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सुख-दुख

जिस केमिकल से बसों को सैनिटाइज करना था, फायर ब्रिगेड वालों ने उससे विस्थापितों को नहला दिया! देखें वीडियो

अभी एक विडियो देखा! दिल्ली से घर की तरफ जा रहे मजदूरों को बरेली पहुँचने पर प्रशासन द्वारा सड़क पर बिठाकर दवाई घुले पानी की बौछार से कोरोना-फ्री किया जा रहा है! अभी खबर मिली कि ये फायर ब्रिगेड की बसों को सैनिटाइज़ करने के लिये था. अब अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाई की जाएगी!

इतना वीभत्स दृश्य देखना भी इसी समय में होना था! ये विडियो देखते ही वो सीन याद आ जाता है जब कैदियों को नया-नया जेल में लाया जाता है तो बैरक में डालने से पहले इतनी ही नफ़रत और परायेपन के साथ Delouse किया जाता है!

प्रशासन को न तो स्वास्थ्य की बेसिक समझ है और न ही इन्सान के प्रति न्यूनतम प्रेम! भयानक क्लास मेंटालिटी!

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उफ़!!!

देखें सम्बंधित वीडियो-

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सोशल मीडिया एक्टिविस्ट तारा शंकर की एफबी वॉल से.

इस घटनाक्रम पर लखनऊ की सोशल एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार को पत्र लिखा है। इस बारे में उन्होंने फेसबुक पर जो पोस्ट किया है उसे पढ़िए-

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Nutan Thakur : बरेली में मजदूरों पर कीटनाशक छिडकाव पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत संख्या 3490/IN/2020 प्रेषित. इस अत्यंत शर्मनाक घटना में कठोरतम कार्यवाही, मजदूरों को मुआवज़े की मांग.

इस वीभत्स घटनाक्रम पर वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक लिखते हैं-

ये अमानवीयता की हद है, धिक्कार है

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▪बरेली में लोगों को सड़क पर बिठा कर
जहरीले केमीकल की बारिश की गई

▪सवाल-क्या विदेश से आये लोगों को
भी ऐसे ही केमीकल से नहलाया था।

ये उत्तर प्रदेश के बरेली की तस्वीर है। जिले की सीमा में बाहर से आये लोगों को सरकारी अमले ने सड़क पर बिठाकर उन पर हानिकारक केमिकल (जहरीले कीड़े मारने वाली दवा) की बौछार की।

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बाहरी लोगों को सेनेटाइज करने करने के लिये ऐसा किया गया। केमिकल की बारिश से तमाम लोग बीमार हो गये हैं।इनमें मासूम बच्चे और औरतें भी हैं।

बरेली के आला अधिकारी पहले तो इस तरह की किसी भी घटना से बचते रहे लेकिन विडियो सामने आने के बाद जांच के आदेश दिये गये हैं। सवाल पूछा जाना चाहिये कि क्या पिछ्ले दो महीने में विदेश से आये लोगों को ऐसे ही केमीकल से नहलाया गया था?

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हांगकांग में रह रहे मानवाधिकार वादी अविनाश पांडेय समर लिखते हैं-

बरेली प्रशासन में लौट रहे मज़दूरों, स्त्री पुरुष सब, को कपड़ा पहने ही क्लीनिकल डिसइंफैक्टेंस से नहला दिया! पर ये छोटी खबर है!

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बड़ा सवाल ये है कि ये हाहाकारी विचार आया किसके मन में?

आख़िर कोविद वायरस है धूल नहीं कि नहलाने से चला जायेगा!

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जिसको पहले ही संक्रमण है उन्हें इलाज की ज़रूरत है। और मेरी जानकारी में नहाना वायरस का इलाज नहीं होता, दुनिया भर में कहीं नहीं!

हाँ ये ज़रूर है कि सैकड़ों किलोमीटर से पैदल चल के आये लोगों को आप कपड़े में ही नहला दें तो उन्हें सर्दी और हो जाय और दहशत फैले!

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बग़ल में बिहार के सिवान में ऐसे ही हाल हैं। नीतीश कुमार सरकार ने उन्हें अस्थाई जेलों में बंद कर रखा है- कि नाम पता नोट करना है आदि!

इससे क्या होगा? और कुछ नहीं तो ये कि अगर एक भी व्यक्ति संक्रमित हुआ तो अब उसके कमरे में सबको हो जायेगा।

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उधर मोदी जी योग वीडियो साझा कर रहे हैं- फिट रहने को!

मेरा दिल दहल रहा है कि कोई भक्त टाइप अधिकारी कहीं थके हारे मज़दूरों से हठ योगा न करवाने लगे! यही बाक़ी है अब!

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उधर सरकार ने साफ़ किया है कि लॉकडाउन बढ़ाया नहीं जायेगा।

डबल्यूएचओ की इस चेतावनी के बावजूद कि लॉकडाउन के बाद मची अफ़रातफ़री और भगदड़ की वजह से अब भारत के ग्रामीण इलाक़ों के कोविद 19 का नया केंद्र बनने का ख़तरा है! ख़ासतौर पर इसलिए क्योंकि भागे लोगों में से कई ऐसे होंगे जो विदेश से आए/लौटे लोगों के संपर्क में आए हों- उदाहरण के लिए टैक्सी ड्राइवर।

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तो लॉकडाउन तक स्थिति ना सुधरी तो? वह भी तब जब सरकार भी दबी ज़ुबान से सामुदायिक संक्रमण की बात मानने लगी है!

संदेश साफ़ है! सरकार के पास कोई योजना नहीं है। अपनी सुरक्षा का खुद सोचें!

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और हाँ, बरेली सीवान वग़ैरह में मानवीय गरिमा की बात तो अभी की ही नहीं है।

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