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जीएसटी के खिलाफ लगातार लिखने वाले पत्रकार संजय कुमार सिंह की फर्म का चालू खाता बैंक ने ब्लॉक किया

जीएसटी की प्रयोगशाला की अपनी अंतिम किस्त लिख चुका हैं. यह 100 वीं किस्त है. इसी दरम्यान पता चला कि एचडीएफसी बैंक ने केवाईसी के चक्कर में (मतलब, जीएसटी जैसा कोई पंजीकरण हो) मेरी फर्म का चालू खाता ब्लॉक कर दिया है जबकि नियमतः मुझे किसी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अब आयकर रिटर्न व टीडीएस चालू खाता चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। फिर भी हमें डिजिटल लेन-देन करना है। अभी उससे निपटना है।

जीएसटी की प्रयोगशाला की अपनी अंतिम किस्त लिख चुका हैं. यह 100 वीं किस्त है. इसी दरम्यान पता चला कि एचडीएफसी बैंक ने केवाईसी के चक्कर में (मतलब, जीएसटी जैसा कोई पंजीकरण हो) मेरी फर्म का चालू खाता ब्लॉक कर दिया है जबकि नियमतः मुझे किसी पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। लेकिन अब आयकर रिटर्न व टीडीएस चालू खाता चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। फिर भी हमें डिजिटल लेन-देन करना है। अभी उससे निपटना है।

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जीएसटी पर लिखना मैंने 50 किस्त के बाद ही बंद करना सोचा था पर इतना मसाला था कि 100 किस्तें हो गईं। कुछ और व्यस्तताओं के कारण मैंने जीएसटी की प्रयोगशाला बंद कर दी पर जीएसटी की ही सख्ती में मेरा अकाउंट ब्लॉक हो गया है। मैंने पहले भी कई बार लिखा है कि जीएसटी में छूट का अपेक्षित लाभ नहीं मिलेगा उल्टे इसका दुरुपयोग हो सकता है और छूट देने के अधिकारों का चुनावी लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। असल में अंतिम लाभार्थी तक कोई लाभ नहीं पहुंच रहा है।

जीएसटी से मेरी शिकायत यही है कि पहले 10 और अब 20 लाख रुपए प्रतिवर्ष तक के कारोबार को जब जीएसटी से मुक्त रखा गया है तो कंप्यूटर पर काम करने के कारण या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) दिल्ली के गाजियाबाद में रह कर दिल्ली और गुड़गांव के काम कंप्यूटर से करके ई-मेल से भेजने के कारण मुझपर जीएसटी की बाध्यता क्यों हो। यह तकनीक का उपयोग नहीं करने देना है। तकनीकी रूप से इसका कोई मतलब नहीं है। व्यावहारिक तौर पर यह संभव ही नहीं है और पहले भी ऐसी कई कोशिशें नाकाम होती रही हैं पर अभी उस विस्तार में नहीं जाउंगा। फिलहाल राहत की बात यही है कि सरकार ने इन पर छूट दे दी है और अब मेरे जैसे मामलों में जीएसटी पंजीकरण की कोई तकनीकी बाध्यता नहीं है। लेकिन बैंक वालों को यह कौन समझाएगा? लकीर के फकीरों ने मेरा (असल में मेरी पत्नी की फर्म का) खाता ब्लॉक कर दिया है।

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कारण यह है कि हमलोग घर से काम करते हैं और घर हमारा अपना है। अगर किराए का होता तो हम मकान मालिक से किराए का करार अपनी फर्म के नाम से करते और बैंक उस करार के आधार पर मान लेता कि मैं अपने किराए के घर से ही अपना कारोबार करता हूं। पर चूंकि घर मेरा अपना है इसलिए ऐसा कोई करार नहीं कर सकता और जरूरत नहीं है तो किराए पर ऑफिस के लिए जगह क्यों लूं? इसी तरह, अगर मैं घर से दुकान चला रहा होता (जो गलत है पर देश भर में खुलेआम चल ही रहे हैं) तो नगर निगम से दुकान और प्रतिष्ठान प्रमाणपत्र या व्यापार लाइसेंस ले लेता – अभी भी ले सकता हूं पर नहीं है इसलिए खाता ब्लॉक है क्योंकि उस पर पैसे (रिश्वत कहिए) खर्च नहीं किए हैं।

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बैंक ने ऐसे तमाम दस्तावेजों की सूची दी है जो तीन समूहों में है और मौखिक रूप से कहा गया है कि हरेक समूह का एक दस्तावेज चाहिए। समस्या हमारी इकाई की पहचान और पते को लेकर है क्योंकि हमारे मामले में ऐसे किसी दस्तावेज (दरअसल पंजीकरण) की आवश्यकता नहीं है और हम पर दबाव डाला जा रहा है कि हम कोई पंजीकरण कराएं और उसके नियमों में बंधें। लालफीताशाही के नियंत्रण में आएं। ऊपर मैंने कुछ उदाहरण दिए हैं और जो बाकी विकल्प हैं उनकी चर्चा करें तो आप पाएंगे कि देश में (दरअसल बैंक में) छोटा-मोटा प्रोपराइटरशिप कंसर्न चलाने से आसान है एचयूएफ चलाना। एचयूएफ यानी हिन्दू अविभाजित परिवार। कुछ लोग कहते हैं कि यह सुविधा हिन्दुओं के तुष्टिकरण के लिए है। यहां मैं उस विस्तार में नहीं जाउंगा पर इसकी तुलना प्रोपराइटरशिप कंसर्न से करके बताउंगा कि बाप-दादा के धन पर ऐश करना तो वैसे ही आसान है एचयूएफ की सुविधाएं उसे भोगने की पूरी व्यवस्था करता है और बैंकों ने प्रोपराइटरशिप कंसर्न को उसी के मुकाबले रखकर काम करके पैसा कमाना मुश्किल बना दिया है या बना रहे हैं।

एंटाइटी यानी इकाई के सबूत के रूप में सोल प्रोपराइटरशिप कंसर्न या एचयूएफ से एक ही दस्तावेज मांगे जाते हैं जैसे बिजली, पानी, लैंडलाइन फोन का बिल जो इकाई के नाम पर हो। एचयूएफ के मामले में यह कर्ता यानी परिवार के मुखिया के नाम पर ही होगा और यही पर्याप्त है पर प्रोपराइटरशिप कंसर्न के मामले में यह कंसर्न के नाम से चाहिए। कंसर्न के मुखिया के नाम से नहीं चलेगा। इसी तरह जो भी दस्तावेज बताए गए हैं वे मेरे मामले में आवश्यक नहीं हैं इसलिए नहीं हैं और खाता ब्लॉक है (हालांकि उसमें बहुत पैसा नहीं है)। खास बात यह है कि बैंक इस बात की जांच खुद नहीं करेगा और उसकी चिट्ठियां इस पते पर डिलीवर हो रही हैं पर वह पर्याप्त नहीं है। बैंक वाले आकर भी जांच नहीं करेंगे और ना यह कहने या लिखकर देने से मानेगें कि हम जहां रहेते हैं वहीं से अपना काम भी कर लेते हैं। इसलिए जय जय।

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लेखक संजय कुमार सिंह ने जनसत्ता अखबार की नौकरी के बाद 1995 में अनुवाद कम्युनिकेशन AnuvaadCommunication.com की स्थापना की. बहुराष्ट्रीय निगमों और देसी कॉरपोरेट्स के साथ देश भर की तमाम जनसंपर्क व विज्ञापन एजेंसियों के लिए काम करते हुए संजय काफी समय से सोशल मीडिया पर ज्वलंत मुद्दों को लेकर बेबाक लेखन भी करते हैं. संजय से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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पूरे प्रकरण को जानने-समझने के लिए इन्हें भी पढ़ें…

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0 Comments

  1. sanjay kumar singh

    December 15, 2017 at 9:31 am

    अंधेर नगरी, चौपट राजा, डरपोक बैंक वाले
    मेरी फर्म के चालू खाते को ब्लॉक करने का जो कारण बताया गया है वह मैं बता चुका हूं। 21 साल पुरानी फर्म या कई बैंकों में खाता चल चुकने के बाद अब फर्म या एंटाइटी के होने का सबूत चाहिए – कागजी। बैंक इसकी जांच नहीं करेगा। स्वयं इसकी पुष्टि नहीं करेगा। उसके पास उसी के दूसरे खातों से (भी) पैसे आ रहे हैं (थे), वह चेक हमारे पते पर कूरियर से भेज रहा है, हमारा आधार कार्ड पैन कार्ड सब है। अपना फ्लैट है। वहीं से काम करता हूं पर बैंक को यकीन नहीं है। भक्तगण सब्जी वालों के खाते खुलवा रहे थे। नेटबैंकिंग करा रहे थे। स्वाइप मशीन चलवा रहे थे। सब होने पर मेरा नहीं चल रहा है। वैसे, बैंक को क्या दोष दूं। एचडीएफसी बैंक में खाता तो 2005 से चल ही रहा था। दोष 2014 में सत्ता में आई ईमानदार सरकार का है जिसे हर कोई चोर बेईमान नजर आ रहा है।
    खाता बंद है, बैंक ने इसकी कोई सूचना नहीं दी। बंद या ब्लॉक रहने की स्थिति में क्या होगा – कोई सूचना नहीं है। मैं समझ रहा था कि आने वाले पैसे आते रहेंगे मैं नकद जमा या निकाल नहीं पाउंगा। चेक जारी नहीं कर पाउंगा। बाद में पता चला कि नेटबैंकिंग से बैलेंस भी नहीं देख सकता यानी किसके पैसे आ गए, किसके नहीं आए यह जानने के लिए भी नहीं देख सकता। अब पता चला कि नेटबैंकिग से भी ट्रांसफर नहीं हो सकते। यानी जो पैसे आने हैं वो आ नहीं रहे। बैंक उन्हें लौटा दे रहा है या स्वीकार नहीं कर रहा है। यानी संकट गंभीर है। मैं समझ रहा था कि मै जरा अकाउंट ब्लॉक होने का आनंद उठा लूं, विकल्पों को जान समझ लूं फिर जब खाता खुलेगा तो पैसे मिल ही जाएंगे। पर बैंक जब पैसे ले ही नहीं रहा है तो मुझे देनदारों का हिसाब रखना होगा – यह अलग मुश्किल है।
    इस बीच पता चला कि बैंक को जो दस्तावेज चाहिए उनमें एक है पैन कार्ड की डिलीवरी का पत्र। अपन ने वह पत्र नहीं रखा है। बताया गया कि कार्ड में कोई करेक्शन हो, पुराना हो गया हो तो नया बनवा लीजिए। नए वाले का पत्र लगा दीजिए। हो गया काम। आप जानते हैं कि पैन कार्ड बनाने का काम अब निजी कंपनी करती है और नेट पर ही ऑर्डर दिया जा सकता है। मैंने नेट पर चेक किया। संबंधित पैन कार्ड घर के पते पर आया था। मेरा घर-ऑफिस एक ही है। मैंने कहा पैनकार्ड में घर के पते को ऑफिस का करा लिया जाए। झंझट खत्म हो जाएगा। मैंने नेट पर आवेदन करना शुरू किया जानते हैं घर में ऑफिस है इसके लिए पैनकार्ड बनाने वालों को क्या सबूत चाहिए – बैंक का स्टेटमेंट!!! वही जो बैंक के पास है। बैंक अपना विवरण खुद नहीं मानेगा। उसके विवरण को पैनकार्ड जारी करने वाले मान लेगा और फिर उसे बैंक मान लेगा। जय हो। जय जय।
    पुराने जमाने में शायद इसी को कहा जाता था – अंधेर नगरी, चौपट राजा।

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