बड़े बैनर के मीडिया संस्थानों ने 40 के बाद की भर्ती बन्द कर दी है. ये नए जमाने का नियम है. ये मीडिया मालिकों का अपना नियम है. ये मीडिया मालिक खुद को कानून से परे मानते हैं. यही कारण है कि इनके यहां जो 50 पार के पत्रकार बचे हैं, उन्हें निकालना भी शुरू कर दिया है.
इसके चक्कर में कई माँ सरस्वती के ईमानदार खबरनवीसों पर भी गाज गिरी और गिर रही है. क्यों… इसका कारण है कथित रैकेट वाला पत्रकार मालिकों के चरणों मे घुसा हुआ है और चापलूसी से दूसरे अपने साथी पत्रकारों को नीचा दिखा रहा है. आज दिल्ली में करीब 150 से ऊपर नामी पत्रकार दयनीय स्थिति में पहुच चुके हैं. मजीठिया वेज बोर्ड को कानून के सहारे छोड़कर मालिक मजे ले रहे हैं और ईमानदारी से काम करने वालों को निकाल फेंका जा रहा है.
मोदी सरकार, कर्नल राठौर साब इनके बारे में कुछ सोचो, जागो. सारे नियम कायदे का उल्लंघन मीडिया हाउसेज करते हैं पर उन पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है. आखिर सत्ता की पूंछ क्यों इन मीडिया हाउसेज से दबी रहती है. कहीं सरकारें मीडिया का अपने हित में भोंपू की तरह इस्तेमाल करके उन्हें नियम कानून उल्लंघन करने का खुला छूट तो नहीं दे देती हैं…. इस पर भी सोचना होगा. जब तक मीडियाकर्मियों की तगड़ी एकजुटता नहीं होगी, तब तक सरकारें और मालिक उन्हें उल्लू समझते रहेंगे.
लेखक प्रदीप महाजन दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Comments on “मीडिया में अब चालीस पार के लोगों की भर्ती बंद!”
सर, आपसे तो एक बिनती है। बस इसके लिए तो एक हि रास्ता है, जिस मीडिया के दम पर 2014 में मोदी सरकार आयी है उसे 2019 में दिखाया जाए कि देश का चौथा आधार स्तंभ क्या होता है। अभी से अगर सभी मजेठिया क्रांतिकारी एक होकर बीजेपी विरोधी नारा लगाया जाए तो तीन महीने के अंदर बीजेपी की हालात देख लेना। वैसे भी फिलाल देश का मूड बी जे पी के विरोध में हि चल रहा है ।देश का किसान,रास्ते पे उतर सकता है,मराठा आरक्षण के लिऐ रास्तेपे उतर रहा है तो हर कोई अपना हक पानें के लये रास्ते पर उतरकर सरकार को झुका सकते है,तो फिर देश का चौथा आधारस्तंभ कहा जाने वाला पत्रकार कब तक ये गांधी गिरी की लढ़ाई लड़ता रहेगा। लोग आपने माँ का दूध पीकर अपनी माँ का दूध का कर्ज उतारते हैं लैकिन ये मोदी सरकार मीडिया मालिको का साथ देकर 2014 का मीडिया मालिको का कर्ज उतार रहे है।
जय हो मजेठिया
Sahi bol rahe par samane kaun aa raha hai …isake liye majboot … Shakti ki jaroorat hai…
यह सत्य है। बड़ी संख्या मे ऐसे संवाददाता हैं, जिनकी अखबारों मेंं लिखते लिखते जवानी बीत गई। जब उम्र ढलने लगी और अन्य काम करनेवाले नही रहे,तब अखबार से उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद उनके परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट है। यह बहुत अहम मुद्दा है,इसपर भारत सरकार को कोई शीघ्र कठोर नियम बनाना चाहिए।
Uttrakhand ki puri Janta reservation maang rahi hai kaunki uttrakahand ek schdule tribe state hai at least hilly district toh hai. Please also write for them as well. regards