प्रिय यशवंत जी, सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हिन्दुस्तान हिन्दी के मुख्य संपादक शशि शेखर स्टॉफ से जबरदस्ती हस्ताक्षर कराने के बाद स्टॉफ को बेइज्जत, अपमानित करने तथा तानाशाही पर उतर आए हैं। आए दिन स्टॉफ के लागों को बुड्ढा, नाकारा कहते हैं (जबकि वो खुद भी जवान नहीं हैं), और खुली तानाशाही कर रहे हैं। यही नहीं, उनकी कोशिश है कि हिन्दी हिन्दुस्तान, नंदन और कादम्बिनी का स्टॉफ वापस अपने पुराने स्थान (कस्तूरबा गांधी मार्ग) पर न आ सके। जबकि वरिष्ठ प्रबंधन की योजना नवीनीकरण के बाद कर्मचारियों को पुराने स्थान पर लाने की है।
उनकी इस कोशिश के पीछे दो कारण हैं। पहला यह कि उनका अपना घर वहां से नजदीक है। वो जब मर्जी आ और जा सकते हैं। साथ ही कोई उन्हें देखने या पूछने वाला नहीं है। जबकि कनॉट प्लेस उनके लिए दूर होता है। भले ही दूसरे कर्मचारियों को ऑफिस आने में कितनी ही परेशानी और दिक्कत हो।
दूसरा यह कि कस्तूरबा गांधी मार्ग में उनके ऊपर भी प्रबंधन है जिसका उन पर नियंत्रण होगा और उन पर प्रबंधन की निगाह भी रहेगी, जो कि वो नहीं चाहते। वो नोएडा में हिन्दी हिन्दुस्तान और अन्य हिन्दी प्रकाशनों के संपादकीय विभाग को रोके रखना चाहते हैं ताकि वो निरंकुश और तानाशाह बने रहें।
यशवंत जी, कृपया अपने पोर्टल पर इस खबर को चला कर पत्रकारों की समस्या और शशि शेखर जैसे इंसानों को बेनकाब करें। हम सब आपके आभारी रहेंगे। आपका सहयोग प्रार्थनीय है। आपके स्वस्थ एवं सानंद जीवन की कामनाओं सहित
भवदीय
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(भड़ास के पास पत्र भेजने वाले का नाम व मेल आईडी उनके अनुरोध के कारण उपरोक्त पोस्ट से हटा दिया गया है.)
Comments on “बुजुर्ग शशि शेखर स्टॉफ के लागों को आए दिन ‘बुड्ढा’ और ‘नाकारा’ कहते हैं!”
शशि शेखर एक नंबर का धुर्त, कपटी और सियार आदमी है। किसी के साक्षात्कार से पहले पहुंचे बायोडेटा में उसके स्नातक के विषय जान लेता है और उन्हीं विषयों से संबंधित सवाल ऐसे पूछता है जैसे पत्रकार नहीं शिक्षक की नौकरी देनी हो। विद्वान होने का स्वांग रचता है। हीन भावना से ग्रस्त है…
कारपोरेट जगत में कुछ लोगों को विशेष रूप से मेहनतकश स्टाफ का खून चूसने के लिए ही रखा जाता है।उनकी योग्यता ही मालिकों के लिए अधिनस्थों का अधिक से अधिक खून चूसने की होती है। इससे मालिकों का मुनाफा काफी बढ़ जाता है, लेकिन कामगार वर्ग त्राहि त्राहि करता रहता है। शशि शेखर उन्हीं में से एक हैं। उन्हें अखबार के लिए पत्रकार नहीं, बल्कि मनमाफिक समाचार गढ़ने वाले चाहिए।
Sale ko do char juta mare