद उसकी जो मिट्टी पलीत हुई थी उसके चलते बसपा के मृत्युशैया पर पहुंच जाने की चर्चायें चल पड़ी थी। पर अब उसके इरादे और तेवर लोगों को चैंका रहे हैं। इस बार बसपा ने जिस अंदाज में ब्राह्मण कार्ड फैंकने की तैयारी की है वह 2007 के दौर से भी मजबूत है। इसका आगाज 23 जुलाई को अयोध्या में पार्टी के नम्बर-2 सतीश चन्द्र मिश्रा ने जय श्रीराम के नारे के साथ किया।
क्या इस बार जय श्रीराम का नारा भाजपा की बजाय बसपा को वरदान देने वाला साबित होगा, यह कौतूहल लोगों के दिलों में उमड़ घुमड़ रहा है। लेकिन बसपा के मंच से पहली बार गूंजे इस नारे से पार्टी के संस्थापक कांशीराम की आत्मा पर क्या गुजरी होगी इसका अंदाजा लगाया जाना चाहिए जिनकी प्रेरणा से कभी यह नारा ईजाद हुआ था-मिल गये मुलायम कांशीराम-हवा में उड़ गये जय श्रीराम।
पिछले दो सालों से बसपा सुप्रीमो मायावती विरोधी दल की भूमिका निभाने के बजाय प्रकारांतर से सहयोगी के अवतार में नजर आ रही थी। भले ही उन्होंने खुलकर एक भी बार भाजपा का समर्थन न किया हो। इसके चलते राजनीति के लाल बुझक्कड़ उन्हें खोटा सिक्का करार दे चुके थे जो राजनीति की मंडी में चलन से बाहर किया जा चुका है। लेकिन उन्होंने अपने बारे में फिर ऐसे स्वयंभू पंडितों का आकलन गलत साबित कर डाला है जिसका आभास मिलने लगा है। अयोध्या में सतीश मिश्रा ने ब्राह्मण उत्पीड़न के मुद्दे को जिस कौशल के साथ गर्माया है उससे राजनैतिक जगत में खलबली मच गई है। यह दूसरी बात है कि सामाजिक मामलों में इसके चलते उलटबांसी के कारण बसपा परिवर्तन की संवाहक बनी रहने की बजाय अब चेयर रेस की चतुर खिलाड़ी भर बन कर रह गई है।
बसपा कभी ब्राह्मणवाद से सतायी हुई जातियों को संगठित करने के आंदोलन के लिए पहचानी जाती थी। लेकिन आज वह ब्राह्मणों को सतायी हुई कोम के रूप में पेश करने में जुट पड़ी है। सतीश चन्द्र मिश्र ने ब्राह्मण दलित एकता को सत्ता पाने के अचूक मंत्र के बतौर बहुत की सिद्धत तरीके से प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि 13 प्रतिशत ब्राह्मण और 23 प्रतिशत दलित एक हो जायें तो लखनऊ की सत्ता उनसे दूर नहीं रह जायेगी। ऐसी दलीलें टारगेट तबकों में असर डालने वाली हैं इसमें कोई संदेह नहीं।
इस बीच मायावती पार्टी के लगभग सभी पुराने साथियों को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। उनका विश्वास एक समय से ज्यादा किसी पर नहीं टिक पाता लेकिन सतीश चन्द्र मिश्र इसके अपवाद हैं। हालांकि पार्टी के कट्टरवादी मिशनरी मायावती के कान भरते रहते हैं कि वे सतीश चन्द्र मिश्रा से सावधान रहें उन्हें बसपा को खत्म करने के लिए प्लांट किया गया है। लेकिन जितना ही मायावती को यह समझाने की कोशिश की गई वे सतीश पर उतनी ही आश्रित होती चली गई सतीश उनके लिए हैं भी लकी। 2007 में सतीश चन्द्र मिश्रा ने बसपा की कास्मेटिक सर्जरी के लिए हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है का नारा तैयार किया था जो कि बसपा की फितरत के खिलाफ था। पर इस नारे के कारण मायावती को पहली बार अकेले दम पर प्रदेश में सरकार बनाने का मौका मिला था इसलिए उन्हें सतीश चन्द्र मिश्रा द्वारा किया गया पार्टी का कायाकल्प इतना भा गया कि उसके मूल की याद उन्हें बेचैन नहीं कर पाती।
रामलला के दरबार में हाजिरी
शंबूक वध के प्रसंग का हवाला देकर भगवान राम के महिमा मंडन पर विफरने वाली बसपा अब उनकी शरण में है। बहुत से लोग भूल चुके होंगे कि जहां आज रामलला का मंदिर बन रहा है वहां बसपा के संस्थापक कांशीराम ने सार्वजनिक शौचालय के निर्माण की वकालत की थी। लेकिन तब से तो सरयू में न जाने कितना जल बह गया है। आज बसपा के नम्बर 2 सतीश चन्द्र मिश्र रामलला के दरबार में हाजिरी लगाकर अपनी पार्टी को धन्य करने का सुख बटोर रहे हैं। अपनी अयोध्या यात्रा में सबसे पहले उन्होंने रामलला के दरबार में जाकर शीश नवाया, इसके बाद हनुमान गढ़ी में दर्शन किये और बाद में सरयू मैया की आरती भी की। उन्होंने कहा कि भगवान राम भाजपा के पेटेंट नहीं हैं वे सबके भगवान हैं। यह भी कहा कि इतना बड़ा चंदा इकट्ठा करके भी भाजपा अभी तक मंदिर की नीव भी ढंग से नहीं रखवा पायी है। जबकि मायावती ने लखनऊ में अपने समय में बड़े-बड़े स्मारक आनन फानन तैयार करा डाले थे। उन्होंने कहा कि बहिन जी के सत्ता में वापस लौटने पर इसी तर्ज पर भव्य राम मंदिर का निर्माण तेजी से करा दिया जायेगा।
ब्राह्मण सम्मेलन पर हाईकोर्ट की छाया
मायावती ने प्रदेश के हर जिले में सतीश चन्द्र मिश्रा की अगुवाई में ब्राह्मण सम्मेलनों के आयोजन की घोषणा की थी जिस पर हाईकोर्ट के आदेश का हवाला आ जाने से ग्रहण लग गया। सपा की सरकार के समय हाईकोर्ट ने जातिगत सम्मेलनों पर रोक घोषित कर दी थी इसलिए ऐसे सम्मेलन सतीश चन्द्र मिश्रा ने प्रबुद्ध वर्ग सुरक्षा एंव सम्मान संवाद के बैनर तले कराने का खाका तैयार किया है। अयोध्या यात्रा का आध्यात्मिक प्रयोजन पूरा कर लेने के बाद सतीश चन्द्र मिश्रा ने एक रिसोर्ट में उक्त सम्मेलन को संबोधित किया जिसमें ब्राह्मणों को भावुक करने के लिए उन्होंने तमाम अचूक तीर चलाये।
मायावती की मेहरबानियों का बखान
सतीश चन्द्र मिश्रा ने ब्राह्मणों के सामने उन पर मायावती द्वारा अपनी सरकार के समय की गई मेहरबानियों का जमकर बखान किया। उन्होंने कहा कि मायावती ने अपने मं़ित्रमंडल में 25 ब्राह्मणों को जगह दी थी, 35 ब्राह्मणों को निगमों और अन्य संस्थाओं में चेयरमेन बनाया था। प्रदेश प्रशासन के मुखिया के रूप में एक ब्राह्मण अफसर की नियुक्ति की थी। ब्राह्मणों में 15 लोगों को एमएलसी बनाया था, विधान परिषद का सभापति भी हमारी बिरादरी से तय किया था, 20 हजार ब्राह्मण वकीलों को सरकारी वकील बनाया था। दूसरी ओर भाजपा ब्राह्मणों का ही वोट लेकर ब्राह्मणों की पूरी तरह उपेक्षा कर रही है। उसके समय जो ब्राह्मण मंत्री बनाये गये हैं उनकी हैसियत गुलदस्ते से ज्यादा की नहीं है। वे ब्राह्मण समाज पर होने वाले अत्याचार के समय मूक दर्शक बने रहते हैं उल्टे उन्हें ऐसे मामलों में सरकार के बचाव के लिए आगे आना पड़ता है।
जाति पूछकर एनकाउण्टर
सतीश मिश्रा ने कहा कि योगी सरकार में ब्राह्मणों का सुनियोजित ढंग से दमन हो रहा है। इस सरकार में अभी तक 400 ब्राह्मणों का सफाया हो चुका है। पुलिस के शिकंजे में पहुंचने वाले ब्राह्मण को या तो शूट आउट कर दिया जाता है या उसकी गाड़ी पलटा दी जाती है। उन्होंने कहा कि पुलिस जब किसी को पकड़ती है तो पहले उसकी जाति पूंछती है और ब्राह्मण होने पर उसे ठोक डालती है। उन्होंने ब्राह्मणों को ललकारा कि इस बार के चुनाव में वे इसका पूरा बदला चुकाकर अत्याचारियों को माकूल जबाव दें।
खुशी की गिरफ्तारी पर जख्म कुरेदे
ब्राह्मणों के जख्म कुरेदने में कोई कसर न छोड़ते हुए उन्होंने खुशी दुबे की गिरफ्तारी का मुद्दा भी छेड़ा। उन्होंने कहा कि साढ़े सोलह साल की यह ब्राह्मण बच्ची पिछले एक साल से बेकसूर होकर भी जेल में है। जिस दिन बिकरू कांड हुआ उसके दो दिन पहले ही उसकी शादी हुई थी ऐसे में उसका बिकरू कांड से क्या लेना देना हो सकता था। खुशी को नाबालिग होते हुए भी जेल में ठूंस दिया गया। उसके माता पिता को कानपुर में रखा गया है जबकि उसे बाराबंकी में। बसपा ब्राह्मण समाज की इस बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए पूरी शक्ति से कानूनी लड़ाई लड़ेगी।
सतीश मिश्रा के ब्राह्मणों को बसपा के साथ गोलबंद करने के इस अभियान से भाजपा में हलचल मची है क्योंकि इसके कारण उसका बेस वोट दरकता दिखने लगा है। उधर बसपा की रणनीति से सपा में भी कम घबराहट नहीं है। अभी तक विपक्ष के स्पेस में सपा के अलावा किसी और दल की जगह नजर नहीं आ रही थी जिससे सपा नेतृत्व बेहद निश्चिंत था। लेकिन ढाई घर चाल में माहिर बसपा के पैंतरे ऐन मौके पर फिजा बदलने वाले हैं। अब सपा को खरगोश और कछुवा की दौड़ का रूपक चरितार्थ होने का अंदेशा सताने लगा है। बसपा का टिकट वितरण में मुस्लिम कार्ड दलित ब्राह्मण गठजोड़ के रंग लाने पर उस पर भारी न पड़ जाये यह अनुमान सपा की बेचैनी बढ़ा रहा है।
K.P.Singh
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