कई न्यूज चैनलों में इनवेस्मेंट करने की चर्चा, करोड़ों की संपत्ति का मालिक है यह भ्रष्ट इंजीनियर, डीएचएफल-पीएफ घोटाले में हुई कार्रवाई
एपी मिश्र यानी अयोध्या प्रसाद मिश्र। उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग ऐसा इंजीनियर, जिसकी सपा सरकार में तूती बोलती थी। मुलायम सिंह यादव की सरकार रही हो या फिर अखिलेश यादव की सरकार, एपी ने जिसका चाहा उसका बीपी बढ़ाया, वह भी बिना किसी डर-भय के। एपी मिश्र यूपी पॉवर कारपोरेशन के पहले ऐसे एमडी थे, जो आईएएस नहीं थे। अलिखेश यादव अपनी सरकार में एपी मिश्र पर इतने मेहरबान हुए कि नियम ही बदल डाला। एपी मिश्रा के यूपी पॉवर कारपोरेशन का एमडी बनने से पहले इस पद पर केवल वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति होती थी, लेकिन अखिलेश ने इस नियम को किनारे करते हुए बिजली विभाग के इंजीनियर एपी मिश्रा को यूपीपीसीएल का एमडी बना दिया।
एपी मिश्र सपा सरकार में अखिलेश यादव को इतने प्यारे थे कि रिटायर होने के बावजूद नियम के विरुद्ध जाकर तीन बार एक्सटेंशन दिया गया ताकि विभाग में लूट जारी रहे। पिछली सरकार में एपी का राजनीतिक रसूख इतना था कि जो फैसला कर लेता था, उसे फिर कोई बदल नहीं सकता था। सपा सरकार में बिजली विभाग से जुड़े सारे बड़े फैसले एपी ने ही लिये। एपी मिश्र ने खुद भी भ्रष्टाचार का गंगा स्थान किया तथा दूसरों को भी नहलाया। कहा जाता है कि एक दौर में ईटीवी में एपी मिश्र की ऐसी तूती बोलती थी, बिजली विभाग के खिलाफ खबरें करना अपराध जैसा हो गया था। इसके कारनामों की खबरों का भी अखिलेश सरकार ने कभी संज्ञान नहीं लिया।
सत्ता से नजदीकी साधने के लिये एपी मिश्र ने तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव पर एक किताब भी लिखी। इस किताब का विमोचन मुख्यमंत्री आवास पर खुद अखिलेश यादव ने किया था। एपी का रसूख इतना था कि इसी किताब का विमोचन दिल्ली में राम गोपाल यादव से कराया। इस एक किताब का विमोचन कई बार कई बड़े नेताओं कराकर अपनी धमक दिखाई थी। भाजपा की सरकार बनने के बाद एपी मिश्र किसी भी प्रकार की कार्रवाई से बचने के लिये इस्तीफा दे दिया था। कहा जाता है कि एपी मिश्र की काली कमाई का एक हिस्सा कई न्यूज चैनलों में भी लगा हुआ है। सत्ता और मीडिया में घुसपैठ होने के चलते अरबपति एपी मिश्र को आशंका भी नहीं रही होगी कि वह कानून के लपेटे में आ जायेगा।
खैर, जिस पीएफ मामले में एपी मिश्र की गिरफ्तारी हुई है, यह खेल सपा शासनकाल के दौरान ही रचा गया था। डीएचएफएल में बिजली विभाग के कर्मचारियों का पैसा जमा कराने को लेकर बैंक से समझौता सपा सरकार में ही हुआ था, जिस प्रपत्र पर तत्कालीन चेयरमैन यूपीपीसीएल एवं ट्रस्ट संजय अग्रवाल, यूपीपीसीएल एमडी एपी मिश्रा, डाइरेक्टर (पी एंड ए) यूपीपीसीएल एंड ट्रस्टी सत्य प्रकाश पांडेय (मौत हो चुकी है), जनरल मैनेजर (एफ एंड ए) सेक्रेटरी ट्रस्ट पीके गुप्ता तथा डाइरेक्टर फाइनेंस यूपीपीसीएल एंड ट्रस्ट सुधांशु द्विवेदी के हस्ताक्षर थे। इस मामले में पैसे भाजपा सरकार में हुए, लेकिन डीएचएफल से टाईअप पिछली सरकार में ही हो चुका था।
इस घोटाले में पीके गुप्ता, सुधांशु दि्ववेदी तथा एपी मिश्रा की अरेस्टिंग ईओडब्ल्यू ने की है। वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ला सवाल उठाते हैं कि क्यों नहीं इस मामले में सभी जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए? जिन लोगों के भी हस्ताक्षर इस डील में है, उन सब पर कार्रवाई होनी चाहिए। वह यह भी जोड़ते हैं कि यह कैसे संभव है कि ट्रस्ट के चेयरमैन आलोक कुमार को इसकी निवेश की जानकारी नहीं हो? अगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी तब भी उनकी अक्षमता के लिये कार्रवाई की जानी चाहिए। छोटी मछलियों को पकड़ने से कुछ नहीं होगा, जब तक बड़े मगरमच्छ नहीं पकड़े जाते। आईएएस अधिकारियों को केवल तबादला करके अभयदान देना उचित नहीं है। इन्हें भी सजा मिलनी चाहिए।
एपी मिश्र की अरेस्टिंग के बाद हरकत में आये अखिलेश यादव ने बिना नाम लिये अपने इस चहेते अधिकारी का बचाव किया। साथ ही ऊर्जा मंत्री पंडित श्रीकांत शर्मा पर 20 करोड़ का चंदा लेने का आरोप लगाते हुए सिटिंग जज से जांच कराने की मांग की। भ्रष्टाचारी गायत्री प्रजापति को पालने वाले अखिलेश यादव ने श्रीकांत शर्मा को हटाने की मांग भी की। दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने भी डीएचएफएल घोटाले में ऊर्जा मंत्री पर हमला बोलते हुए हटाने तथा अरेस्ट कराने की मुख्यमंत्री से मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि मंत्री की जानकारी के बिना इतना बड़ा घोटाला संभव नहीं है।
लेखक अनिल सिंह लखनऊ के तेजतर्रार पत्रकार हैं.
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