वाराणसी। नमामी गंगे के जरिये गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने की मुहिम चल रही है। करोड़ों की फंडिंग और मैली गंगा को साफ कर देने के सरकारी दावे बजते ढोल के पोल की तरह हैं। यहां घाटों पर घूमते हुए सारा सच समझ में आता है। दशकों पहले लिखी चकाचक बनारसी की कविता ‘गंगा प्रदूषण’ की पंक्तियाँ ज़ेहन में चलने लगती हैं।
गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए चली तमाम योजनाओं के छिद्रों की ओर इशारा करते हुए ये कविता बताती है कि देखिए कैसे मां गंगा प्रदूषण में डूब रही हैं और इससे जुड़े लोग तर होते चले आ रहे हैं….
गंगा प्रदूषण
किस्मत से उनके भयल पानी गंदा,
सुरू हउवै खाये कमाये कऽ धंधा,
विदेसन से कुल आ रहल हउवै चंदा,
पड़ी नाहीं कब्बो ई रोजगार मंदा।
जे-जे जुड़ल हउवै काटत हौ चानी
कहा गंगा जल कहाँ गन्दा पानी।
सिरमिट पुराना हौऽ बालू हौऽ ताजा,
नये घाट कऽ होथौ निर्मान राजा।
एक बाढ़ में ओकर बज जाई बाजा,
बनऽला ई कुल योजना पी के गाजा।
नादानी न हौऽ ई हौऽ बुद्धिमानी
कहाँ गंगा जल कहाँ गन्दा पानी।
लगल बुद्धि एही में कुल एकजाई,
कि रूपिया करोड़न हौऽ कइसै ऐके खाई।
समझ में ई हमरे भी आवत नाहीं भाई,
कि गंगा कऽ करिहैं सब कइसे सफाई
सच हो थौ कबिरा कऽ कुल उल्टी बानी
कहॉ गंगा जल और कहॉ गन्दा पानी।
प्रदूषण हौऽ ओम्मन भी उत्सव मनतऽ हौऽ
गंगै में गंगा-महोत्सव मनत हौऽ
अधिकरियन कऽ राजा चौतल्ला तनत हौऽ
मंत्रियन कऽ राजा भितरै छनत हौऽ
ई बड़का प्रदूषण के रोकऽ त जानी।
कहॉ गंगा और कहॉ गन्दा पानी।
गिरत हउवै गंगा में नाला ऊ रोकाऽ,
बहावै जे मुरदा ओके बढ़के टोकाऽ।
मिल, कारखाना कऽ पानी न झोकऽ,
घाटे पर सबुनी करे ओके ठोकऽ।
करऽ कुछ प्रदूषण कहऽ मत जवानी।
कहा गंगा जल कहॉ गन्दा पानी।
-चकाचक बनारसी
प्रेषक-
भास्कर गुहा नियोगी, वाराणसी
मोबाइल नंबर 09415354828
[email protected]
Indra bhushan
April 21, 2018 at 6:54 pm
Pls send thiS poem to modiji and yogi ji