आशीष अंशु-
पत्रकार सुरक्षा और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे शब्द गैर भाजपा शासित राज्यों में क्यों खोखले साबित हो जाते हैं? ऐसे मामलों पर प्रेस क्लब और एडिटर्स गिल्ड की चुप्पी भी हैरान करने वाली होती है और उनकी विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाती है।
वे जब अर्णब की गिरफ्तारी पर खामोश हो जाते हैं और द वायर जैसे फ्रॉड संस्था के पक्ष में बोलते हैं तो निश्चित तौर पर एक दिन ऐसा आना तय है, जब अपने कहे के लिए ऐसी संस्थाओं को शर्मिन्दा होना पड़े। पिछले दिनों एडिटर्स गिल्ड वह दिन देखना पड़ा, जब अमित मालवीय के मामले में वायर द्वारा फैलाए गए झूठ पर दिए गए बयान को लेकर उसे सफाई देनी पड़ी। पत्रकारों के पक्ष में खड़े होने का दावा करने वाली संस्थाएं इतनी सेलेक्टिव होकर काम करेंगी तो कैसे बात बनेगी?
छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार द्वारा लिखने पढ़ने वालों का जिस प्रकार से उत्पीड़न किया जा रहा है। यह किसी से छुपी हुई बात नही है। न्यूज टुडे से मिली जानकारी के मुताबिक ताजा मामला स्टेटसमेन के पत्रकार अजय भान सिंह और स्वंतत्र पत्रकार आलोक पुतुल समेत लगभग आधा दर्जन पत्रकारों से जुड़ा है। ये पत्रकार बघेल साहब को हजम नहीं हो रहे हैं। वैसे बघेल सरकार ने पहले भी झूठे मामलों में फंसाकर कई लिखने पढ़ने वालों का जीवन सांसत में डाला है। छग सरकार की योजना इन पत्रकारों को भी ऐसे ही किसी मामले में डालकर परेशान करने की है।
क्या पत्रकारों की कोई संस्था छत्तीसगढ़ में सक्रिय है, जो वहां की स्थिति पर दो शब्द कह सके या सब तरफ खामोशी ही है।
विजय सिंह
December 3, 2022 at 10:40 am
छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार यूनियन संज्ञान लेकर मामले पर पहल करें।