Sumit Kumar Bhartiya : कल सोशल मीडिया पर एक तसवीर वायरल हो रही थी जिसमें आज़तक संवाददाता Chitra Tripathiजी एक जुगाड़ नाव पर बैठी मुस्कुराती दिख रही थी और पानी मे चार पांच लोग उस जुगाड़ नाव को थामे कंधे तक पानी मे डूबे खड़े थे वो तस्वीर अलग अलग शीर्षकों के साथ वायरल हो रही थी तो बहती गंगा में हमने भी कुछ कटु शीर्षकों के साथ उसको पोस्ट कर दिया। पर जब खुद चित्रा त्रिपाठी ने उस तस्वीर की सच्चाई बयान की और फिर अपनी रिपोर्ट में उसको दिखाया तो अपनी पोस्ट को लेकर दिल खट्टा हो गया और रिपोर्टर होने के नाते उस वक़्त की मुश्किलों को समझते हुए माफी के साथ ये दोनों तस्वीरे लगा रहा हूँ और ट्रोलर्स को बताना चाहता हूं कि ये चित्रा द्वारा किया गया बाढ़ टूरिज़्म नही है। बल्कि बाढ़ पीड़ितों की सच्चाई को दुनिया के सामने लाने की कोशिश है जिसमे उन्होंने खुद कई मुश्किलों का सामना किया है। चित्रा जी आपसे किये गए वादे के अनुसार अपनी पुरानी पोस्ट को हटा रहा हूँ।
Sudhir Kumar Pandey : आनंद बक्षी साहब इस देश को गजब समझते थे तभी लिखा था ‘कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना’… लगातार देख रहा हूं कि Chitra Tripathi की एक तस्वीर पर बवाल मचा हुआ है । लोग इस पर गलत टिप्पणी कर रहे और इसे बाढ़ टूरिज्म का नाम दे रहे हैं । वैसे तो चित्रा जवाब देने में सक्षम हैं लेकिन कुछ मैं भी लिखना चाह रहा था। मान लीजिए कि चित्रा बिहार में रिपोर्टिंग करते करते ऐसी जगह पर पहुंच गई जहां से आगे जाने का रास्ता ना हो । जहां सरकार का कोई नुमाइंदा अपनी जिंदगी आफत में डालकर ना पहुंचना चाहता हो । जहां रह रहे लोग कब बह जाएं ये सिर्फ काल को पता हो । ऐसी स्थिति में रिपोर्टर क्या करेगा ? जो चालाक रिपोर्टर होगा वो कैमरामैन का हाथ पकड़कर पतली गली पकड़ लेगा और फिर कभी किसी को पता नहीं चल पाएगा कि ऐसा भी कोई गांव था जहां मौत ने डेरा डाला था और इसकी जानकारी सरकार को भी नहीं थी । दूसरी स्थिति चित्रा की है जिसने तय किया कि किसी भी तरह उस स्थान पर जाना है जहां लोग फंसे हैं । अब सवाल था तय तो कर लिया लेकिन वहां तक पहुंचें कैसे ? फेसबुक पर आलोचना कर रहे फैंटम लोग तो शायद बजरंग बली की शक्ति से लैस हैं जो एक छलांग मारते और सीधा बाढ़ को पार कर गांव में जा गिरते फिर स्पाइडर मैन की तरह अपने हाथ से चिपचिपा पदार्थ निकालते और कैमरामैन को भी खींच लाते लेकिन अफसोस चित्रा ठहरी साधारण इंसान तो फंस गई। चित्रा की मदद को गांव वाले सामने आ गए। गांव वालों ने ये भी नहीं सोचा कि सोशल मीडिया पर नैतिकता के जो ठेकेदार बैठे हैं वो क्या सोचेंगे ? गांव को तो मानो कोई मसीहा मिला था जो हर खतरे को इग्नोर करके भी उन तक पहुंचना चाहता था। गांव वालों को लगा कि कोई दिलेर रिपोर्टर आई है जो उनका दुख दर्द पटना और दिल्ली में बैठे नेताओं के आंख और कान तक पहुंचा सकती है। आलोचना कर रहे लोग तो इस उफनती बाढ़ में नाव पर बैठने से भी मना कर देते लेकिन चित्रा लकड़ी के फट्टे पर बैठ गई। फेसबुक आलोचक होते तो बाहुबली की तरह अपने हाथ से ही फट्टे को खिसका देते लेकिन चित्रा ठहरी साधारण इंसान इसलिए चार लोगों की मदद लेनी पड़ी जो इन आलोचकों को चुभ गई लेकिन इसके बाद चित्रा उस गांव में पहुंची जहां किसी ने कदम नहीं रखा था। उनकी तकलीफों से देश को वाकिफ कराया क्या ये कम साहसिक है? ये फोटो भी चित्रा ने क्लिक नहीं की है। सामने कैमरामैन रहा होगा जो शूट कर रहा होगा उसे भी सलाम। कैमरामैन ने जो फीड रिकॉर्ड की है ये फोटो वहां से आई लगती है जो रिपोर्टर और कैमरामैन के काम का हिस्सा भर है। चित्रा जिनकी मदद के लिए गई थी अगर उन्होंने चित्रा की मदद कर दी तो सोशल मीडिया के पेट में दर्द क्यों उठ रहा है ? चित्रा और उनके कैमरामैन ने जो हिम्मत दिखाई है उसे कोई दोहरा भी दे तो बड़ी बात होगी । सोशल मीडिया पर बैठकर रिपोर्टर पर उंगली उठाना बहुत आसान होता है । जब भी कोई रिपोर्टर ऐसी किसी त्रासदी से लौटकर आता है तो वो अपने साथ कितना दर्द समेटे होता है इसका अंदाजा सोशल मीडिया के बौद्धिक नहीं लगा सकते । बाढ़ में रिपोर्टिंग करना कितना भयावह है ये समझना कुछ लोगों के लिए मुमकिन नहीं है इसलिए उनसे बहस करने में फायदा नहीं । सिर्फ चित्रा ही नहीं बल्कि बाढ़ में रिपोर्टिंग करने वाला हर रिपोर्टर और कैमरामैन सम्मान का पात्र है क्योंकि ये अपनी जान को हथेली पर रखकर पानी की लहरों में उतरते हैं । अगर ये सच ना दिखाएं तो हमारी सरकारें और अधिकारी सब खत्म होने के बाद पहुंचे। रही चित्रा की बात तो मैं इनको पिछले कई सालों से जानता हूं । चित्रा वेटिंग टिकट पर रिपोर्टिंग करने चली जाती थी क्योंकि वो काम को तवज्जो देती है संसाधन को नहीं । चित्रा के काम और काम की नीयत पर कोई सवाल नहीं उठा सकता । मैं चित्रा के बहुत सारे शो का प्रोड्यूसर रहा हूं इसलिए देखी हुई बात बोल रहा हूं। काम के लिए जैसा समर्पण चित्रा के पास है वैसा विरले ही मिलता है । किसी के काम में प्लस माइनस हो सकता है आलोचना भी की जा सकती है लेकिन ग़लत नीयत से किसी की मेहनत को नकारना नहीं चाहिए।
Garima Tiwari : इस तस्वीर पर जो लोग कटु टिप्पणी कर रहे हैं और आजतक की पत्रकार Chitra Tripathi को पत्रकारिता पर धब्बा बता रहे हैं, लग रहा है उनकी खोपड़िया दिल्ली में ढंग से बारिश न होने के कारण गरमा गयी है. चित्रा जी को जिस गाँव में रिपोर्टिंग करने जाना था, उस गाँव तक पहुँचने का एकमात्र साधन यही था, इसलिए उन्हें मज़बूरी में इसका इस्तेमाल करना पड़ा, उनके चेहरे पर भले ही मुस्कराहट हो, लेकिन इस दौरान उन्हें भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जो लोग ये कह रहे हैं कि चित्रा जी इन 4 बेबस व्यक्तियों को अपना मजदूर समझ बैठी हैं और उनसे शारीरिक श्रम करवा रही हैं, तो बता दें ये शारीरिक श्रम ही इन लोगों की रोजी-रोटी है, ये कोई चित्रा जी के मजदूर नहीं है, बस अपना कार्य पूरी शिद्दत से कर रहे हैं. चित्रा जी की एक पहल से अब इस गांव में SDRF की टीम तैनात कर दी गई है. अब किसी भी बच्चे, गर्भवती महिला और बीमार व्यक्ति को इस साधन का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा. हफ्ते के भीतर उन्हें दरिया पार करने के लिए बोट भी मुहैया करा दी जायेगी. किसी की भी आलोचनात्मक पोस्ट से तुरंत प्रभावित होकर, बिना सत्य जाने, कुछ भी अंड-बंड रायता मत फैला दिया करिये!
Kunal Verma : एसी कमरे में बैठकर पत्रकारिता करने वाले और पत्रकारिता के पतन की दुहाई देने वाले Chitra Tripathi की जुगाड़ नाव पर बैठकर ग्राउंड रिपोर्टिंग को पब्लिसिटी स्टंट कह रहे हैं। इन काबिल पत्रकारों को एक बार मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और रून्नीसैदपुर के बाढ़ग्रस्त इलाके में भेज दिया जाए। गंडक, लखनदेई और बाघमती नदी में उतार दिया जाए। सब पता चल जाएगा। चित्रा त्रिपाठी ने जो साहस दिखाया है उसके लिए दिल से सलाम। जुगाड़ नाव जो केले के थम (केले का पेड़ जब कट जाता है तो बिहार में उसे थम या थंब बोला जाता है) से बनाई जाती है, उससे नदी पार करना कोई बच्चों का खेल नहीं। स्थानीय युवा इन्हीं नाव के जरिए सैकड़ों लोगों की जान बचाते हैं। जिन्होंने चित्रा की वह पूरी रिपोर्ट देखी होगी उसमें वो देख पा रहे होंगे कि वो इन युवाओं से पूछ भी रही हैं कि क्या आप इस तरह नदी पार कराने के पैसे भी लेते हैं। एक युवती जो अभी अभी मां बनी है उससे भी पूछ रही हैं कि कैसे उन्होंने रात के अंधेरे में जुगाड़ नाव से नदी पार की थी। तो हे पत्रकारिता पर ज्ञान बांटने वालों “आज तक” की पत्रकारिता का शुक्रिया करो कि उनके जरिये बिहार के बाढ़ की विभिषिका राष्ट्रीय स्तर पर देखी और सुनी जा रही है। बाढ़ का दर्द नदी किनारे से रिपोर्टिंग और सेल्फी खींच कर नहीं दिखाई जा सकती है। उस दर्द को दिखाने के लिए या तो जुगाड़ नाव से भीतरी इलाकों में जाना होता है या चित्रा जैसा साहस दिखाना होता है। तो हे ज्ञान बांटने वालों केले के थम पर सवार पत्रकारिता को सलाम करें कि जब तक यह थम है पत्रकारिता की साख डूब नहीं सकती।
Ajit Tripathi : चित्रा त्रिपाठी की इस तस्वीर को फ्लड टूरिज्म का नाम देकर लगातार वायरल किया जा रहा है,मगर सच्चाई ये है कि चित्रा एक साहसी और जमीन से जुड़कर रिपोर्टिंग करने वाली पत्रकार हैं,जिस जगह से बाकी संवाददाता, नेता, मंत्री जान का भय देखकर लौट आते हैं, चित्रा वहां जान लगा देती हैं… देहात की औरतों के साथ देसज शैली में संवाद करती हैं, उनसे जुड़ती हैं, उन्हें समझती हैं, सामने वाले की तकलीफ महसूस करके रिपोर्टिंग करती हैं, बिहार बाढ़ के जितने वीभत्स दृश्य तीन दिनों में चित्रा जी ने दिखाए, उतने दृश्य तीस दिन में चैनलों तक नहीं पहुंचे थे… दुर्गम जगहों पर पहुंचकर, डूबते कराहते लोगों की आवाज बनने के लिए शुक्रिया… मूर्खों पर ध्यान न दीजिए.. कुछ तो मूर्ख कहेंगे… मूर्खों का काम है कहना
Awadhesh Kumar : कुछ तो शर्म करिए. सोशल मीडिया पर ऐसे अज्ञानी, कुंठित और परनिंदा बीमारी से ग्रस्त लोगों का समूह खड़ा हो गया है जो बिना परिस्थितियों को समझे, संवेदनशीलता को दरकिनार कर किसी को भी खलनायक / खलनायिका, दोषी, पापी, अपराधी बना देता है। आजतक से Chitra Tripathi बिहार बाढ़ कवर करने गई हुई है। उसने वहां जिस तरह की कठिनाइयां झेलकर, जीवन को जोखिम में डालकर काम किया है उसके लिए उसका अभिनंदन किया जाना चाहिए। लेकिन कुछ लोग केले के थम से बने नाव पर उसे बैठे तथा पार कराते लोगों वाली तस्वीर पर न जाने क्या-क्या लिख रहे हैं। मैंने बाढ़ के बीच काम किया है। मुझे पता है कि कितनी विकट परिस्थितियां होतीं हैं। 20 कदम दूर कोई संकट में है तो वहां तक जाने की स्थिति नहीं होती। पानी से घिरे गांवों में आने-जाने के वही साधन हैं और वो कितना जोखिम भरा है यह पता तब चलेगा जब सोशल मीडिया के ये वीर वहां जाएंगे। पानी की धार और गहराई में हर पल आपके नीचे गिर जाने का खतरा रहता है। मैं स्वयं कई बार इस तरह के साधनों से बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में गया हूं। आपको हो सकता है पूरे दिन खाना नहीं मिले। उसमें वो उस गांव तक गई और वहां की भयावहता की रिपोर्टिंग की ताकि सरकार का तथाकथित मानवीय चेहरा दिखाया जा सके। आपदा प्रबंधन में दुनिया के स्तर पर पहुंचने का दावा करने वाले देश की यह हालत है कि लोगों के पास बचाव और राहत तो छोड़िए, आने-जाने के लिए एक सामान्य नाव तक की व्यवस्था नहीं। स्थानीय पत्रकार तो लिख रहे थे, लेकिन अगर Chitra Tripathi न जाती तो उसका पता देश को नहीं चलता। मैं अपनी निंदा, आलोचनाओं का प्रायः जवाब नहीं देता। किंतु इस प्रकरण ने मुझे मजबूर कर दिया। आखिर हमारे देश में कैसे विकृत मानस के लोग खड़े हो रहे हैं जो जीवन को जोखिम में लेकर समाज के लिए की जा रही सेवा को दुत्कार रहे हैं। कुछ तो शर्म करो। Chitra Tripathi को मैं तबसे जानता हूं जब वो सहारा समय में थी। इंडिया न्यूज में हमने न जाने कितने शो साथ किए हैं। वो दिखावटीपन, नाटकीयता से दूर अपने काम पर पूरा फोकस एवं अति परिश्रम करने वाली पत्रकार है। उसके इरादे पर उंगली उठाने वालों को यही कहूंगा कि हे, ईश्वर इन्हें माफ करना ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं। इनको सुबुद्धि मिले।
Sumeet Thakur : चित्रा त्रिपाठी जी पर सवाल उठाने वालों जरा पढ़िए::: 01–जो पत्रकार चित्रा जी की रिपोर्टिंग पर सवाल उठा रहे हैं, वो बता दें कि कब उन्होंने किस मसले पर अपनी स्टोरी फ़ाइल की थी, ये भी बता दें कि बाढ़ पर वो कहाँ कहाँ गए? उनको पूरा हक है सवाल उठाने का..लेकिन वो क्या कर रहे थे बता दें? 02–हम न्यूज़ चैनल में काम करते है, बतौर प्रोड्यूसर जानता और समझता हूँ कि एक रिपोर्ट को तैयार करने में, कितनी मेहनत लगती है , चित्रा जी को ट्रोल करने वाले खुद tv पत्रकारिता के असफल लोग है ..जो वेब पोर्टल या कुछ कर रहे है03 चित्रा जी को ट्रोल करने वालों में, मुझे लगता है जातिवादी लोग हैं जिन्हें उनके ब्राह्मण होने से बैर है, दूसरे पुरुषवादी जैसे आज़म जैसे लोग हैं जो श्रेष्ठता की बीमारी से ग्रसित हैं04 अब बात उस फ़ोटो की..वो फ़ोटो …और हर फ़ोटो चित्रा या उनकी टीम ने पंहुचाया आप तक …ये उनकी ईमानदारी है…आखिर में एक बात ऐसी फ़ोटो एक बड़े …नामी ..जानकार… किसी पुरुष पत्रकार की क्यों नही आई? 05 चित्रा जी से नाराज हूँ, कुछ पोस्ट देखा सफाई दे रही हैं..गलत बिलकुल गलत…आपने अच्छा काम किया है, इस पर खुद भरोसा करो बहन…आपको शुभकामनाएं
Neetu Kumar : बिहार में केले की खूब खेती होती है और पेड़ का तना वहां लोगों के जीवन का हिस्सा है। लोग वहां केले के तने की नाव हमेशा बनाते रहे हैं। बाढ़ के दौरान भी लोग इस तरह के नाव का इस्तेमाल कर रहे हैं। Chitra Tripathi ने इस तस्वीर के जरिए वहां के लोगों की मदद ही की है। इससे पता चलता है की हालात कितने बुरे हैं। प्रशासन लोगों की मदद नहीं कर रहा। उन्होंने खुद को खतरे में डालकर रिपोर्टिंग की है। आजतक पर खबर चली तो गांववालों को नाव दी जा रही है।
Shambhu Nath Shukla : मैं इस लड़की के साहस की दाद देता हूँ। इस लड़की ने उन पीड़ित बाढ़ से घिरे लोगों के पास जाकर मिलने और उनकी पीड़ा को जन-जन तक पहुँचाने का साहस तो किया। वर्ना मंत्री/मुख्यमंत्री तो हवाई दौरा करते हैं और करते रहे हैं। यह कोई बाढ़ टूरिज़्म नहीं है।
Ambrish Kumar : पत्रकारिता हो तो ऐसी जोखमभरी और मिशनरी हो वर्ना कोई अर्थ नही जो आप कहीं जाकर आठ सौ शब्द लिख डालें और फेसबुक पर लाइक बटोरें.
इस प्रकरण पर खुद चित्रा ने क्या लिखा, पढ़ें-
Chitra Tripathi : फोटो पर सवाल उठे हैं. जवाब ये है मेरा… मुझे जिस गांव के अंदर जाना था वहां तक पहुंचने का एकमात्र साधन ये है. 4 लोग मुझे ले जा रहे हैं उनका यही काम है इस पार से उस पार ले जाना, जबसे बाढ़ आई है. उन्हें इसके बदले पैसे देने की कोशिश की तो जवाब था कि आप ये सरकार को दिखाइये ताकि हमें बोट मिल जाये. मेरा उस पर बैठकर पीटीसी करना लोगों को बाढ़ टूरिज्म लग रहा है.ये मुझसे पूछें दूसरी तरफ जाने में मेरी एक गलती, थोड़ा सा पैर फिसलता तो सीधे पानी में. हम स्टोरी करते हैं तो उसकी बहुत कहानियां होती हैं. ये रिस्क था. मेरा ये काम है. हर हाल में मुझे गांव के अंदर जाना था, वहां के हालात दिखाने थे. इस फोटो पर सवाल उठायें लेकिन ये भी याद रखें दस दिन पहले गर्भ से कराहती एक महिला को पुरुषों ने रात के नौ बजे ऐसे ही नदी पार कराई. वो मेरी रिपोर्टिंग का हिस्सा थी. ये बताना मेरा काम है. जो जैसा है उसे वैसा ही देखकर, महसूस कर आप तक खबर देना काम है, वो किया. करती रहूंगी. और हां, मैंने जब शुरु में इस पर बैठने से मना किया था तो इन्हीं चार लड़कों ने कहा कि नहीं दीदी आईये, हम लोग गिरने नहीं देंगे. अंदर गांव में हालत बहुत खराब है. आप दिखायेंगी तो हो सकता है सरकार कुछ मदद कर दे. फोटो पर टिप्पणी करने वालों पर ध्यान दूं या ग्राउण्ड के हालात पर? हद है..
Chitra Tripathi : खबर का असर- “जुगाड़ वाली नाव से मिलेगी मुक्ति”… कल जुगाड़ वाली नाव के सहारे जहां मैं गई थी वहां आज डॉ रणजीत कुमार सिंह डीएम,सीतामढी बाढ़ आने के बाद पहली बार राहत सामग्री लेकर पहुंचे.जो लोग कुछ दिनों से चूड़ा चीनी खाकर जिंदगी गुजार रहे थे कम से कम उनको खाने का सामान मिला होगा.उम्मीद करती हूं कि गांव वालों को नाव जल्द मिलेगी. अच्छी खबर ये है कि SDRF की टीम को तैनात कर दिया गया है, बोट मिल जाने के बाद ये टीम वहां से चली जायेगी..जानकारी मुझे ये भी मिली है कि जल्द ही बोट प्रशासन मुहैया करा देगा. अब आगे से केले के तने से बनी जुगाड़ु नाव से नदी पार नहीं करना होगा.
सौजन्य : फेसबुक
Arvind Kumar Sharma
July 31, 2019 at 9:49 pm
एक भी आवाज सुनाई नहीं दे रही कि आइए बिहार के बाढ़ पिडितो की मदद करें। शायद वहां बाढ़ आई नहीं, लोग बेघर हुए नहीं या फिर इनकी यही नियति है।
पीछले साल तो लोग पानी पी पी कर आवाज लगा रहे थे।
धन्य हैं