नोएडा में पांच पत्रकारों पर गैंगस्टर लगाए जाने के बाद ताजी सूचना है कि इन पांच में से एक चंदन राय के खिलाफ पुलिस ने कई नए मुकदमों को दर्ज कर लिया है. चंदन के साथ-साथ उनके भाई को भी आरोपी बनाया गया है. इस बारे में अखबारों में छपी खबर पढ़िए…
इस बीच, कई लोगों ने चंदन राय को फर्जी पत्रकार बताने पर आपत्ति की है. नोएडा के एसएसपी से लेकर अखबारों तक में गिरफ्तार पत्रकारों को फर्जी बताया-लिखा जा रहा है. इसी मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार मनीष सामंत की ये टिप्पणी पढ़िए-
12 साल से पत्रकारिता करने वाला फर्जी पत्रकार कैसे?
मनीष सामंत
पुलिसिया कहानी चाहे सच्ची हो या झूठी, उसे उसकी जुबान और अंदाज में ज्यों का त्यों बयान करना या छाप देना कितना जायज है? अगर कहानी सच हो तो कोई बात नहीं लेकिन अगर पुलिस की कहानी फेब्रिकेटेड हो तो बात गंभीर हो जाती है। किसी की सालों की मेहनत और सामाजिक स्थिति क्षण भर में भरभरा जाती है। पुलिस मीडिया न्यूज वेब पोर्टल के संस्थापक चंदन राय के साथ कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। कुछ अधकचरे और चापलूस टाइप तथाकथित खबरनबीसों ने पुलिसिया एफआईआई और पुलिसिया जुबान को गीता और कुरान मान लिया और 12 साल से मुख्यधारा की पत्रकारिता कर रहे चंदन राय को फर्जी पत्रकार बता दिया और छाप भी दिया।
इन खबरनबीसों का दिमागी दिवालियापन ही कहिए कि नोएडा पुलिस ने जिस भाषा में और जिस अंदाज में चंदन राय के लिए जो कहा उन्होंने बिना तथ्यों को जांचे परखे यूं ही छाप दिया, इतना नहीं चंदन राय को फर्जी पत्रकार तक तमगा दे डाला। विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं और न्यूज चैनलों में 12 साल से निरंतर अपनी पत्रकारीय सेवा दे रहे चंदन राय को फर्जी पत्रकार बताने वाले खोखले खबरनबीसों को आखिर कौन समझाए? उन्हें समझाना आसान भी नहीं है क्योंकि उन्हें लिखना भी नहीं आता है, भला वो पुलिस की एफआईआर की भाषा और मंशा का असली मकसद और मीमांसा क्या जान पाएंगे? दरअसल पुलिस को असल खतरा चंदन राय और उन जैसे पत्रकारों से नहीं बल्कि इन जैसे खोखले खबरनबीसों से है जो पत्रकारिता की पवित्रता से खिलवाड़ कर रहे हैं। दरअसल पुलिस इस टाइप खबरनबीसों की आड़ में ही असली को नकली बताने का दुस्साहस दिखा पाती है। चैनल वन, एपीएन और टीवी9 समूह के लिए काम कर चुके चंदन राय को फर्जी पत्रकार बताने के पीछे पुलिस की मंशा तो समझ में आती है लेकिन पुलिस का अंध अनुसरण करने वालों को अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा तो होना ही चाहिए।
इसे भी पढ़ें-देखें :
कमलजीत सिंह
August 29, 2019 at 3:39 pm
पत्रकार पर किसी भी आरोप में मामला दर्ज हो यह माना जा सकता है.उसकी संलिप्तता हो यह बात मानने योग्य हो सकती है, लेकिन कोई भी व्यक्ति जो भले पोर्टल में लिखपढ रहा हो उसे प्रशासन फर्जी पत्रकार कैसे घोषित कर सकता है. माना जा सकता है पोर्टल की भरमार और अपरिपक्व लोगो के आ जाने से पत्रकारिता का हनन हुआ है लेकिन प्रशासन कैसे किसी को फर्जी पत्रकार कह सकता है. अपनी उपलब्धियों को गिनाने या फिर पुलिस प्रशासन बड़े बड़े खुलासे में अखबार से लेकर , न्यूज़ चैनल समेत न्यूज़ पोर्टल के लोगो को बुलाकर बकायदे चाय नाश्ता कराकर अपनी उपलब्धियां गिनाता है तो आखिर उस वक़्त उनकी पारखी नजर को लकवा क्यो मार जाता है. क्यो नही उन्हें रोक दिया जाता है जो प्रशासन की नजर में फर्जी है. लेकिन जब अपनी फंसती है सबसे पहले पत्रकार फर्जी हो जाता है. न्यूज़ चैनल को छोड़ दिया जाए तो आजतक किसी बड़े अखबार के बीट रिपोर्टर या फिर डेटलाइन लाइन रिपोर्टर के पास कोई पहचान पत्र तक नही होता है. न्यूज़ कवरेज के दौरान कोई बात हो जाये तो उसे अपना रिपोर्टर मनाने से इनकार कर दिया जाता है.ऐसे में तो वो भी फर्जी रिपोर्टर हो जाता है.प्रशासन के अधिकारी जो उस संवाददाता से कभी खूब बातें करते है वो भी उसे फर्जी कहने से गुरेज नही करेंगें . यह कोई सरकारी नौकरी नही है जो कि सबकुछ मिलेगा..ऐसे में तय करिये की कौन फर्जी है या कौन असल का है…