इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी की उनकी सरकार राजनितिक प्रतिशोध के तहत कोई कार्रवाई नहीं करेगी लेकिन एक एक करके केंद्र सरकार ने अपने विरोधियों पर निशाना बनाना शुरू कर दिया है। ताज़ा मामला वरिष्ठ वकील दम्पति इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ का है जिसके खिलाफ सीबीआई ने विदेशी अंशदान पंजीकरण अधिनियम(एफसीआरए)के प्रावधानों के कथित उल्लंघनों के सिलसिले में एक आपराधिक मामला दर्ज किया है। सीबीआई की प्राथमिकी में आनंद ग्रोवर को बतौर आरोपी नामजद किया गया है। उच्चतम न्यायालय की जानी मानी वकील इंदिरा जयसिंह के पति ग्रोवर संगठन के न्यासी एवं निदेशक हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय से एनजीओ के खिलाफ शिकायत मिलने के बाद सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज की है, जिसमें विदेशी चंदा (नियमन) अधिनियम, 2010 की धाराओं को भी शामिल किया गया है।प्राथमिकी में आईपीसी की धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक षड्यंत्र से निपटने वाली धाराओं के तहत भी आरोप है । प्राथमिकी में एनजीओ के अज्ञात पदाधिकारियों एवं उससे जुड़े लोगों और अज्ञात लोकसेवकों एवं अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया है।
गृह मंत्रालय (एमएचए) के एक अवर सचिव अनिल कुमार धस्माना द्वारा 15 मई 2019 को की गयीशिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज़ किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि एनजीओ ने अपने उद्देश्यों में उल्लिखित गतिविधियों के लिए प्राप्त विदेशी योगदान को दूसरी गतिविधियों में खर्च कर दियाहै। इस धन को व्यक्तिगत खर्चों में उपयोग किया गया है ।
मई 2019 में उच्चतम न्यायालय ने सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह के खिलाफ दायर जनहित याचिका को लेकर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर से भी इस संबंध में जवाब मांगा था।याचिका में अडिशनल सॉलिसिटर जनरल रहीं इंदिरा जयसिंह पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने इस अहम और संवेदनशील पद पर रहने के दौरान विदेशों से फंडिंग हासिल की थी। इंदिरा जयसिंह 2009 से 2014 में यूपीए सरकार के दौरान अडिशनल सॉलिसिटर जनरल थीं।’लॉयर्स वॉइस’ ने गृह मंत्रालय के 31 मई, 2016 और 27 नवंबर, 2016 के आदेश का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि जयसिंह और आनंद ग्रोवर ने विदेशी चंदा अधिनियम का उल्लंघन कर धन हासिल किया। इसके अलावा दोनों ने देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश करते हुए सांसदों और मीडिया के साथ लॉबिंग कर कई महत्वपूर्ण निर्णयों और नीति निर्धारण को प्रभावित करने की कोशिश की। याचिका में कहा गया है कि यह सब कुछ तब किया गया, जब इंदिरा जयसिंह अडिशनल सॉलिसिटर जनरल के पद पर थीं। इस पद पर तैनात व्यक्ति अपनी कानूनी राय के जरिए सरकार के नीतियों को प्रभावित कर सकता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में जांच कराने में असफल रही है।
एनजीओ ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ ने उन सारे आरोपों को खारिज किया था । एनजीओ ने अपने ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा था कि हमें 2016 के बाद से किसी प्रकार की कोई फंडिंग नहीं मिली थी,क्योंकि लॉयर्स कलेक्टिव का विदेशी अनुदान पंजीकरण (एफसीआरए) गृह मंत्रालय ने रद्द कर दिया था। एनजीओ ने कहा है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इंदिरा जयसिंह उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ़ यौन उत्पीड़न के मामले में इन हाउस इंक्वायरी कमेटी की जांच के तरीकों की आलोचना की थी।एनजीओ ने जारी किए गए बयान में कहा कि अदालती कार्रवाई के दौरान हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने किसी तरह के अंतरिम आदेश को मौखिक रूप में नहीं मांगा था, फिर भी उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश पारित किया है कि याचिका का लंबित होना इस मामले में किसी भी तरह से सरकारी एजेंसियों के लिए बाधा नहीं बनेगी।
इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर और लॉयर्स कलेक्टिव के ट्रस्टियों ने प्राथमिकी दर्ज करने के केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के कदम पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है।सीबीआई द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी पूरी तरह से विदेशी चंदा (नियमन) अधिनियम, 2010 के तहत कार्यवाही पर आधारित है जिसमें लॉयर्स कलेक्टिव का रजिस्ट्रेशन 2016 में गृह मंत्रालय द्वारा रद्द कर दिया गया था। लायर्स कलेक्टिव ने इस कार्रवाई को बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी है और याचिका अभी लंबित है।
लायर्स कलेक्टिव ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि यह एफआईआर भाजपा से जुड़े एक संगठन लायर्स वायस द्वारा उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर करने के बाद दर्ज करायी गयी है। इसमें नीरज नाम का एक शख्स शामिल है, जो दिल्ली भाजपा के लीगल सेल का प्रमुख है।लायर्स कलेक्टिव ने कहा है कि पीआईएल के लिए जरूरी पैन कार्ड तक इस संगठन के पास नहीं है फिर भी इसकी जनहित याचिका पर सनोटिस जारी किया किया है।
लायर्स कलेक्टिव कहा है कि हाल के दिनों में उसने भीमा कोरेगांव और पश्चिम बंगाल के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार का मामला उठाया था जो राजनीतिक तौर पर बेहद ही संवेदनशील मामले थे। और अब इन मामलों को लेकर ही उसे निशाना बनाया जा रहा है। यह सब कुछ 2016 से चला आ रहा है और हर चीज रिकार्ड पर है। ऐसे में सवाल है कि आखिर 2016 से 2019 के बीच ऐसी क्या हो गया जिसमें गृहमंत्रालय को यह कदम उठाना पड़ा। संगठन का कहना है कि वो हर फोरम पर कानून के मुताबिक अपनी रक्षा करेगा।
1981 में शुरू हुए लायर्स कलेक्टिव की वेबसाइट में लिखा है कि यह ऐसे वकीलों का समूह है जिसका मिशन हाशिए पर मौजूद समूहों को कानून के प्रभावशाली उपयोग और मानवाधिकारों की वकालत, कानूनी सहायता एवं मुकदमे के जरिए सशक्त बनाना और उनकी स्थिति बदलना है।
madan kumar tiwary
June 19, 2019 at 9:26 pm
इन दोनों को जेल होना चाहिए, विदेशी फंडिंग का उपयोग देश मे वैमनस्यता फैलाने जैसा घृणित कार्य करने वालों के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी कड़े कदम उठाने चाहिए, कोई भी वकील आखिर क्यों इस तरह की फंडिंग चाहेगा ? आश्चर्य है, ये हरामखोर खुद को नामी वकील कहते हैं और काम क्षुद्र वाला करते हैं ।