आजकल किसी भी न्यूज चैनल में साक्षात्कार आईएएस या आईपीएस के साक्षात्कार से भी बड़े स्तर का लिया जाता है। पहले तो चेला टाइप के लोग साक्षात्कार लेते हैं फिर उनसे ऊपर वाले फिर उनसे ऊपर वाले…. अंत में आता है फाइनल राउंड का नंबर… सबकुछ क्लियर रहता है… फाइलन में पता चलता है कि चैनल का बजट कम है…. ऐसे में यह समझ नहीं आता कि मीडिया संस्थान अंधे होते हैं या बहरे…. साक्षात्कार से पहले एक चार पन्नों की कैपिटल कॉपी पकड़ाई जाती है। उसमें आवेदक को खुद से जुड़ी सारी जानकारी देनी होती है… इसमें एक कॉलम होता है कि लास्ट सैलरी…. और सैलरी एक्सपेक्टेशन की… इसमें कर्मचारी अपना “सपना” यानि वह जितनी सैलरी चाहता है वह लिखता है।
अब ऐसे में यह समझ नहीं आता कि जब उस आवेदक को देने के लिए चैनल के पास बजट नहीं है तो उसे इसकी जानकारी पहले राउंड से पहले क्यों नहीं दी जाती? क्यों उसे दो-दो तीन-तीन बार संस्थान के चक्कर इंटरव्यू के नाम पर लगवाए जाते हैं। संस्थान पागल होते हैं या फिर वह कर्मचारियों को पागल समझते हैं।
कुछ ऐसा ही हुआ आज मेरे साथ न्यूज वर्ल्ड इंडिया में! तीन महीने पहले मेरा साक्षात्कार लिया गया था। संदीप जी जो एचआर डिपार्टमेंट में हैं उन्होंने मेरा प्रोफाइल सेलेक्ट किया था। लगभग 6 राउंड इंटरव्यू लिया गया। एक के बाद एक टॉप लेवल पर इंटरव्यू होता रहा। नाम नहीं लिखूंगा किस किसने इंटरव्यू लिया। अपराध, खेल-कूद, राजनीति यानि हर तरह के फील्ड से सवाल जवाब किए गए मुझसे। सभी सवालों का जवाब साक्षात्कार लेने वालों को बिना उनका सवाल पूरा होते देता चला गया। सब इम्प्रेस थे…. फिर मेरी बदकिस्मती शुरू हुई जिन्होंने इंटरव्यू लिया था उन्हें हटा दिया गया। मेरा फिर से इंटरव्यू लिया गया, इस बार भी मैं मैदान मार ले गया।
अब बारी थी फाइनल की! फाइनल में हिस्सा लेने पहुंचा तो उस डिपार्टमेंट के लिए मेरा अकेले का सेलेक्शन हुआ था। बारी थी ग्रुप एचआर से सैलरी डिसकसन की। सामने थे इश्तियाक खान (ग्रुप एचआर) उन्होंने मुझे देखा और बोले कैसे हो बेटा? मैने भी शालीनता से जवाब दिया- अच्छा हूं सर। अगला सवाल था- क्या कर रहे हो आजकल? मैंने जवाब दिया कि सर अपना काम ही कर रहा हूं, ट्रांसपोर्ट का और अपने अखबार व वेबसाइट का। उनका अगला सवाल था- सैलरी क्या लोगे? मैंने उनके द्वारा मेरे लिए दो साल पहले जो निर्धारित किया गया था (नेशनल वॉयस) में काम करने के दौरान, मैने उन्हें याद दिलाया। उन्हें भी याद आया।
उसके बाद उन्होंने मुझे कहा कि बेटा आपको एक बार और बुलाऊंगा, आ जाओगे। मैंने शालीनता से कहा क्यों नहीं सर! जरूर आऊंगा। फिर मेरे पास संदीप जी का फोन 22 जनवरी 2018 को शाम करीब 6 बजे आता है। उनका भी वही सवाल कितने में ज्वाइन कर लोगे? मैंने जवाब देना उचित नहीं समझा। इस बार मैंने ही सवाल पूछ लिया कि आपकी चैनल की हैसियत क्या है? वह मेरे प्रोफाइल के लिए क्या दे सकता है? उसके बाद उन्होंने जो बजट बताया पहले तो मेरे माथा ठनका फिर मैंने सोचा कि ज्वाइन कर लेता हूं, लोकसभा चुनाव सर पर है, कहीं ना कहीं छलांग लगा ही दूंगा अगर फार्म में रहा।
23 जनवरी को इलाहाबाद से वापस आकर मैने संदीप जी को फोन किया फिर उनसे पूछा क्या हुआ मेरे प्रोफाइल का? अगले पल संदीप जी बिल्कुल किंकर्तव्यमूढ़ हो गए थे। उन्होंने दबे मन से जवाब दिया आपका सेलेक्शन नहीं हो पाएगा। मैंने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मेरे हाथ में सब नहीं होता। अगर टीवी 24 यानि नेशनल वॉयस के पहले वाले मालिक और न्यूज वल्ड इंडिया में कुछ दिन के मेहमान बिजेंदर जी के पास कोई जुगाड़ लग जाए या बिजेंदर जी का कोई चमचा आपकी मदद कर दे तो आपका सेलेक्शन हो जाएगा।
मेरा माथा ठनका। मैंने अपने गुस्से को नियंत्रित किया और संदीप जी से बोला कि संदीप जी मैं आपकी इज्जत करता हूं.. इसलिए कोई बात नहीं… वर्ना जो सैलरी आपने ऑफर की है वह किसी अच्छे संस्थान में असिसटेंट प्रोड्यूसर की है। अब रही बात चमचों की तो प्रभु चावला जी से जो आपके यहां ज्वाइन किए हैं, कभी उनसे मेरे काम के बारे में पूछना, शायद आपसे वह यही कहेंगे कि मेरी ज्वाइनिंग कराई जाए। लेकिन शायद अब मैं न्यूज वर्ल्ड इंडिया की तरफ कभी थूकने भी नहीं आऊंगा।
यहां मैं एक बात और बता दूं। जब नेशनल वॉयस के पूर्व मालिक आदरणीय श्री विजेंद्र सिंह जी भारत समाचर के मालिक ब्रजेश मिश्रा को मिठाई खिलाकर अपना चैलन दो महीने के लिए बेच रहे थे और नेशनल वॉयस में काम कर रहे कर्मचारी उन्हें फोन करके गालियां दे रहे थे तो वह पहली कॉल मेरी थी जिसने उन्हें ढांढस बंधाया था और बोला था कि आप जो भी कर रहे हैं अच्छा कर रहे हैं, अपने मन की करनी चाहिए कौन क्या बोल रहा है ध्यान मत दीजिए! जवाब में बिजेंदर सिंह ने मुझे शुक्रिया कहा था और कहा था कि काश, आपकी तरह उनकी पीड़ा लोग समझ पाते कि जब वह (विजेंदर चौधरी) चैनल नहीं चला पा रहे हैं तो उसे बेच रहे हैं। वह मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं। मैने बिजेंदर को सांत्वना दी और फोन रख दिया।
उसके बाद जब नेशनल वॉयस के कुछ कर्मचारी इश्तियाक जी (मौजूदा ग्रुप एचआर न्यूज वर्ल्ड इंडिया) को मालिक का चमचा बताकर हंसी उड़ा रहे थे तो सबसे पहले मैं ही उनके केबिन में गया था और गले लगाकर बोला था कि सर! लोग गुस्से में हैं, नौकरी गई है, किसी की बात का बुरा मत मानो। इश्तियाक जी ने जवाब में कहा था कि बेटा मेरी क्या गलती है? मैं भी नौकर ही हूं मालिक का, जैसे आप लोग थे। अब मालिक चैनल बंद कर रहा तो इसमें किसकी क्या गलती है? मैंने फिर इश्तियाक जी को गले लगाया। उन्होंने एक बड़े भाई की तरह मुझे प्यार दिया और नेशनल वॉयस से मुझे विदा किया।
ऐसे में साला अब यह समझ नहीं आ रहा कि ये रिफरेंस क्या होता है? या पहुंच क्या होती है? मैंने सारा इंटरव्यू क्लियर किया। किसी को पता ही नहीं लगने दिया जबकि मेरा एक खास मित्र न्यूज वर्ल्ड इंडिया में ही काम कर रहा है। उसे भी नहीं पता लगने दिया कि मैने इंटरव्यू दिया है।
बहरहाल मेरा ऐसा मानना है कि जो कभी बिजेंदर सिंह और इश्तियाक जी को गाली दे रहे थे, उनके साथ हो गया होता तो आज उनके साथ न्यूज वर्ल्ड इंडिया या फिर टीवी 24 में किसी अच्छे पद पर होता ही। बहरहाल, यहां मालिक की नहीं बल्कि “चमचों” की कमी खली है। कहीं पढ़ा था, शायद किसी गाड़ी के पीछे:
मालिक तो महान है पर चममों से परेशान है!
सत्य है!
एके शुक्ला
मोबाइल नंबर-+91-9205441184
Sidharth
January 25, 2019 at 8:18 pm
निजी क्षेत्रों में स्वभाविक है, शायद इसी को मजबूरी और नौकरी कहते हैं। मिल गया तो नौकरी, ‘नौकरी’ हो जाता है। नहीं मिलता तो बेरोजगारी का टैग तो है ही।