अशोक दास (संपादक, दलित दस्तक)
मैं सार्वजनिक तौर पर कुछ कहना या लिखना नहीं चाहता था। मैं सोचता था कि एक काम हो रहा है, चलो अच्छा है। तमाम मंचों से बात होनी चाहिए, प्रसार ज्यादा होगा, लेकिन अब कुछ ज्यादा हो गया है। मैं सार्वजनिक तौर पर कहने को मजबूर हो गया हूं, क्योंकि अब “वो” मुझसे जुड़े लोगों को ही बरगलाने लगे हैं।
असल में अभी देहरादून से मित्र हरिदास जी का फोन आया था। वो बता रहे थे कि National Dastak से फोन आया था और वो उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे। जाहिर है कि हरिदास जी Dalit Dastak की शुरुआत से ही हमसे जुड़े हैं सो उन्होंने फोन करने वाले को चमका दिया। ऐसा ही फोन कानपुर से शैलेन्द्र गौतम और गुजरात से विनोद भाई का भी आया था।
मैं दलित दस्तक से जुड़े सभी मित्रों को यह सूचित करता हूं कि मेरा या फिर “दलित दस्तक” का ‘नेशनल दस्तक’ से कोई संबंध नहीं है। नेशनल दस्तक गाजियाबाद के रियल स्टेट से जुड़े एक उद्योगपति सुनीत कुमार का है। हां, शुरुआत में मैं इससे जुड़ा था लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि एक बिजनेस मैन और एक मिशनरी व्यक्ति साथ काम नहीं कर सकते, सो मैं अलग हो गया।
आज मुझे यह पोस्ट लिखना पड़ रहा है ताकि दलित दस्तक के पाठक सच्चाई से अवगत रहें। पत्रकार मित्रों, कृपया मुझे वहां की वकैंसी के संबंध में अपना रिज्यूम भी मत भेजिए। मुझे भेजने से कोई फायदा नहीं।
हां, मैं नेशनल दस्तक वालों से यह कहना चाहता हूं कि कम से कम कुछ मामलों में ईमानदार होना जरूरी है। मेरे अलग होने के बावजूद और लगातार आधिकारिक तौर पर ई-मेल करने और डाक से इस्तीफा भेजने के बावजूद भी आपने अपने संगठन से मेरा नाम हटाया नहीं है, इसे जल्द से जल्द हटाएं तो मेहरबानी होगी। मित्रगण खुद नीचे दिए गए लिंक को देख सकते हैं, जिसमें सामने वाले आज भी मेरे नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं।
(1) https://www.zaubacorp.com/company/DASTAK-MEDIA-PRIVATE-LIMITED/U22219DL2015PTC288348
(2) https://www.zaubacorp.com/company/DASTAK-MEDIA-FOUNDATION/U22110DL2016NPL299731
सादर
अशोक दास
संस्थापक और संपादक
”दलित दस्तक”
मैग्जीन और वेबसाइट
[email protected]
संबंधित खबर…
अरविंद
September 29, 2018 at 4:18 am
दलितों का उत्थान पिछले २२५० वर्षों से सिर्फ इसलिए ही नहीं हो पाया की जरा सा पैसा घर में आया नहीं की चील बिल्लुओं की तरह लड़ने लगे. ये चील बिल्लुओं की तरह लड़ना वाला शब्द युग्म मेरी माँ इस्तेमाल करती थी जब घर में कोई चोकलेट आती थी और हम भाई बहन आपस में लड़ने लगते थे. उन्होंने हमे हमेशा मिल बाँट कर खाना सिखाया. अरे भाइयों पूँजी क्या है? पूँजी मेहनत का कन्वर्शन है करेंसी में. सब एक ही व्यक्ति खा जाना चाहता है? तो ब्राह्मणों और दलितों में क्या अंतर रहा?
मैं नेशनल दस्तक का नियमित दर्शक हूँ. जब मैंने वो देखना शुरू किया और शम्भू कुमार सिंह के प्रश्न और वक्तव्य सुने तो मुझे लगा की ये सही पत्रकार है, गरीबों, मुज्लुमो के हक में संवैधानिक दायरे में आवाज उठाने वाला. और मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ.
परन्तु कुछ दिनों से कुछ और लोग नेशनल दस्तक पर जुड़ गए और शनै शनै नेशनल दस्तक की क्वालिटी में गिरावट आ गयी, ऐसा मुझे लगा. टाइटल एक ही तरह के हैं, “भयानक” शब्द का बार बार प्रयोग….और स्क्रिप्ट सिर्फ इस तरह की जैसे की वो सिर्फ एक भड़काऊ प्रोपगंडा चैनल हो गया. इसलिए एक ही तरह के वीडियोस देखने से बोर होकर मैंने जब दूसरे वीडियोस सर्च करे तो पता चला की एक दलित दस्तक भी है. अशोक दास के भी इंटरव्यू देखे, थोड़े अलग टेस्ट के हैं, उनके बोलने का लहजा अलग है. मैं दलित दस्तक का भी दर्शक बन गया. फिर पता चला की आवाज़ टीवी भी है. इस तरह धीमे धीमे मुझे कई चैनल्स का पता चला.
अब नतीजा देखिये, सिर्फ २ हज़ार, ३ हज़ार ही हिट्स हैं.
जहाँ ब्राह्मण मीडिया के youtube चैनल्स पर २० हज़ार, ४० हज़ार हिट्स होते हैं, दलितों के चैनल्स पर दस गुना कम होते हैं. साफ़ है की सामाजिक असमानता के अलावा ये दस गुना बंटने का नतीजा भी है. ठीक है की ब्राह्मण मीडिया के ऑडियंस गोरे आक्रान्ता ब्राह्मणों के वंशज़ और उनके चमचे गोरे सवर्ण ज्यादा इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाले हैं और दलितों बहुजनो की संख्या कम होगी परसेंटेज में परन्तु फिर भी आप ये नहीं कह सकते की whattsapp पर चिपके रहने वाले बहुजनो की संख्या कम है और इतनी कम है की सिर्फ ३ हज़ार या २ हज़ार ही लोग कोई एक चैनल देखें.
अरे बहुजन आन्दोलन को आगे बढ़ाना है, दलितों को न्याय दिलवाना हैं, तो संगठित होइए, ये पब्लिक में झगड़ा करना बंद कीजिये और सार्वजनिक रूप से वक्तव्य देना बंद कीजिये, थोडा त्याग और थोडा सहना तो पड़ेगा ही.
और अशोक जी, ये घमंड रखना बंद कीजिये की आप की एक मिशनरी हैं, अलग अलग लोगों का एक ही मकसद के लिए रास्ता और तरीका अलग हो सकता है और इसका मतलब नहीं की उनका ध्येय बड़ा गया या की उनकी नीयत कुछ और है.
अरे भोले भले नागरिकों, ये ब्राह्मण आक्रान्ता मीडिया आपकी इस ही रिपोर्ट को बढ़ा चढ़ा कर पब्लिक में उछालेगा और दलित आन्दोलन को उसी तरह नुक्सान पहुंचाएगा जिस तरह इन्होने टीवी चैनल पर दिन रात मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के घर का झगडा दिखाया.
अरे क्या ब्राह्मणों के घरों में झगड़े नहीं होते क्या? क्या ब्राह्मण मीडिया इसी तरह से दिन रात उछाल उछाल कर दिखता है? नहीं .
कृपया इन सार्वजानिक स्थानों पर मैले कपडे धोने से बचें और दलित आन्दोलन को मजबूत करें.
Tks
May 25, 2023 at 2:00 pm
ब्राह्मण मानसिक अपंग ने एक तकनीक निकाली थी हमारे समाज के खिलाफ उनकी बुद्धि को प्रभावित करने के लिए। सांस को रोककर उसकी अवधि बढ़ाना जिससे मन प्रबल शक्तिशाली होता जाता है और इच्छा शक्ति में बढ़ोतरी होती है। अपनी बुद्धि से ब्राह्मण मानसिक अपंग की बुद्धि को वश में कीजिए प्रबल इच्छाशक्ति से