बेचारी जनता,
मेरे चरणों में आपका सादर प्रणाम, उम्मीद है कि आप सब लोग कुशलपूर्वक होंगे. ऐसा लिखना पड़ता है अन्यथा मुझे पूछने की जरूरत ही क्या थी? साढ़े चार साल कुछ नहीं पूछा. वैसे पत्र लिखने का दौर चल रहा है तो सोचा एक पत्र आपलोगों के नाम भी लिख दूं. खैर, विश्वास है कि फैमिली ड्रामा देखकर आपलोगों का टाइम मस्त गुजर रहा होगा. इधर थोड़ा रायता ज्यादा फैल गया है नहीं तो पिछले साढ़े चार साल में जिस तरीके से हमने परिवार के साथ मिलकर सरकार चलाई है, उसमें मुजफ्फरनगर से लगायत मथुरा-बनारस सब आपने महसूस ही किया होगा. कब्जा, वसूली से हमें फुरसत ही नहीं थी. हमने और हमारी फैमली ने साढ़े चार साल सरकार चलाई और सीबीआई की छोड़कर किसी की नहीं सुनी. कई मामलों में तो कोर्ट की भी नहीं. जनता का सुनने का तो सवाल ही कहां उठता है.
अब जब चुनाव सिर पर आ चुका है तो न्यूज चैनलों की दिक्कत को देखते हुए हमने सपरिवार निर्णय किया कि उनके लिए कुछ किया जाए. उन्हें अगर मसाला नहीं मिलता है तो उनकी टीआरपी नहीं आती है, उनके रिपोर्टर-एंकर चीखे-चिल्लाए बिना कमजोरी फील करने लगते हैं, इसलिए हमने यह योजना बनाई. इसी योजना की कड़ी में हमने कौमी ‘एकता’ के विलय को लेकर अपने ‘एकता’ को भी कालीदास और विक्रमादित्य मार्ग से निकालकर सड़क पर ला दिया, जिससे एकता कपूर का सीरियल बनाकर न्यूज चैनल वाले दिखा सकें. आशा है कि टीवी चैनलों को अब खबरों की कमी को लेकर कोई परेशानी नहीं होगी. चीखने-चिल्लाने वाले रिपोर्टरों और एंकरों को भी सर्जिकल स्ट्राइक और रामलीला के चक्कर में टाइम बरबाद नहीं करना पड़ रहा होगा. उन्हें चीखने-चिल्लाने का पूरा मौका मिल रहा होगा और उनकी कमजोरी की फीलिंग जा रही होगी. मारधाड़-नोकझोंक-नारेबाजी से भरपूर दृश्य देखकर रिपोर्टरों का भी माइक फड़क रहा होगा. चोंच फड़फड़ा रहा होगा. हमारे और चाचा के पीटे गए समर्थकों के मुंह में माइक लगाकर पूछने का मौका भी होगा कि कैसा महसूस हो रहा है. मुंबई हमले के दौरान जमीन पर लोटकर रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर अब साइकिल पर बैठकर रिपोर्ट दे रहे होंगे. कोई लेट कर भी कर रहा होगा. यानी ड्रामा इधर भी चल रहा है तो उधर भी आपलोग पूरा ड्रामा कर ही रहे होंगे.
खैर, हम समाजवादियों ने साढ़े चार साल जमकर सरकार चलाई. ऐसी सरकार चलाई कि सभी को खाने-पीने का बराबर मौका दिया. सबने खाया. कोई पहाड़ खोदकर खाया तो किसी ने नदी खोद डाली. कुछ थानों पर बैठकर खाए. कुछ तहसील और जिला मुख्यालय पर भी खाते रहे. कुछ योजनाएं भी खाई गईं. हमने खाने में कोई कमी नहीं होने दी. केंद्र सरकार की तरह ‘ना खाएंगे और ना खाने देंगे’ कहकर हमने लोगों की दाल-सब्जी के बारे में सोचने से परहेज किया. केंद्र भले ही महंगाई बढ़ाकर जनता को ना खाने दे, लेकिन हमने सभी समाजवादियों को खाने की पूरी छूट दी. साढ़े चार साल कई मुख्यमंत्रियों ने मिलकर सरकार चलाई और कानोंकान किसी को खबर नहीं हुई कि सरकार कैसे चली, सबको हमने बराबर मौका दिया, लेकिन कुछ लोग ज्यादा बेइमानी पर उतर गए. बेइमानी में ईमानदारी का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया.
इधर, थोड़ा घरेलू परेशानी बढ़ गई है. टाइम साजिश से निपटने और रचने में जा रहा है, इसलिए सरकार को भगवान भरोसे छोड़कर संघर्ष की तैयारी कर रहा हूं. आपलोगों को तो पता ही है कि समजावादी संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटते हैं. हम सब समाजवादी है इसलिए सब संघर्ष कर रहे हैं. इधर पापा और चाचाओं के चलते व्यस्तता बढ़ गई है सो आपलोगों को लोकसेवकों, अरे वही नौकरशाह, जो खुद को भगवान से कम नहीं समझते, उनके भरोसे छोड़कर मामला निपटाने में जुटा हुआ हूं. मेरे कुछ खास प्रिय लोकसेवक हैं, जो जनता की सारी समस्या कागजों पर दूर कर देंगे. यह लोकसेवक कागजी घोड़े दौड़ाने में माहिर हैं. साढ़े चार साल हमने जमीन काम करने से परहेज किया ताकि कोई कब्जा का आरोप ना लगा सके .हवा में हमने बहुत सारे महल बनवाए हैं. प्रमुख सचिव साहब हवामहल खड़ा करने में माहिर हैं. हमने एक्सप्रेस-वे भी बनवा दिया है ताकि सारे कागजी घोड़े इसी पर दौड़ाए जा सकें. आशंका है कि कई कागजी घोड़े तो एक्सप्रेस-वे बनने से पहले बुआजी के कार्यकाल से भी दौड़ रहे होंगे. कुछ माहिर नौकरशाह हमारे साथ बुआजी के दौर का कागजी घोड़ा भी दौड़ा रहे होंगे.
मैं पूरे साल अंदरूनी संघर्ष में बिजी रहा, इसलिए टाइम का पूरा अभाव रहा. उम्मीद करता हूं कि हमारे अधिकारियों की कर्मठता से आप सब लोग सुखी होंगे. बिजली, पानी और सड़क तो खैर कोई समस्या ही नहीं होगी. आशा है कि कर्मठ अधिकारियों की कृपा से बिजली भले टाइम से नहीं पहुंच रही होगी, लेकिन बिल आपलोगों को टाइम से मिल रहा होगा. बिजली से पहले बिल पहुंचना इन कर्मठ अधिकारियों के प्रयास का ही फल है. कहीं-कहीं तो हमारी सरकार ने खंभे पहुंचाने से पहले ही बिल पहुंचाने का प्रयास किया है. कई जगहों पर इसमें हमें सफलता मिली है. वैसे, बिजली आप तक भले ना पहुंची हो, लेकिन खंभे जरूर गड़ गए होंगे. बिल भी आ रहा होगा. आप लोग बिल भरें हम अगली बार सरकार बनने पर पूरा बिजली चुका देंगे. चुनाव का टाइम आ रहा है तो खर्च बढ़ने वाला है. आप लोग बिल चुका देंगे तो हमारे काम आ जाएगा.
पीएम साहब, जिस तरीके से चैनलों और अखबारों के जरिए पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर दिया, उसी तरह हमने राज्य के प्रत्येक गांव में खुशहाली पहुंचा दी है. जनता को खुशहाली महसूस कराने के लिए हमने प्रचार में बहुत पैसा झोंका है. उम्मीद है कि जनता खुशहाली महसूस करने लगी होगी. हमारी सरकार ने रोजगार के कई अवसर बनाए. हमारे पूरे परिवार को रोजगार मिला. ऐसी आशा है कि आप लोगों को भी रोजागार दिख रहा होगा. हमने अपने बहुत से कार्यकर्ताओं को थाने और तहसीलों में आपका काम कराने के एवज में वसूली का रोजगार दिया. जो प्रतिभाशाली थे, उन्हें जमीन कब्जा के रोजगार में लगाया. ट्रांसफर-पोस्टिंग के रोजगार में भी कई लोगों का भला करने में समाजवादी सरकार सफल रही. हमारी सरकार ने चाचाजी के नेतृत्व में वहां-वहां नहरें खुदवा दीं, जहां कभी पानी पहुंचने की गुंजाइश नहीं है. चाचा से निपट कर जल्द ही हम रोजगार और महंगाई का हवाई सर्वेक्षण करवाएंगे. गन्ना का मूल्य भले ही नहीं बढ़वाया, लेकिन चीनी मिलों का ब्याज माफ किया ताकि किसानों को लाभ मिल सके. हमारी सरकार समरसता में भरोसा करती है. हमने लोगों के मन से पुलिस का डर बाहर किया. शरीफ गुंडों को परेशान करने वाले पुलिस को हमारे कार्यकर्ताओं ने पीटकर संदेश दिया कि यहां किसी को अपने पद का दुरुपयोग नहीं करने दिया जाएगा. हमारे नेताओं ने पुलिस का सही इस्तेमाल करते हुए कई लोगों को सबक भी सिखाया. पूरा साढ़े चार साल मस्ती से गुजरा, लेकिन अमर सिंह की वापसी ने सारा गुड़ गोबर कर दिया.
एनसीआर की जिम्मेदारी संभालने वाले बड़के चच्चा बड़े माहिर पत्रबाज हैं. ‘रागो’ चच्चा अपने को ‘रागा’ से बड़ा जानकार मानते हैं. यह पत्र लिखने की कला भी मैंने उन्हीं से सीखी, लेकिन अमर सिंह की एंट्री चच्चा के लिए परेशानी का सबब बन गई. उनके धंधे पर बन आई है और मैं चच्चा और उनके धंधे की परेशानी नहीं देख सकता था इसलिए चच्चा के निर्देशन में चाचा के खास बन रहे अमर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला. चच्चा से पहले अमर सिंह का ही तो धंधा इधर चल रहा था. मैंने चच्चा के कहने पर ही यादव सिंह को बहाल किया था. नाम से समझ आया कि यह कोई अपना ही बंदा है. वइसे भी, चच्चा की ईमानदारी पर हमें कोई शक नहीं था इसलिए हमने यह भी कनफर्म नहीं किया कि वह करता क्या है? यादव सुनते ही हमे पूरा विश्वास हुआ कि यह आदमी समाजवादी होगा. पक्का समाजवादी. हमने समाजवाद को मजबूत करने के लिए उसे बहाल कर दिया, लेकिन कुछ लोग समाजवाद को बरबाद करने के लिए यादव को बुआजी का सिंह बनाकर सीबीआई के झमेले में ले गए.
गायत्री यानी ‘गाय’ तेरी पर भी लोग मिथ्या आरोप लगाने से नहीं चूके. ‘गाय’-‘भैंस’ तो हम समाजवादियों का प्रिय पशु है. खासकर भैंस. गाय तो भाजपा वालों को भी बहुत प्रिय है. खासकर चुनाव के दौरान. खैर, भैंस-गाय अगर हमारे प्रिय नहीं होते तो हम भला आजम चा का भैंस क्यों ढूंढवाते. प्रदेश की उस पुलिस से हमने भैंस ढूंढवा ली, जो साइकिल तक नहीं ढूंढ पाते. आप समझ सकते हैं कि यूपी की पुलिस कितना लगन और मेहनत से काम करती है. इस दौरान पुलिस ने भालू को भी बांध कर पीटा कि वह कबूल कर ले कि वह आजम चा की भैंस है, लेकिन दूध नहीं निकलने की चलते यह प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा. भैंस का फोटो लेकर उसे पहचानना कोई आसान काम नहीं होता, लेकिन पुलिस ने ना केवल सभी का चेहरा पहचाना बल्कि उसे बरामद भी किया. हमने जब ‘गाय’तेरी प्रजापति को काम दिया तो कुछ सवर्णों को यह रास नहीं आया. बुआ इसलिए इन्हें मनुवादी कहती हैं. जब यह बंदा गाय भी है और प्रजा का पति भी तो क्या इसे अपनी प्रजा के लिए जमीन-जायदाद खरीदने का अधिकार नहीं है? इस आदमी ने ईमानदारी से हमारे पूरे परिवार का ध्यान रखा, तो क्या इसे कुछ खोदने-खनने का अधिकार नहीं है?
खैर, आप लोग को अधिकारियों के भरोसे छोड़कर चाचा से निपटने में जुटा हुआ हूं. उनसे तो निपट लेता लेकिन पिताजी ने रायता फैला दिया है, लेकिन कोई बात नहीं सरकार जाने तक मैं सबसे निपट लूंगा. यह सच्ची की लड़ाई नहीं है. हम ड्रामा कर रहे हैं. राज्यपाल साहेब बहुत नियम कानून बतियाते हैं तो बस उनको ही बिजी करने के लिए हमलोग रोज मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी और शपथ का कार्यक्रम करा रहे हैं ताकि वह व्यस्त तो रहें ही उनका भी कुछ खर्चा होता रहे. बर्खास्तगी और शपथ तो हमारा घरेलू मसला है, इससे जनता को का लेना-देना है. जितनी बार मन होगा, उतनी बार करेंगे. बस गुजारिश है कि आप लोग सरकार को निपटाने के बारे नहीं सोचिएगा नहीं तो स्मार्ट फोन से हाथ धो बैठेंगे. सरकार बन गई तो आप को स्मार्ट फोन मिलेगा और हम बहती गंगा में हाथ धोएंगे. आप लोगों को दीपावली की हार्दिक ‘शुभ काम ना आएं’. जय समाजवाद जय परिवारवाद.
आपका ही अपना
चोथा मुर्गा
इस व्यंग्य कथा के लेखक अनिल सिंह लखनऊ से प्रकाशित दृष्टांत मैग्जीन में वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे कई चैनलों, अखबारों और पोर्टलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए कर सकते हैं.
bhavi menaria
October 25, 2016 at 3:21 pm
bole to ekdam jhakas. bhaisahab